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माँ बनाती थी रोटी 
पहली गाय की 
आखरी कुत्ते की 
एक बामणी दादी की 
एक मेहतरानी बाई की
...
हरसुबह
सांड आ जाता
दरवाज़े पर
गुड की डली के लिए

कबूतर का चुग्गा
कीड़ीयों का आटा
ग्यारस,अमावस,पूनम का सीधा
डाकौत का तेल
काली कुतिया के ब्याने पर
तेल गुड का हलवा
सब कुछ निकल आता था
उस घर से
जिस में विलासिता के नाम पर
एक टेबल पंखा था

आज सामान से भरे घर से
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय कर्कश आवाजों के


एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है

प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........

" ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"

प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL- THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि ,--
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......

ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर , एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था ,,
=> शाहजहाँ के दरबारी लेखक " मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने " बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है ,, जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि , शाहजहाँ की बेगममुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद , बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद , तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार , को अकबराबाद आगरा लायागया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए , आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान)मे पुनः दफनाया गया , लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे , पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर केपूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वेदोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=> यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए , छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ , अकबर , एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनोंमे दफनाये गए हैं ....

=> प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------

=" महल" शब्द , अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम सेकम दो प्रकार से तर्कहीन है---------

पहला ----- शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था ,,, बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...

और दूसरा----- किसी भवन का नामकरण किसीमहिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए ,,, यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि , ताजमहल नामतेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है , साथ ही साथ 

ओककहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी , चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......

तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह केयुग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----

==> न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंगके आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...

==> मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष ( 1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==> यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 ( मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया ,, परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया , जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा , के लिखित विवरण से पता चलता है कि , औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......

प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि , ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं , जो आम जनता की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक. , जोर देकर कहते हैं कि हिंदूमंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति , त्रिशूल , कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......


एक सैनिक जो कम उम्र में शहीद हो गया.. और मरते वक़्त उसने अपनी माँ को क्या खत लिखा होगा....!! सीमा पे एक जवान जो शहीद होगया, संवेदनाओं के कितने बीज बो गया, तिरंगे में लिपटी लाश उसकी घर पे आ गयी, सिहर उठी हवाएँ, उदासी छा गयी, तिरंगे में रखा खत जो उसकी माँ को दिख गया, मरता हुआ जवान उस खत में लिख गया, बलिदान को अब आसुओं से धोना नहीं है, तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है। मुझको याद आ रहा है तेरा उंगली पकड़ना, कंधे पे बिठाना मुझे बाहों में जकड़ना, पगडंडियों की खेतों पे मैं तेज़ भागता, सुनने को कहानी तेरी रातों को जागता, पर बिन सुने कहानी तेरा लाल सो गया, सोचा था तूने और कुछ और हो गया, मुझसा न कोई घर में तेरे खिलौना नहीं है, तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है। सोचा था तूने अपने लिए बहू लाएगी, पोते को अपने हाथ से झूला झुलाएगी, तुतलाती बोली पोते की सुन न सकी माँ, आँचल में अपने कलियाँ तू चुन न सकी माँ, न रंगोली बनी घर में न घोड़े पे मैं चढ़ा, पतंग पे सवर हो यमलोक मैं चल पड़ा, वहाँ माँ तेरे आँचल का तो बिछौना नहीं है, तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है। बहना से कहना राखी पे याद नकरे, किस्मत को न कोसे कोई फरियाद न करे, अब कौन उसे चोटी पकड़ कर चिढ़ाएगा, कौन भाई दूज का निवाला खाएगा, कहना के भाई बन कर अबकी बारआऊँगा, सुहाग वाली चुनरी अबकी बार लाऊँगा, अब भाई और बहना में मेल होना नहीं है, तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है। सरकार मेरे नाम से कई फ़ंड लाएगी, चौराहों पे तुझको तमाशा बनाएगी, अस्पताल स्कूलों के नाम रखेगी, अनमोल शहादत का कुछ दाम रखेगी, पर दलाओं की इस दलाली पर तूथूक देना माँ, बेटे की मौत की कोई कीमत न लेना माँ, भूखे भले मखमल पे हमको सोना नहीं है, तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है।


"क्या यह सच है"
लोग कहते की नारी हमारा गर्व होती है,क्या यह सच है,फिर क्यों वो हर रोज घरो मे जलाई जाती है,
लोग कहते है की नारी माँ बहन,बीवी,दोस्त हर रूप मे हमारा ख्याल रखती है,क्या यह सच है,फिर क्यों वो अपनी अस्मत बचाने को घरो मई छिपाई जाती है,
लोग कहते है की नारी देवी का स्वरूप होती है,क्या यह सच है,फिर क्यों उसका अपमान घर घर मे किया जाता है,
लोग कहते है नारी जीवन की खुशियों की सौगात होती है,क्या यह सच है,फिर क्यों उसकी आंखे हर पल मे रोती है,
कहने को तोह भारत को माँ का दर्जा दिया है,क्या यह सच है,फिर क्यों यहाँ हर रोज कत्ले आम कराये जाते है,
सच कहने को सब सच हैऔर मानो तोह सब झूठ क्योकि लोगो ने भारत मे न जाने कितनी मान्यताये रखी हैपर सब झूठ क्योकि उनके आगे एक औरत का जीवन डूब कर रह जाता हैतो कभी सोचा है क्या आपने वो सब कुछ समझ कर कुछ नहीं समझी जाती हैक्या आपने कभी अपनी तरह उसे सम्मान दिया है चाहे वो ओई भी औरत होया आप भी उन्ही मे से है जो नारी का सम्मान करना नहीं जानतेक्या यह सच है?



अपनी सनातन संस्कृति के अभिन्न अंग

दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष। 
तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण । 
चार युग - सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग। 
चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम। 
चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !
चार वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद । 
चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !
चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !
पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध , दही , गोमूत्र एवं गोबर , !
पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !
पंच तत्त्व - प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश !
छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय , सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !
सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप !
सप्त पूरी - अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पूरी !
आठ योग - यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधी !
आठ लक्ष्मी - आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग, एवं योग लक्ष्मी !
नव दुर्गा - शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय ,आकाश एवं पाताल !
मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य , कच्छप , बराह , नरसिंह , बामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि !
बारह मास - चेत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष . पौष , माघ , फागुन !
बारह राशी - मेष , ब्रषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , तुला , ब्रश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ , एवं कन्या !
बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्रियम्वाकेश्वर , केदारनाथ , घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर।
पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावश्या।
स्म्रतियां - मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ।


महिलाओ का भी अधिकार है विधवा पुनर्विवाह.........लेखन -प्रद्युम्न सिंह चौहान अगर कोई महिला शादी के कुछ दिन बाद दुर्भाग्य से विधवा हो जाती है तो क्या किया जाना चाहिए ?..शायद आप यही सोच रहे होंगे कि उसका पुनर्विवाह कर दिया जाना चाहिए यदि वह खुद चाहती है कि उसका पुनर्विवाह किया जाये ।यह बात भले ही सही लगे कि पुनर्विवाह कर दिया जाना चाहिए लेकिन सामाजिक रूप से यदि इसे राजपूत समाज के सन्दर्भ में देखा जाये तो यहाँ पर ये नहीं हो सकता है क्योकि राजपूत समाज में विधवा पुनर्विवाह नहीं होता है ।जब बात हम कुरूतियो और समस्याओ की करते है तो राजपूत समाज में एक और समस्या है या कहे कुरूति है "विधवा पुनर्विवाह "|मै आज बहुत ही संवेदन शील मुद्दे पर बात कर रहा हु ,दुर्भाग्य वश किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाने पर राजपूतो में महिलाओ का पुनर्विवाह नहीं होता है |किसी महिला के भी अपने परिवार को लेकर सपने होते है यदि दुर्भाग्य से उसके पति की मृत्यु विवाह के कुछ दिन बाद ,कुछ महीने बाद हो जाती है ,अर्थात महिला को अपने दाम्पत्य का सुख नहीं मिल पाया ,उसके हर्दय में भी ममता है वो भी चाहती है की उसका परिवार रहे ,उसकी संतान रहे वो अपनी ममता उस संतान पर लुटा सके और भी उसकी अपनी भावनाए होती है लेकिन वो महिला गलत प्रथा ,एक कुरूति जिसके अनुसार वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती है ।इस कुरीति के कारण उस महिला की भावनाओ की हत्या की जाती है ,उसका संतान को जन्म देने का और उस पर अपनी ममता को अर्पित करने का सपना अधुरा रह जाता है भले ही उस महिला कि आत्मा कहे कि विवाह कर लेकिन इस सामाजिक कुरूति और गलत सोच के कारण वो अपनी भावनाए समाज में ,परिवार में व्यक्त नही कर पाती है ।हम इसे एक वैज्ञानिक और दार्शनिक नजरिये से देखे तो यह उस महिला के साथ बड़ा अन्याय है क्योकि क्या महिला होना उसकी गलती है ?......जो की नहीं है लेकिन समाज ने जो कुरूति बनाई है वो जरुर गलत है।इस कुरूति के कारण हमारी मातृ शक्तियों का जीवन दुखो से भर दिया गया ,कितनी ही महिलाओ की कोख खाली रह गई होगी ,कितनी ही महिलाओ ने जीवित रहते हुए मृत्यु का अनुभव किया होगा ,समाज के लोगो ने मानसिक प्रताड़ना दी होगी वो अलग ।वैसे भी हम सिर्फ दुखो का आकलन कर सकते है लेकिन दुखो का अनुभव उसे ही होता है जिस पर बीतती है ।पुरुष प्रधान समाज का ये एक बड़ा सच है जिसमे सिर्फ पुरुषो का ये विचार की वो किसी विधवा से विवाह नहीं करेंगे लेकिन यदि किसी महिला की मृत्यु हो जाये तो पुरुष कर सकता है विवाह ।यह एक तरह से महिला और पुरुष में पक्ष पात है ,या कहे एक का सम्मान और दुसरे का अपमान । लेकिन मै यह कहूँगा "यदि महिला चाहे तो उसका पुनर्विवाह किया जाना चाहिए " आपको और समाज के लोगो को ऐसा लगेगा की यह मेरा सामाजिक हस्तक्षेप है समाज में ,लेकिन ये सिर्फ मै नहीं कह रहा हु बल्कि हमारी आर्यावर्त की संस्कृति और वेद कह रहे है |ये प्रथा एक पुरुष प्रधान समाज में पुरुषो के खुद के बनाये नियमो की देन है साथ ही मध्यकाल में मुस्लिम हमलो से हुए परिवर्तनों के कारण भी ये प्रगाड़ हो गई |बात सीधी सी है जब पुरुषो का पुनर्विवाह हो सकता है तो महिलाओ का क्यों नहीं ? मतलब की महिलाओ को आप अपने हिसाब से प्रथाओ में बांध दो और पुरुष समाज अपने लिए या कहे अपने हित के लिए कोई ऐसी प्रथा नहीं बनाई ।जबकि वैदिक संस्कृति ये कहती है की विधवा पुनर्विवाह हो सकता है और होता था |मतलब पहले भारत में विधवा पुनर्विवाह होते थे लेकिन पिछली कुछ शताब्दियों से विधवा पुनर्विवाह करना बंद कर दिया गया ,जबकि कोई महिला चाहती हैकि उसका पुनर्विवाह हो तो यह किया जाना चाहिए | यहाँ पर वेदों में विधवा पुनर्विवाह के लिए कहा गया है जैसे :-ऋग्वेद की ये ऋचा (मंत्र ) कुह स्विद्दोषा कुह ................| को वां शयुत्रा .......................|| (ऋ ० मं० १० |सु ० ४० |मं ० २ ||) इस मंत्र में विधवा स्त्रियों को अपने पति के साथ संतान उत्पन्न करने को कहा गया है मतलब की विधवा पुर्विवाह को यहाँ भी समर्थन है | इसी प्रकार मनु स्मृति में भी कहा गया है तमनेन विधानेन............||मनु ०|| यहाँ पर भी विधवा विवाह करने को कहा गया है | (यहाँ पर मंत्र संस्कृत में टाइप करने में असुविधा के कारण पुरे नहीं लिखे गए लेकिन उनके श्लोक क्रमांक दिए गए है ) इसके अतिरिक्त और भी प्रमाण है जो वेदों में मंत्रो के रूप में है जिनके आधार पर हम कह सकते है कि विधवा पुनर्विवाह करने में कोई बुराई नहीं है। अब ये राजपूत समाज क्यों प्राचीन आर्यवर्त और भारत वर्ष की परम्पराओ से मुख मोड़कर गलत सोच से प्रभावित है ....??.क्या परिवार वाले ऐसी महिलाओ का पुनर्विवाह नहीं कर सकते जो दुर्भाग्य वश बहुत कम उम्र में ही विधवा हो चुकी है ....??जैसे पुरुष पुनर्विवाह कर सकते है, वैसे ही महिलाओ को भी ये अधिकार होना चाहिए वे भी दुर्भाग्य वश विधवा होने पर पुनर्विवाह कर सके ....................मेरा उद्देश्य यह लेख लिख कर सामाजिक ताने बाने को नुकसान पहुचाना नहीं ,बल्कि उसे सुधारकर जागरूकता लाकर वैदिक और आर्यावर्त कि संस्कृति के अनुसार सामाजिक परिवर्तन करना है ,क्योकि हमारे पूर्वज जो वैदिक संस्कृति का पालन करते थे वो इसी प्रकार कि सामाजिक माहौल में रहते थे ,जहा पर विधवा पुनर्विवाह को अनुमति थी |.........सभी राजपूत क्षत्रिय और क्षत्राणी भारत वर्ष कि आर्य संस्कृति को फिर से स्थापित करने के लिए कुछ अच्छे सामाजिक परिवर्तन करे|. जय हाडा रानी ....जय धाय माँ पन्ना ....जय क्षात्र धर्म .....जय आर्यावर्त....जय भारत वर्ष आपका राजपूत बन्धु - विजेंद्र सिंह शेखावत  (राजपूतो में वैचारिक और सामाजिक परिवर्तन करने के लिए एक छोटा सा प्रयास )