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रात को सोते समय श्रीमती ने पूछ लिया - "क्यों जी आपको स्वर्ग में 72  हूरें मिल जायेंगी तो आप क्या करोगे"। हमने कहा - " बिल्कुल आपकी तरह दिखती होंगी तो ठीक वरना हम लौटा देंगे।"  श्रीमति प्रसन्न होकर सो गयीं और हम भी नींद के आगोश मे चले गये।"  सपने में हमने देखा कि हम अस्पताल में भर्ती हैं और हमें स्व. श्रीलाल शुक्ल जी की तरह ज्ञानपीठ पुरुस्कार  देने स्वयं राज्यपाल आये हैं। हमें तभी अंदर से सदबुद्धी ने टोका- " तुझे कहीं पुरूस्कार मिल सकता है रे बुड़बक।" हमनें जवाब दिया- " मियां जिस तरह पुरूस्कारों का स्तर गिर रहा है, हमारे बुढ़ाते तक ज्ञानपीठ पुरुस्कार  भी ऐरे गैरों को मिलने लगेगा।" खैर साहब फ़िर हम  सपने में टपक गये और सीधा स्वर्ग या कहें जन्नत के दरवाजे में पहुंचे।

वहां एक पंडित टाईप और एक मौलवी टाईप द्वारपाल खड़े थे। हमसे पूछा गया कि हिंदू हो या मुसलमान। हमें तत्काल 72 हूरों की बात याद आयी, चूंकि हम ब्राह्मण हैं और वेद पुराण भी बांची है। तो हमे हमे पता था कि अप्सराओं का जिक्र तो है, पर कितनी मिलेंगी इसकी कोई गारंटी नही दी गयी है। सो हमने मुसलमान वाला आप्शन चुना। मौलवी द्वारपाल ने हमारा हिसाब निकाला, बड़े गौर से पढ़ने लगा कि हमे जन्नत अता की जाये या दोजख में धकेल दिया जाये। आखिर में उसने घोषणा की - " वैसे तो जनाब व्यंग्यकार थे और जो लिखा उससे लोग जले भुने ही हैं और नेकी का कोई काम भी नही किया है। पर कर्तव्य की सीमा से आगे बढ़ कर खतरनाक बीबी की मौजूदगी के बावजूद, तहे दिल से घर का झाड़ू, पोछा, बर्तन, चौका करने और बीबी की झिड़कियों को सुनने के बावजूद इसने इसका दोष कभी अल्लाह को न दिया। हर दम अपनी बेवकूफ़ी को ही कोसता रहा। गोया इसे दोजख में मिलने वाले सारे दंड जमीन पर ही मिल चुके है। इसलिये इस इंसान को जन्न्त अता फ़रमाई जाती है।"

 हमें जन्नत के अंदर ले जाया गया और द्वारपाल ने 72 हूरों को बुलवाया और उनसे कहा लो जन्नत का मजा अब ये तुम्हारे हवाले।  हम सकपकाये कहा- " हुजूर जन्नत का मजा लेने हम आये हैं कि ये हूरें।  द्वारपाल ने ठहाका लगाया - "बड़े व्यंग्यकार बने फ़िरते थे मियां, हम तो मजाक कर रहे थे और आप हैं कि घबरा गये।"

खैर साहब द्वारपाल ने बुरका पहनी हूरों को हमारे हवाले किया। हमने कहा- हुजूर जन्नत में भी बुरका। " द्वारपाल बोला- "आदमी को 72  मिलें या 72 सौ, मन तो उसका भरता नही और जन्न्त में परायी औरत पर नजर टिकी नही कि सीधे दोजख मे डाल दिया जाता है। सो आप जैसे लंपट जन्नत का मजा ले सके इसलिये ये सावधनी बरती गयी है।  द्वारपाल के जाने के बाद हम नर्विसिया गये, मुसलमान होते तो कम से कम चार को संभालने  का अनुभव होता यहा तो हम एक भी ठीक से हैंडल न कर पाये थे और अब मामला 72  को संभालने का था।

हमने सोचा जब जन्न्त में ही रहना है तो जल्दबाजी कैसी,  जरा टहल लिया जाये। सो हमने 71 हूरों से अलग अलग तरह के पकवान बनाने को कहा और एक को साथ ले निकल पड़े। सैर के दौरान  हमने हूर से गुजारिश की- " बेगम जरा अपना चेहरा तो दिखाओं।"  हूर ने सकुचाई सी मीठी आवाज में कहा- " हम केवल हरम में बुरका हटा सकते हैं बाकी जगह पाबंदी है"।  हमने सोचा,  खामखा हड़बड़ी की तो जमीन की बेगम की तरह इन बेगमो पर भी हमारा गलत इंप्रेशन पड़ जायेगा।  एक बार इज्जत गवांई तो चौका बर्तन ही नसीब होता है इस बात का हमे अनुभव था ही।

घूमते घूमते हमें एक और जन्नत नशीं सज्जन मिलें, वे पूरे काफ़िले साथ थे। दुआ सलाम हुयी, हमने  कोने में लेकर पूछा- "72 बेगमों को हैंडल कैसे किया जाये, आपने अलग अलग दिन बांधे है कि कोई और व्यवस्था की है।" वे हसने लगे बोले - "मियां अब आप जमीन पर नही जन्नत में हो, यहां ये नही कि दस पराठे खाये और पेट भर गया चाहो तो हजार खा लो।" हमने सोचा ये बात तो अपने भेजे में आयी ही न थी। खुदा ने 72  हूरें दी है तो सोच समझ कर ही न जन्नत आखिर जन्नत कहलाती किसलिये है। हमने सज्जन से हंसी खुशी विदा ली और हूर से कहा अब हम हरम में आराम करना चाहेंगे।


हरम पहुंच कर, बड़े चाव से हमने पकवानों का मदिरा का जी भर आनंद लिया। अब आप ये मत सोच लेना कि चाहे सौ पैग पिये और चढ़ी नह॥ चढ़ी पर बस इतनी कि सुरूर आ जाये,  उसके बाद हमने बत्तियां बुझाने का आर्डर फ़रमाया। फ़िर हुआ क्या ये तो न बता पायेंगे पर तत्काल हरम से दौड़ते भागते हम द्वारपाल के पास पहुंचे। द्वारपाल ने पूछा- क्या हुआ मियां, खैरियत तो है।  हमने कहा - " हुजूर आपसे गड़बड़ हो गयी वो हूर तो हैं पर हूर नही है" द्वारपाल बोला - "मियां हूर तो हैं पर हूर नही है ये क्या कह रहे हो। " हमने फ़ुसफ़ुसाकर कान में कहा- " हुजूर जो हूर आपने दी हैं वो न तो खातून है और न ही मर्द।" द्वारपाल हसने लगा - "मियां और तुम खुद क्या हो ये तो देखो।" हमने देखा तो हम और बौखला गये, हम भी उन खातूनों की तरह बीच का मामला बन चुके थे।

हम द्वारपाल के सामने मिमियाये - "हुजुर, कम से कम हम को तो ठीक कर दो।" द्वारपाल और जोर से हंसा- "मियां तुम अभी तक जमीन मामलो में अटके हो,  मरने के बाद तो रूह ही जन्नत में आती है शरीर थोड़ी न आता है।  रूह तो न आदमी होती है और न औरत, वो तो मां के पेट  अल्लाह उसे आदमी और औरत में तक्सीम कर देता है।"

हमने पूछा- " फ़िर उन हूरों का क्या करें।" द्वारपाल बोला - "अबे रूह हो, रुहानी मजा लो।" हम गुस्से में आ कर जन्नत के बाहर भागने लगे तो द्वारपाल ने पकड़ा- " अब कहा जा रहे हो तुम।" हमने कहा- " उस धोखेबाज, कमीनी तस्लीमा नसरीन को पीटने। खामखा लोगो को बरगलाती है कि आदमी है तो जन्नत में हूरो के साथ  ऐश करेगा और औरत हो तो जमीन में ही ऐश कर लो।"


तभी हमारी आंख खुली तो हमारा बेटा हमें झकजोर रहा था - " पापा उठो किसको धोखेबाज, कमीनी कह के नींद में चिल्ला रहे हो।" तभी पीछे से श्रीमती की आवाज गूंजी - " रहने दे बेटा, कल हूर की बात की थी तो सपने में किसी हूर के पास पहुंच गये होंगे, उसने भगाया होगा तो बड़बड़ा रहे हैं।" खैर साहब हमने राहत की सांस ली कि जिंदा भी है और 72 हूरें न सही, हमारी रग रग पहचानने वाली श्रीमती तो है। और उनके रहते हमारा जन्नत जाना तय है यह तो आप अब तक जान ही चुके होंगे।



नुक्कड़ पर बैठे हम मिलावटी कत्थे वाला पान चबा ही रहे थे कि उधर से गुजरता कालू गरीब हमे देख रूक गया।  हमसे बोला - "दवे जी,  ये सेक्सी किस बला का नाम है।"  हमने कालू की तरफ़ गौर से देखा और यह तय करने की कोशिश करने लगे कि यह सेक्सी के बारे में जानकारी रखने का पात्र है कि नही।  फ़िर हमने तय किया कि सूचना के अधिकार के तहत इसे इस विषय पर सूचना दी जा सकती है। सो हमने महिला आयोग की अध्यक्षा अनादरणीय ममता जी की राय बताई  - "मिया कालू बात ऐसी है कि सेक्सी का अर्थ सुंदर होता है।" कालू न अपना सर खुजाया- " भैया फ़िर सुंदर शब्द में क्या बुराई कि लोग हाय तौबा मचा रहे हैं।" हमने अपने मुह मे कुचले जा रहे पान पर गौर फ़रमाया साफ़ नजर आ रहा था कि ये कालू हमारे पान का बलिदान व्यर्थ करवा कर ही दम लेगा। सो हमने बेमन से पान को थूका और कालू को खींच अपने पास खड़ा किया और बोले -"अबे पांच रूपये के पान का कत्ल तो करवा के ही चैन मिला तुझे खैर अब ध्यान से सुन। ये सेक्सी वाला लफ़ड़ा आदमियो पर लागू नही होता। इतना कहते ही हम ठिठक गये,  तकनीकी रूप से हमारी बात सही नही बैठ रही थी। आजकल गे वाला लफ़ड़ा भी जोरो पर है। हर दिन फ़ेस बुक पर हमे कोई न कोई बंदा हमे सेक्सी और हैंडसम करार देता है।  पता करने वाली बात सिर्फ़ इतनी बाकी है कि भाईयो को हम आगे से सेक्सी नजर आते हैं कि पीछे से।

 खैर इस तकनीकी मामले का बोझ कालू पर न डालते हुये,  हमने बात आगे बढ़ाई।  बोले " रै कालू , ये सेक्सी कहो या सुंदर, ये लड़कियो पर ही लागू होता है। अब  सामने से आती हुयी उस लड़की को सुंदर कह दें तो खा वो बुरा मान जायेगी या खुश भी हो सकती है। अब मियां यह तो ऐसा मामला है कि ठीक ठीक कहा नही जा सकता।  इस लिये कई लोग सेक्सी शब्द का बुरा मना रहे हैं। कालू मानने को खाली न हुआ, बोला- " भईया आप साफ़ मतलब नही बता रहे हो। हमको सेक्सी का हिंदी अर्थ बताओ पहेलियां न बुझाओ। हमने टरकाने के उद्देश्य से कहा- " भाई कालू,  सेक्सी का कोई ठीक ठीक मतलब नही है। सुंदर लड़कियो को सेक्सी कहते हैं ऐसा ही सुना है हमने तो।"

लेकिन कालू युपी चुनाव के कारण अपनी ताकत पहचान चुका था। भड़क कर जोर से बोला- हां भैया, ब्राह्मण हो हम दलितो, अल्पसंख्यको, पिछड़ो तक जानकारी पहुंचने क्यो दोगे। बहन जी,  कहती ही हैं कि मनुवादी, सामंतवादी सोच वाले हमको पिछड़ा रखना चाहते है।  इसिलिये आप सेक्सी का मतलब नही बता रहे हो।"

अब तक चारो ओर भीड़ जमा हो चुकी थी और सारे कालू से सहमत भी नजर आ रहे थे। हमने माथा ठोक लिया, वाह रे राजनीती सेक्सी तक को घसीट लिया। अब हमने कालू को गुस्से से घूरा- "अबे सुन,  अब हम कहेंगे  और टोकना मत बीच में,  आज बहन जी को दलित सेक्सी नजर आ रहे है। मुलायम को यादव और मुसलमान॥  कांग्रेस को दलित और मुसलमान। भाजपा को बाबा रामदेव और बिना जाति के हिंदु। अब समझा सेक्सी का मतलब कि नही।"

लेकिन साहब पूंजिवादियो के शब्दो में कहा जाये तो,  कालू समझदार ही होता तो गरीब क्यो रहता। सो कालू ने इंकार में सर हिला दिया। हमने दूसरी तरीके से समझाने की कोशिश की-  " देख भाई सेक्सी ऐसा शब्द है जो बजरंग दल की नजर में संस्कृति विनाशक,  जमाते इस्लामी की नजर मे कुफ़्र,  भाजपा की नजर में बेशर्मी है। रही कांग्रेस की बात, तो जब तक प्रियंका पर इसका उपयोग न किया जाये।  उन्हे इस शब्द से कुछ खास दिक्कत नही है।"
हमने फ़िर कालू की तरफ़ देखा, घोंचू फ़िर भी इंकार में सर हिला रहा था। हम और भड़क गये कहा -"अबे बात तो पूरी होने दे क्या विपक्षी पार्टियो की तरह हर बार मुंडी हिला दे रहा है। ध्यान से सुन,  दिल्ली के मिरांडा कालेज यह शब्द आम है,  खालसा कालेज मे खास। मदरसो में इस शब्द के प्रयोग पर जूते पड़ सकते है।  होटल ताज में मिलने वाला हर युवा "बड़े सेक्सी नजर आ रहे हो" जुमले का प्रयोग करता है। वहां पर,  यह शब्द इतना इज्जतदार है कि भाई अपनी बहन पर भी इस जुमले का इस्तेमाल कर लेता है। अपने छत्तीसगढ़ी में सेक्सी को "ठांय, ठांय़" कहा जाता है। तो बाम्बे के मिडल क्लास में सेक्सी को "झकास" कहा जाता है।"

"और सुन,  अलग अलग लोगो को अलग अलग चीज सेक्सी लगती है।  नेताओ को मंत्री पद तो अफ़सरो को पोस्टिंग सेक्सी नजर आता है।  ठेकेदार को सूखा और बाढ़ राहत से सेक्सी कुछ नही दिखता,  तो सीजन आने पर कुत्ते को कुतिया से सेक्सी कुछ नही। मियां यह सेक्सी शब्द ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है। भैस, गधा, घोड़ा चिडिया सब को अपना साथी टाईम, टाईम पर सेक्सी दिखता है। और इंसान को टाईम, बेटाईम भी सेक्सी  देखने में कोई गुरेज नही है।  इंसान और जानवरो में अंतर सिर्फ़ इतना है कि यह सेक्सी दिखना,  जब बंद कमरे मे होता है तो सभी धर्मो की पताकाये आसमान में लहराने लगती है।  और खुले में धोखे से भी नजर आ जाने पर सारे धर्म धार्मिक शोक की घोषणा कर झंडा आधा झुका लेते हैं।

इतना कहते कहते,  मैं हांफ़ गया।  लोगो ने पानी पिलाकर मुझे फ़िर से नार्मल किया।  तो मैने देखा,  कालू अब भी नाखुश था। उसके भेजे में बात नही घुसी थी।  इतना समझाने पर भी न समझ पाने का मलाल उसके चेहरे पर साफ़ देखा जा सकता था। हमे दया आ गयी,  हमने कहा -"गलती तेरी नही है भाई कालू।  बड़े बड़े रिषी मुनी भी इस सेक्सी चीज को समझ नही पाये है,  अब तू एक्दम ध्यान से सुन। देख मामला ऐसा है कि कम कपड़े पहनने वाली लड़कियो को सेक्सी कहा जाता था।  पर अब जमाना बदल रहा है,  आजकल हाई सोसाईटी के लोग पूरा श्रंगार की हुयी दुलहन को भी उसके होने वाले पति के सामने सेक्सी कह देते हैं।"

 कालू ने प्रश्न किया- "भैया ये सेक्सी बनना तो बहुत खतरनाक काम है। कम कपड़े पहनेंगे तो गुंडे पीछे नही पड़ जायेंगे।" हमने सर हिलाया, "  सारा लफ़ड़ा चालू वही से हुआ है रे भाई।  बीच में विश्व भर मे माडर्न लड़कियो ने प्रदर्शन किये है,  कि हम कपड़े पहने,  कम पहने,  न पहने पर हमारे पीछे मत पड़ो।" कालू ठठा कर हसा - "वाह रे मूर्खन की बुद्धी,  अब कोई बोर्ड लगायेगा कि चोरी मत करो तो क्या चोर मान जायेगा।"  हमने कालू को गले से लगा लिया- "वाह अब बात तेरे समझ मे आ ही गयी,  बधाई हो।" कालू ने फ़िर झटका दिया- "सेक्सी का मतलब कहा बताये हो अभी।"



हमने कहा-  "मिया कालू  आगे की बात बहुत गहरी है और ध्यान से सुन।  देख इस सेक्सी शब्द से अपना  कोई लेना देना नही है, खास कर अपने भारत में।  देख भाई,  हमारे यहां जब कोई लड़का किसी लड़की को देखता है। तो उसे तड़ से अपने मन के बैडरूम के मखमली बिस्तर में ले जा शुरू नही हो जाता। भाई सुंदर लड़किया सिर्फ़ सुंदर नजर आती है बस। उनसे बात करने की इच्छा होती है।  उसके साथ समय बिताने की इच्छा होती है। मियां सो भारत में किसी भी लड़की को सेक्सी नही कहा जा सकता। हां विदेशो मे या इंडिया मे जहां स्त्री का अर्थ सिर्फ़ उसके तन से हो सेक्सी कहा जा सकता है।

कालू को बड़ी देर बाद यह बात समझ में आई कि जिससे वह सेक्सी का अर्थ पूछ रहा है उसे खुद ही नही मालूम। उसने हमारा दिल रखने के लिये कहा -"भैया मै  समझ गया" और हमसे विदा ली। हमने भी चैन की सांस ली। जब से ये मुआ टीवी गांव गांव में पहुंच गया है  नुक्कड़ में बैठना खतरे से खाली नही।  पता नही कब क्या पूछ बैठे।




बेटियां आँगन की महक होती हैं

बेटियां चौंतरे की चहक होती हैं


बेटियां सलीका होती हैं

बेटियां शऊर होती हैं


बेटियों की नज़र उतारनी चाहिए

क्योंकि बेटियां नज़र का नूर होती हैं

इसीलिए

बेटी जब दूर होती हैं बाप से

तो मन भर जाता संताप से


डोली जब उठती है बेटी की

तो पत्थरदिलों के दिल भी टूट जाते हैं


जो कभी नहीं रोता

उसके भी आँसू छूट जाते हैं


बेटियां ख़ुशबू से भरपूर होती हैं
उड़ जाती हैं तब भी सुगन्ध नहीं जाती

क्योंकि बेटियां कपूर होती हैं


बेटी घर की लाज है

बेटी से घर है समाज है

बेटी दो दो आँगन बुहारती है

बेटियां दो दो घर संवारती हैं


बेटी माँ बाप की साँसों का सतत स्पन्दन है

बेटी सेवा की रोली और मर्यादा का चन्दन है

बेटी माँ का दिल है, बाप के दिल की धड़कन है



बेटी लाडली होती है सब की

बेटियां सौगात होती है रब की


बेटे ब्याह होने तक बेटे रहते हैं

लेकिन बेटी आजीवन बेटी रहती हैं


बेटियों की गरिमा पहचानता हूँ

बेटियों का समर्पण मैं जानता हूँ

इसलिए बेटी को मैं पराया नहीं

अपितु अपना मूलधन मानता हूँ


उस रात
चाँद नहीं निकला था
आकाश अँधेरे से
सरोबार था
पुरुष ने स्त्री को देखा
उसने उसकी देह की भाषा
पढ़ ली थी,
उसको बहलाया फुसलाया
उसके कसीदे में गीत लिखे
उस पर कविताएं लिखी
उसको आजादी का अर्थ बताया
तरक्की के गुण बताये
आखेट पर निकलने का शौक रखने
वाले की तरह
जगह जगह जाल बिछाया
नारी मुक्ति की बात कही
सपनों के स्वपनिल संसार का
झूठ बोला,

स्त्री ने प्यार भरी आँखों से
उसकी आँखों में झांका,
तीतर की तरह पंख फड़फड़ाता
पुरुष उसको
निरीह सा लगा
वह उसे देखकर मुस्कराई
और सपनो के सुनहरे संसार में
उड़ने लगी
आकाश की उत्कंठा में
लुका-छिपी का खेल देर-देर तक
चलता रहा
थके हुए क्षणों से
जिस चीज पर नारी नीचे गिरी
वह पुरुष का करीने से
बिछाया हुआ बिस्तर था.......


एक ही विकल्प भारत 
एक सर्वे के अनुसार तीन वर्ष का बच्चा जब टी.वी. देखना शुरू करता है और उस घर में केबल कनैक्शन पर 12-13 चैनल आती हों तो, हर रोज पाँच घंटे के हिसाब से बालक 20 वर्ष का हो तब तक इसकी आँखें 33000 हत्या और 72000 बार अश्लीलता और बलात्कार के दृश्य देख चुकी होंगी।यहाँ एक बात गंभीरता से विचार करने की है कि तो जो बालक 33 हजार बार हत्या और 72 हजार बार अश्लीलता का दृश्य देखेगा तो वह क्या बनेगा? आप भले झूठी आशा रखो कि आपका बच्चा इन्जीनियर बनेगा, वैज्ञानिक बनेगा, योग्य सज्जन बनेगा, महापुरूष बनेगा परन्तु इतनी बार अश्लीलता और इतनी हत्याएँ देखने वाला क्या बनेगा ? आप ही दुबारा विचार करे की कंही अधिक टीवी देखने के कारण आपके परिजन कंही अपराध और अनेतिक दुनिया में कदम तो नहीं रख रहे ?


तेग़-ओ-खंजर उठाने का वक़्त आ गया
लोहू अपना बहाने का वक़्त आ गया

सर झुकाते - झुकाते तो हद हो गयी
अब तो नज़रें मिलाने का वक़्त आ गया

ख़त्म दहशत पसन्दों को कर दें ज़रा
मुल्क़ में अम्न लाने का वक़्त आ गया

क़त्ल-ओ-गारत के साये हटाने चलें
अब तो मौसम सुहाने का वक़्त आ गया

क्यों अँधेरे में बैठे हो 'अलबेला' तुम ?
अब तो शमा जलाने का वक़्त आ गया

जय हिन्द !


मुझे किसी से कोई गिला ही नही,
वो मेरा था ही नहीं ,जो मुझे मिला ही नहीं
डरते थे कि कैसे जियेंगे उस से बिछड कर
पर अब तो यादों का सिलसिला भी नहीं 
मुझे तुझसे कोई शिकायत भी नहीं
जो समझ सके मुझको वो तू नहीं
शायद ऐसा कभी कोई मिला ही नहीं
फिर भी इस ज़माने से अकेले लड़ने का हौसला बाकि है मुझमे
तुम्हारे बाद कितने ही तूफां आये
पर मैं कभी हिला भी नहीं 


किसी मासूम को रेशम में लिपटा फेक आई है
कोई शहज़ादी एक नन्हा फ़रिश्ता फेक आई है ..........


यतीमों में इज़ाफा हो गया फुटपाथ पर फिर से 
अमीरी फिर कोई नापाक़ रिश्ता फेक आई है ................


उसी बुनियाद पर देखो अमीर ए शहर बसता है
गरीबी जिस जगह अपना पसीना फेक आई है ..........

वो पागल आँख में आंसू तो अपने साथ ले आई
मुहब्बत की निशानी था जो छल्ला,फेक आई है .............

ये मैं ही हूँ मुसलसल चल रहा हूँ नंगे पावों से
कि ये तक़दीर तो राहों में शीशा फेक आई है .....................


आज ४-फरवरी को चौरा चौरी काण्ड की बरसी है . चौरी चौरा उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी , जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है।

भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ (बैसाखी के दिन) को रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल ओ. डायर नामक एक अँगरेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें १००० से अधिक व्यक्ति मरे और २००० से अधिक घायल हुए। इस नरसंहार के बाद सारे देश में अंग्रेजो के खिलाफ नफरत की भावना पैदा हो गयी थी .

इस घटना के बाद देश में अंग्रेजों के खिलाफ जन आक्रोश को देखते हुए , गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया था . गोरखपुर में आन्दोलन करने वालों पर पुलिस ने अँधा-धुंध गोली चला दी थी . जिसमे काफी लोग मारे गए थे, इस पर बहा के लोगों ने मिलकर पुलिस पर हमला बोल दिया और और अंग्रेज पुलिस वालों बहुत पीटा. कुछ तो इधर उधर भाग गए बाकी अंग्रेज पुलिस बाले , चौरा चौरा थाने में चुप कर जनता पर गोलियां चलाने लगे . इस पर आन्दोलन कारियों ने थाने में आग लगा दी जिसमे २२ पुलिस बाले मारे गए .

जालिम अंग्रेजों की हिम्मत जलियाँ बाले बाग़ काण्ड के बाद बहुत बढ़ चुकी थी, लेकिन इस घटना के बाद उनको भी हिन्दुस्तानियों से भय लगने लगा था . इस इस घटना के बाद अंग्रेजों को लगने लगा कि अब जनता पर जुल्म करना तो दूर अपनी जान बचाना भी मुस्किल है. इस लिए इस काण्ड के बाद १७७ लोगों को फांसी की सजा सुनायी गयी थी , मगर महामना मदन मोहन माल्वीय जी के प्रयास से 15८ लोगों की जान बच सकी थी . १९ लोगो को २-जुलाई १९२३ को फांसी पर लटका कर शहीद कर दिया गया था .

इसके अलावा अंग्रेजों ने मुसलमानों के लिए एक अलग मुस्लिम देश बनाने का लालच देकर, मुसलामानों को असहयोग आन्दोलन से अलग किया और फिर गांधी पर दबाब डालकर आन्दोलन बापस लेने पर मजबूर किया . गांधी ने कहा कि - हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था . उसके बाद भारतीय क्रांतिकारियों का दमन करना शुरू कर दिया था .

२- जुलाई १९२३ को चौरी चौरा कांड के क्रांतिवीरो को, देश के विभिन्न जेलों में फासी पर लटका दिया गया . जिन १९ क्रांतिकारियों को फासी हुई थी उन शहीदों के नाम इस प्रकार हैं .--

१- अब्दुल्ला उर्फ़ सुकई
२-भगवान
३-विकरम
४-दुधई
५-कालीचरण
६-लाल्मुहमद
७-लौटू
८-महादेव
९-लालबिहारी
१०-नज़र अली
११-सीताराम
१२-श्यामसुंदर
१३-संपत रामपुरवाले
१४-सहदेव
१५- संपत चौरावाले
१६-रुदल
१७-रामरूप
१८-रघुबीर
१९- रामलगन

इन अमर शहीदों को मेरा कोटि कोटि नमन, भारत माता कि जय, वन्दे मातरम , जय हिंद .....