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जब वोडाफोन के एक विज्ञापन में
दो पैसो मे लड़की पटाने की बातकी जाती है तब कौन ताली बजाता है?पेन्टी हो या पेन्ट हो, कॉलगेटया पेप्सोडेंट हो,साबुन या डिटरजेण्ट हो , कोईभी विज्ञापन हो,1.सब में ये छरहरे बदन वाली छोरियो केअधनंगे बदन को परोसना क्या नारीत्व केसाथ बलात्कार नहीं है?2. फिल्म को चलानेके लिए आईटम सॉन्ग केनाम पर लड़कियो को जिस तरहमटकवाया जाता है या यू कहे लगभगआधा नंगा करके उसके अंग प्रत्यंगको फोकस के साथ दिखाया जाता हैवो स्त्रीयत्व के साथ बलात्कारकरना नहीं है क्या?3. पत्रिकाए हो याअखबार सबमेआधी नंगी लड़कियो के फोटो किसके लिएऔरक्या सिखाने के लिए भरपूर मात्र मे छापेजाते है? ये स्त्रीयत्व का बलात्कारनहीं है क्या?4. दिन रात , टीवी हो या पेपर , फिल्मेहो या सीरियल, लगातार स्त्रीयत्वका बलात्कार होते देखने वाले, और उस परखुश होने वाले, उस का समर्थन करने वालेक्या बलात्कारीनहीं है ?5. संस्कृति के साथ , मर्यादाओ के साथ,संस्कारो के साथ, लज्जा के साथ जो ये सबकिया जा रहा है वो बलात्कार नहीं हैक्या?6. निरंतर हो रहे नारीत्व के बलात्कार केसमर्थको को नारी के बलात्कार पर शर्मआना उसी तरह है जैसे मांस खाने वाला ,लहसुन प्याज पर नाक सिकोडेजिस देश में "आजातेरी _ मारू , तेरे सर से __का भूत उतारू" जैसा गाना गानेवाला हनीसिंह ,सीरियल किसर कहे जाना वाला इमरानहाशमी,और इसी तरह का नंगा नाच फैलाने वालेभांडयुवाओ के " आइडल" बन रहेहो वहा बलात्कार औरछेडछाड़ की घटनाए नहीं तो औरक्या बढ़ेगा?कुल मिलाकर मेरे कहने का अर्थ ये है भाईकि जबहम स्त्रीयत्व का सम्मान करना सीखेंगेतभी हमनारी का सम्मान करना सीख पाएंगे। .

कुं  विजेन्द्र शेखावत 
सिंहासन 



एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम करने के बाद थका -हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका पांच वर्षीय बेटा सोने की बजाये उसका इंतज़ार कर रहा है .अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?”
“ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा .
बेटा - “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?”
“ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया .
बेटा - “ मैं बस यूँही जानना चाहता हूँ . प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?” पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , “ 100 रुपये .”
“अच्छा ”, बेटे ने मासूमियत से सर झुकाते हुए कहा -,
“ पापा क्या आप मुझे 50 रूपये उधार दे सकते हैं ?”
इतना सुनते ही वह व्यक्ति आग बबूला हो उठा , “ तो तुम इसीलिए ये फ़ालतू का सवाल कर रहे थे ताकि मुझसे पैसे लेकर तुम कोई बेकार का खिलौना या उटपटांग चीज खरीद सको ….चुप –चाप
अपने कमरे में जाओ और सो जाओ ….सोचो तुम कितने स्वार्थी हो …मैं दिन रात मेहनत करके पैसे कमाता हूँ और तुम उसे बेकार की चीजों में बर्वाद करना चाहते हो ”
यह सुन बेटे की आँखों में आंसू आ गए …और वह अपने कमरे में चला गया .
व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे कि ऐसा करने कि हिम्मत कैसे हुई ……पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ , और सोचने लगा कि हो सकता है
कि उसके बेटे ने सच -में किसी ज़रूरी काम के लिए पैसे मांगे हों , क्योंकि आज से पहले उसने कभी इस तरह से पैसे नहीं मांगे थे .फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “
क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया .
“ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया , दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुत थक गया था .” व्यक्ति ने कहा .''सारी'' ….ये लो अपने पचास रूपये .”
ऐसा कहते हुए उसने अपने बेटे के हाथ में पचास की नोट रख दिया .
“थैंक यू पापा ” बेटा ख़ुशी से पैसे लेते हुए कहा , और फिर वह तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा .
यह देख व्यक्ति फिर से क्रोधित होने लगा , “ जब तुम्हारे पास पहले से ही पैसे थे तो तुमने मुझसे और पैसे क्यों मांगे ?”
“ क्योंकि मेरे पास पैसे कम थे , पर अब पूरे हैं ” बेटे ने कहा .
“ पापा अब मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .”

दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान
रखना होगा कि इस आपा-धापी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें भी अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया.
 

कुं  विजेन्द्र शेखावत 
सिंहासन 


मुझे ये बात समझ नही आती की सभी महिलाओ को लेकर बात करते हैं की दोष महिलाओ और लडकियों का,,,,क्यों,, कैसे क्या कभी किसी ने जानने की कोशिश की की ,,,एक मा चाहती क्या है ,,पत्नी क्या चाहती है ,,,आपकी बेटी क्या करना चाहती है,,,,समाज के बड़े बड़े ठेकेदार बस नियम बना देते हैं ,,,या पुराने नियमो पर चलने को कहते हैं,,,तो क्या कभी उब लोगो ने सोचा है की उनके बेटे ,,,या वो खुद क्या करते हैं ,,,समाज की कुरूतियो को मिटाने की बाते करते हैं ,,,जाने कितने ही मंचो पर चढ़ समाज बेटे और बेटियों में फर्क न करो जैसी बाते करते हैं ,,,और उनके खुद के ही घरो में ,,,,,बेटियों की मर्ज़ी कितनी पूछी जाती है ,,,शायद स्वयं भी नही जानते होंगे....वो 
नियम सारे ,,,बेटियों के लिए ही क्यों....बेटो पर ये लागू क्यों नही,,,,
मेने आज कहीं पढ़ा की जिस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है--- वो रात में कर क्या रही थी......अजीब है क्यों क्या उसे कोई काम नही हो सकता था ,,,क्या उसका रात में घर से निकलना गुनाह हैक्या किसी ने पूछा की वो लड़के रात में घर से बाहर क्या कर रहे थे ,,,जिन्होंने ये घिनोना काम किया ,,,नही क्योकि ,,,दोष तो लड़की का है ,,,ये तो पहले से ही तय है.....
संस्कारों की बाते करते हैं ,,,,और स्वयं ,,,,,कहाँ हैं हम सब.....
खुद दोहरी मानसिकता में जीते हैं...और बात करते हैं समाज सुधार 
मुझे लगता है की सुधार की जरूरत पहले हमहें है स्वयं सुधर जाये तभी बाते करे दूसरो को सुधारने की.........


कुं विजेन्द्र शेखावत
सिंहासन 





कई दिनों बाद किसी का फोन आया।
मै बना रहा था सब्जी, उसे छोड़कर उठाया।।
मैंने कहा सॉरी हियर इज मुकेश!
मुझे सब पता है तुम नरेश ही बोल रहे हो।।
मै कैसे तुम्हे समझाऊँ। मुकेश हूँ नरेश को कहाँ से लाऊं।।
उसने बड़े जोर से, रिसीवर को पटका।।
मै बाथरूम से भागा, दीवार से टकराया।
फिर भी गिरते पड़ते, फोन उठाया।।
मै खीझकर चिल्लाया! नहीं उसका बाप मुकेश।।
खुश रह आज तो मै, बच गया मरते मरते।।
मैंने जवाब दिया-
मैंने आह भरी! इतनी जल्दी मरेगा,
मै रोया! मेरा बेटा मरा है, कम से कम झूठी तसल्ली तो दे दो।।
उसको मेरी बातों में दिखी सच्चाई।
तब उसने अपनी गाथा सुनाई।।
अंकल मुझे आपका दर्द पता है।
पर इसमें मेरी क्या खता है।।
आपको क्या पता उसने मेरे साथ क्या किया था।
इंडिया गेट पर ही मेरा चुम्मा ले लिया था।।
इसके अलावा भी उसने मुझको ठगा था।
लालकिले पे मेरा पर्स ले भगा था।।
उसकी इस हरकत पर मेरे डैडी ने डांटा।
तो उसने मेरे बाप को भी जड़ दिया चांटा।।
अच्छा हुआ मर गया आपका कपूत।।
स्वर्ग तो जायेगा नहीं नरक तक खदेड़ूगी।।
मैंने  उसको समझाया।
पैर भी दबाऊंगा अगर तुम कहोगी।।
भगवान से नहीं, मुझसे तो डर।।
कलयुग में पूतना का दूसरा अवतार हूँ।।
तूने कैसे सोचा मै तुझसे रिश्ता जोडूंगी।।
अरे तू! इस धरती पर अभिशाप है।
नरेश तो ठग ही था, तू तो उसका भी बाप है।।
सिंहासन 



उधर से एक पतली सी आवाज आयी हैलो नरेश!

उसने कहा! क्यों बेवकूफ बना रहे हो।

मै थोडा गुस्से में बोला! तुम हो कैसी बला।।

उसको मेरी बातों से, हुआ कुछ खटका।

तब मुझको किचन से, कुछ बदबू सी आयी।
राँग नम्बर के चक्कर में, मैंने सब्जी जलवायी।।

दूसरे दिन फिर, उसका फोन आया।

सिर के बल गिरा, नाक से खून आया।।

फिर वही आवाज, आयी हैलो नरेश।

उसने कहा अंकल नमस्ते! मैंने भी आशीष दिया-

वो थोड़ा शरमाई, फिर गिड़गिड़ायी-

अंकल नरेश से बात करा दो, मै पूनम बोल रही हूँ।
नरेश तो सुबह ही मर गया, अभी दफना कर आ रहा हूँ।।

उसको हुआ कुछ शक। उसने कहा बक॥
अभी कल ही तो दिखा था।
क्या मुझको ये पता था।।

आवाज आयी अच्छा अतुल का नम्बर बता दो।


वो था ही इतना कमीना।

बेकार था उसका जीना।।


और क्या बताऊँ मै उसकी करतूत।

लेकिन मै उसे अब भी नहीं छोडूंगी।

दो चार अवधी बातों का जाम पिलाया।।

और कहा! छोडो भी ये गुस्सा।
खत्म हुआ नरेश का किस्सा।।
मै उससे हूँ शर्मिंदा।
शायद तुम्हारे लिए हूँ जिन्दा।।
मुझसे शादी करोगी? सच कह रहा हूँ

वो गुर्रायी! चुप बुड्ढे, कुछ तो शरम कर।

तुझे क्या पता मै कितनी खूंखार हूँ।


मै तो अभी तेरे बेटे को ही नहीं छोडूंगी।


उस  दिन  ही  मैंने,  वो फोन कटा दिया।
पर उसने बिन ब्याहा, बाप मुझे बना दिया॥

कुं विजेंद्र शेखावत 



हे भगवान्!
द्रौपदी ने माँगा था वरदान,
उसे एसा पति चाहिये,
जो सत्यनिष्ठ हो,
प्रवीण धनुर्धर हो,
हाथियों सा बलवान हो,
सुन्दरता की प्रतिमूर्ति हो,
और परम वीर हो,


आप एक पुरुष में ,ये सारे गुण,
समाहित न कर सके,इसलिये
आपने द्रौपदी को ,इन गुणों वाले,
पांच अलग अलग पति दिलवा दिये


हे प्रभो,
मुझे ऐसी पत्नी चाहिये,
जो पढ़ी लिखी विदुषी हो,
धनवान की बेटी हो,
सुन्दरता की मूर्ति हो,
पाकशास्त्र में प्रवीण हो ,
और सहनशील हो,


हे दीनानाथ,
आपको यदि ये सब गुण,
एक कन्या में न मिल पायें एक साथ
तो कुछ वैसा ही करदो जैसा,
आपने द्रौपदी के साथ था किया
मुझे भी दिला सकते हो इन गुणों वाली
पांच  अलग अलग  पत्निया
या फिर हे विधाता !


सुना है कुंती को था एसा मन्त्र आता ,
जिसको पढ़ कर,
वो जिसका करती थी स्मरण
वो प्यार करने ,उसके सामने,
हाज़िर हो जाता था फ़ौरन
मुझे भी वो ही मन्त्र दिलवा दो,
ताकि मेरी जिंदगी ही बदल जाये
मन्त्र पढ़ कर,मै जिसका भी करूं स्मरण,
वो प्यार करने मेरे सामने आ जाये
फिर तो फिल्म जगत की,
सारी सुंदरियाँ होगी मेरे दायें बायें
हे भगवान!
मुझे दे दो एसा कोई भी वरदान

कुं विजेंद्र शेखावत 
सिंहासन 



एक विज्ञान पर आधारित फ़िल्म फाटक बाबू और खदेरन देख आए। काफ़ी प्रभावित हुए। दोनों के मन में आया ‘क्यों न हम भी कुछ वैज्ञानिकों जैसा काम कर जाएं!’
खदेरन बोला, “फाटक बाबू इसके लिए तो पहले रिसर्च करना होगा!”
फाटक बाबू ने हामी भरी, “बिल्कुल!! चलो मेढक पकड़ लाओ! सब साइंस वाला तो वहीं से शुरु करता है।”
खदेरन राणा टिग्रिना पकड़ लाया। फाटक बाबू बोले, “मैं एक्स्पेरिमेंट करता हूं, तुम रिज़ल्ट नोट करते जाना, और फिर फाइनली कुछ निष्कर्ष निकाला जाएगा!”
खदेरन ने कहा, “ओ.क्के.!!”
फाटक बाबू ने मेढक की एक टांग काटी, और कहा, “कूदो!”
मेढक कूदा !
खदेरन ने नोट किया, “मेढक ३.५ फ़ीट कूदा!”
फाटक बाबू ने मेढक की दूसरी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”
मेढक कूदा!!
खदेरन ने नोट किया, “मेढक २.५ फ़ीट कूदा!”
फाटक बाबू ने मेढक की तीसरी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”
मेढक कूदा!!!
खदेरन ने नोट किया, “मेढक १.५ फ़ीट कूदा!”
फाटक बाबू ने मेढक की चौथी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”
मेढक नहीं कूदा …. !!!!
खदेरन ने चिल्लाकर कर रिज़ल्ट बताया, “जब मेढक की चौथी टांग काट दी जाती है, तो वह बहरा हो जाता है!!!”
फुलमतिया जी और खंजन देवी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा!! चिला पड़ीं, “हैप्पी न्यू ईअर!!!”

कुं विजेंद्र शेखावत 
सिंहासन 


आइये आज आपको डिजिटल केमरे के कुछ फंक्शन बताते है 
Basic shooting modes (बेसिक शूटिंग मोडस)

Auto Mode (ऑटो मोड): यह मोड नौसिखिओं के लिए होता है | इसमें हर बात कैमरा ही तय करता है | आपको कुछ भी नहीं करना है, बस कैमरा ओन कीजिये और बटन दबाइए |

Program Mode (प्रोग्राम मोड): कैमरा में इस मोड को “P” से जाना जाता है | यह लगभग ऑटो मोड की तरह ही होता है बस फर्क यह है कि इसमें आप ISO, फ्लश और White balance
 तय कर सकते हैं | अपरचर और शटर स्पीड कैमरा खुद तय करता है |

Macro mode (मैक्रो मोड): इस मोड में आप छोटी वस्तुओं का चित्र ले सकते हैं अथवा किसी चीज़ का पास से चित्र लेना हो तो इस मोड का इस्तमाल कर सकते हैं | यह एक तरह का “P” मोड ही है पर इससे पास कि वस्तुओं का चित्र बेहतर आता है | मसलन मान लीजिए कि आप किसी फूल या कीड़े की तस्वीर लेना चाहते हैं, तो आप इस मोड का इस्तमाल कीजिये | मैक्रो फोटोग्राफी के लिए मैक्रो लेन्स की ज़रूरत भी होती है | इस मोड में कैमरा खुद ही अपरचर बढ़ा कर DoF कम कर देता है ताकि छोटी वस्तुओं का चित्र साफ आये और बैकग्राउंड धुंधला जाय |

Sports mode (स्पोर्ट्स मोड): यह मोड साधारणतः खेल कूद के चित्र लेने के लिए इस्तमाल होता है क्यूंकि इससे आप तेज रफ़्तार वस्तु या लोगों की तस्वीर ले सकते हैं | इस मोड में कैमरा खुद ही ISO settings और शटर स्पीड बढ़ा देती है ताकि तेज रफ़्तार वस्तुओं की तस्वीर ली जा सके और धुंधलापन न हो |
Portrait mode (पोर्ट्रेट मोड): इस मोड में भी कैमरा खुद ही अपरचर बढ़ा कर DoF कम कर देता है ताकि आप लोगों के चेहरे का चित्र ले सकें और बैकग्राउंड धुंधला आये |

Landscape mode (लैंडस्केप मोड): इस मोड में कैमरा खुद ही अपरचर घटा कर DoF बढ़ा देता है ताकि आप प्राकृतिक दृश्य इत्यादि के चित्र ले सकें और बैकग्राउंड साफ़ आये |
Creative modes (क्रिएटिव मोड्स)

Shutter Priority Mode (शटर प्रायोरिटी मोड): Nikon के कैमरों में इसे “S” से और Canon के कैमरों मे “Tv” चिन्ह से जाना जाता है | इसमें आप शटर स्पीड खुद तय करते हैं और कैमरा तय करता है कि अपरचर क्या होगा | P mode जैसे ही ISO, Flash और White Balance आप तय करते हैं | तेज रफ़्तार वस्तुओं का चित्र लेना हो तो इस मोड का इस्तमाल करना चाहिए |
Aperture Priority (अपरचर प्रायोरिटी मोड): Nikon के कैमरों में इसे “A” से और Canon के कैमरों मे “Av” चिन्ह से जाना जाता है | इससे आप तस्वीर की Brightness तय करते हैं क्यूंकि अपरचर कम ज्यादा करने से अंदर आती रौशनी कम या ज्यादा होती है | पर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे DoF भी तय होता है | बड़ा अपरचर से कम DoF और छोटा अपरचर से ज्यादा DoF मिलता है | यानि कि यदि आपको बैकग्राउंड को धुंधला करना है तो आप कम DoF चाहेंगे | ऐसे में आपको बड़ा अपरचर चुनना है | दूसरी तरफ यदि आपको बैकग्राइंड को साफ़ रखना है तो आप ज्यादा DoF चाहेंगे | ऐसे में आपको छोटा अपरचर चुनना है | इसमें ISO, Flash और White Balance आप खुद तय कर सकते हैं |

Manual Mode (मनुअल मोड): यदि आप सच में फोटोग्राफी सीखना चाहते हैं तो इस मोड पे तस्वीर लेना सीखिए | इसमें आप अपरचर और शटर दोनों को खुद कंट्रोल कर सकते हैं | इसके अलावा ISO, Flash और White Balance तो आप खुद तय कर ही रहे हैं |
इनके अलावा भी आधुनिक कैमरों में कुछ और मोड आ गए हैं जो पुराने कैमरों मे नहीं थे | चलिए अब हम इन पर अपनी दृष्टि डालें |

Panorama mode (पैनोरामा मोड): इस मोड में आप लगातार कुछ परस्परव्याप्त चित्र ले सकते हैं और कैमरा खुद उन चित्रों को जोड़कर एक बड़ा चित्र बना देगा जो ज्यादा इलाका कवर करता है |

HDR Backlight Control mode (एच डी आर बैकलाईट कंट्रोल मोड): इस मोड में कैमरा खुद ही तीन चित्र अलग अलग एक्स्पोज़र मे लेकर उन्हें आपस में मिलके एक ऐसा चित्र बनाता है जिससे तस्वीर में छांव और चमकीले क्षेत्र दोनों साफ़ नज़र आये |

Night mode (नाईट मोड): इस मोड मे कैमरा खुद फ्लश ओं रखता है | इससे रात के समय चित्र साफ़ आते हैं और बैकग्राउंड साफ़ दीखता है |
Handheld Night scene mode (हैण्डहेल्ड नाईट सीन मोड): इसमें रात के समय कैमरा खुद ३-४ फोटो लगातार ले लेता है और उन्हें आपस मे मिलकर एक फोटो प्रस्तुत करता है जिसमे noise (नाइज) कम हो |

कुं विजेंद्र शेखावत
सिंहासन


चमड़ी मिली खुदा के घर सेदमड़ी नहीं समाज दे सकागजभर भी न वसन ढँकने कोनिर्दय उभरी लाज दे सका
मुखड़ा सटक गया घुटनों मेंअटक कंठ में प्राण रह गयेसिकुड़ गया तन जैसे मन मेंसिकुड़े सब अरमान रह गये
मिली आग लेकिन न भाग्य-साजलने को जुट पाया इन्जनदाँतों के मिस प्रकट हो गयामेरा कठिन शिशिर का क्रन्दन
किन्तु अचानक लगा कि यह,संसार बड़ा दिलदार हो गयाजीने पर दुत्कार मिली थीमरने पर उपकार हो गया
श्वेत माँग-सी विधवा की,चदरी कोई इन्सान दे गयाऔर दूसरा बिन माँगे हीढेर लकड़ियाँ दान दे गया
वस्त्र मिल गया, ठंड मिट गयी,धन्य हुआ मानव का चोलाकफन फाड़कर मुर्दा बोला ।
कहते मरे रहीम न लेकिन,पेट-पीठ मिल एक हो सकेनहीं अश्रु से आज तलक हम,अमिट क्षुधा का दाग धो सके
खाने को कुछ मिला नहीं सो,खाने को ग़म मिले हज़ारोंश्री-सम्पन्न नगर ग्रामों मेंभूखे-बेदम मिले हज़ारों
दाने-दाने पर पाने वालेका सुनता नाम लिखा हैकिन्तु देखता हूँ इन पर,ऊँचा से ऊँचा दाम लिखा है
दास मलूका से पूछो क्या,'सबके दाता राम' लिखा है?या कि गरीबों की खातिर,भूखों मरना अन्जाम लिखा है?
किन्तु अचानक लगा कि यह,संसार बड़ा दिलदार हो गयाजीने पर दुत्कार मिली थीमरने पर उपकार हो गया ।
जुटा-जुटा कर रेजगारियाँ,भोज मनाने बन्धु चल पड़ेजहाँ न कल थी बूँद दीखती,वहाँ उमड़ते सिन्धु चल पड़े
निर्धन के घर हाथ सुखाते,नहीं किसी का अन्तर डोलाकफन फाड़कर मुर्दा बोला ।
घरवालों से, आस-पास से,मैंने केवल दो कण माँगाकिन्तु मिला कुछ नहीं औरमैं बे-पानी ही मरा अभागा
जीते-जी तो नल के जल से,भी अभिषेक किया न किसी नेरहा अपेक्षित, सदा निरादृतकुछ भी ध्यान दिया न किसी ने
बाप तरसता रहा कि बेटा,श्रद्धा से दो घूँट पिला देस्नेह-लता जो सूख रही हैज़रा प्यार से उसे जिला दे
कहाँ श्रवण? युग के दशरथ ने,एक-एक को मार गिरायामन-मृग भोला रहा भटकता,निकली सब कुछ लू की माया
किन्तु अचानक लगा कि यह,घर-बार बड़ा दिलदार हो गयाजीने पर दुत्कार मिली थी,मरने पर उपकार हो गया
आश्चर्य वे बेटे देते,पूर्व-पुरूष को नियमित तर्पणनमक-तेल रोटी क्या देना,कर न सके जो आत्म-समर्पण !
जाऊँ कहाँ, न जगह नरक में,और स्वर्ग के द्वार न खोला !
कफन फाड़कर मुर्दा बोला ।

कुं विजेंद्र शेखावत
सिंहासन


जब कभी हमारे परिवार में कोई परेशानी आती है तो हम एडी-चोटी लगा कर उसको दूर कर देते है, परन्तु आज हमें क्या हो गया कुछ लोग हमारे घर में घुस कर हमारे बच्चो को परिवार के सदस्यों को कुचल रहे है और हम हाथ पर हाथ रखे सुस्ता रहे है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
एक साम्यवादी देश हमारी देश कि आर्थिक स्थति की बीन बजाने पर तुला हुआ है और कामयाब भी हो रहा है ! उसके बनाये खिलोने, दूध दिवाली और ईद पर झिलमिल करने वाली रौशनी हो या मोबाइल सब अवल दर्जे का घटिया सामान वह बड़ी आसानी से बेच रहा है और हमारे श्रमिक बेरोजगार हो रहे है मतलब तो दरी तलवार से कटे जा रहे एक तो हमारे लोग बेरोजगार हो रहे है दूसरे हमारी आर्थिक नीतियों का सत्यानाश हो रहा है ! एक तो कड़वा करेला दूजा निम् चढ़ा ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
भारत की संसद पर हमला करने वाला अफजल हो या नोटंकी करने वाला कसाब ये दोनों हमारे संविधान की मजाक उड़ा सकते है लेकिन हम इनको फाँसी नहीं दे सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(मेरा मत है की इन जैसो को बीच में से चीर कर नमक और मिर्च भर कर चोराहे पर मरने के लिए छोड़ देना चाहिए !)
विश्व मानको की कसोटी पर खरा उतरने पर ही सामान ख़रीदा जाये ऐसे नियम अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायरे में आते है ! लेकिन हम आज कुछ देशो से घटिया सामान लेते ना जाने किस दबाब में ! जबकि अमेरिका कद्दू भी इन मानको के आधार पर खरीदता है ! क्या हम इतने कमजोर हो गए है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है ! हमारा युवा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन में पिटता रहे पर हम और हमारी सरकार कान में तेल डाल अपने मानव संसाधन को पीटने और देश छोड़ कर जाने से नहीं रोक सकते क्योकि उनके लिए यहाँ सही रोज़गार नहीं ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(एक बात तो बताना ही भूल गया हम अभी तक विश्व बैंक के कर्जे टेल दबे है तो हम आजाद तो है नहीं)
होटलों में माफ़ कीजियेगा पांच सितारा होटलों में आम लोगो और किसानो के लिए बनायीं गयी योजनाओ का लोकर्पण किया जाता है, जिनका बजट 4 से 5 लाख रूपये होता है ! वहां मेरी विरादरी में से कुछ लोग तो केवल लाल पानी, कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के लिए जाते है, उनका बड़ा सम्मान होता है और तो और तोहफे भी दिए जाते है जिसका बजट अलग से पास किया जाता है !
(मेरा कुत्ता भी कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के बाद मेरे ही गुण गता है मेरा विरोध नहीं करता कभी)
परन्तु देश की सरहद की और आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले एक सिपाही को प्रतिमाह 10000-20000 से ज्यादा नहीं दे सकते उनके लिए बजट नहीं ला सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !


ऐसा क्या क्या है जो हम नहीं कर सकते जरा गौरफरमाए:--
-हम तकनीक होते हुए भी आईटी में नंबर एक नहीं हो सकते क्योकि सत्यम घोटाला, सुखराम का टेलीफ़ोन घोटाला भी तो हमने ही किया है !
-कृषि प्रधान देश होते हुए भी हम नंबर एक नहीं हो सकते, ना ही किसानो के लिए बढ़िया योजनाये ला सकते और ना ही हम पशुधन में वृद्धी कर सकते ! (चारा घोटाला कोन करेगा)
-हम सुरक्षा कर्मियों की शहादत को भूल सकते है पर उनके परिवारों की जिम्मेदारी नहीं ले सकते ! (बोफोर्स घोटाला और ताबूत घोटाला कोन करेगा)
-हम किसी आतंकी देश या व्यक्ति को मुहतोड़ जबाब नहीं दे सकते
-हम एक मंच पर समस्त भारतीयों को नहीं ला सकते
-हम (मेरे सहित) गाल बजा सकते है, लिख सकते है पर कुछ कर नहीं सकते
-हम शिक्षा का स्तर नहीं सुधार सकते
-हम कश्मीर, अरुणाचल को अपना राज्य नहीं कह सकते (चाइना और पाक से हमको डर लगता है जी दिल तो बच्चा है जी)
-हम भारतीय नहीं कहलवा सकते शर्म आती है
-हम रोजगार नहीं दे सकते
-हम सत्यता को नहीं मन सकते
-हम किसी को अब गले नहीं लगा सकते


ऐसे ही ना जाने कितनी बातें हम नहीं कर सकते पर कुछ तो होगा जो हम कर सकते है ?
-हम अमेरिका के तलुए चाट सकते है अपने रिश्ते और भी मजबूत कर सकते है भले ही कोई गाँधी जी की समाधि पर कुत्ता घुमाये
-पडोसी से वार्ता कर सकते है उसको बेवजह झुक कर सलाम कर सकते है ताजमहल घुमने के लिए बुला सकते है
-बोफोर्स, ताबूत घोटाला कर सकते है
-विदेशी बांको में कला धन जमा कर सकते है
-हम गाँधी जी के अलावा बाकी सब क्रांतिकारियों को भूल सकते और गाँधी परिवार की जयंती और मरण दिवस माना सकते है
-भाषा के नाम पर हिंदुत्व के नाम पर लोगो का गला काट सकते है, हम बिहारी बन सकते है मद्रासी बन सकते है, हम मराठी है उत्तर भारतीय बन सकते है
-कश्मीर में घुसपैंठ करने दे सकते है
-मजदूरो को मजदूर बना रहने दे सकते है
-अधिकारी की कुर्सी पर बैठ कर किसी भी लड़की को रुचिका, मधुमिता बना सकते
-किसी भी भारतीय का अंग किसी विदेशी खलीफा की बेच सकते है
यहाँ तक की हम कुछ पैसो के लिए अपनी कलम (आज जो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया कर रहा है) को भी बेच सकते है ! अब हमारा मूल्य कोई भी लगा सकता है !
सवाल बस यही कि हम क्या कर सकते है और क्या नहीं कर सकते,
आखिर हम कितने पानी में है यह सोचना जरुरी है कुछ करना जरुरी है वरना खड़े-खड़े तमाशा देखते-देखते खुद तमाशा बन जायेंगे ................
सितमगर वक्त का तेवर बदल जाये तो क्या होगा !
मेरा सर और तेरा पत्थर बदल जाये तो क्या होगा !! (नबाब देवबंद जी)
कुछ तो शर्म करो इस देश का नमक खाने वाले बेशर्मो ...कब तक इस देश का खाकर पाकिस्तान के गुण गाते हो , क्या अब फिर एक बार किसी नै क्रांति को जन्म देने का इरादा है , जो शांति के लिये युद्ध लड़ा जाएगा .

जागो हिन्दुस्तान


औरत माँ है बेटी है पत्नी है पूज्य है, जहां पर नारी का सम्मान होता है वहां देवतानिवास करते हैं " यत्र नारी पूज्यंते, रमंते तत्र देवता "लेकिन  इन  सबका   क्या अर्थ हुआ यदि किसी  समाज में महिलाओं को उनके जीवन की सही आज़ादी से वंचित किया जा रहा हो?नारी और पुरूष में प्राकृतिक भिन्नताएं हैं इसी कारण से नारी पुरुष सामान   नहीं लेकिन बराबरी का दर्जा मिलना ही चाहिए और कहीं कहीं तो नारी को पुरुष से भी ऊंचा स्थान देना चाहिए. धार्मिक किताबों मैं भी बहुत सी जगहों पे नारी को पुरुष से ऊंचा स्थान दिया गया है. 
यदि वही उच्च स्थान केवल किताबों में ना रह के हकीअत में दिया जाता तो आज हमारे समाज में जो दुर्व्यवहार  स्त्रीयों के साथ होता है ,ना हो रहा होता. स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक है और एक दूसरे को साथ रहने मैं सुख की प्राप्ति होती है. ऐसे मैं महिला एक इंसान ना रह के भोग की वस्तु कब और कैसे बन गयी इस बारे मैं हमारे आज के समाज को अवश्य सोंचना चाहिए.
महिलाओं को भी इस बात पे विचार करने की आवश्यकता है की मर्द की बराबरी और आज़ादी के सही मायने मैं क्या अर्थ हैं.  औरत का शरीर मर्द से अलग है उसके पहनावा अलग है.  मर्द की तरह पैंट शर्ट को पहनना आज़ादी नहीं, अर्धनग्न वस्त्रों को पहन के खुद को भोग की वस्तु बना लेने पे मर्द को मजबूर करना  आज़ादी नहीं बल्कि आज़ादी है अपनी ख़ुशी से अपना जीवन साथी तलाश करना, दहेज़ को शादी मैं रुकावट  ना बनने  देना  ,पुरुष के जैसे ही शिक्षा हासिल  करना , घर के फैसलों मैं आप की बात को भी अहमियत दी जाए इस बात की कोशिश करना.
लड़की गर्भ मैं आयी  तो डर कि गर्भ मैं ही उसकी हत्या ना कर दी जाए. सवाल यह उठता है की क्या यह काम मर्द करता है और औरत जिसके गर्भ मैं लड़की है मजबूर होती है भ्रूण हत्या करवाने के लिए या एक औरत भी नहीं चाहती की उसकी औलाद एक बेटी हो? दूसरा बड़ा सवाल है कि जब यह मर्द औरत एक दूसरे को सुख ही देते हैं तो क्या कारण है कि औरत कि भ्रूण हत्या कर दी जाए? क्या नुकसान कोई माता पिता को उसके जन्म से होता है?  कहीं दहेज़ इसका कारण तो नहीं?    और अगर यह भी एक कारण है तो इसे बदलने कि कोशिश क्यों नहीं कि जाती? इसी बदलना ,भ्रूण हत्या से बेहतर  है
जब पढ़ाई का समय आया तो बेटे की पढ़ाई पे अधिक ध्यान दिया जाने लगा और बेटी को दूसरे नम्बर पे रखते हुए , उसी दूसरे की अमानत समझते हुए उसकी शादी की फ़िक्र की जाने लगी. यह फैसला अभी माता पिता दोनों मिल कर लेते हैं.
बेटी जवान हुई तो गली मोहल्ले के मर्दों का डर यहाँ तक की बड़े बूढों से , मर्द रिश्तेदारों से भी खतरा. एक कैदी बन के रह जाती है एक जवान औरत की ज़िंदगी. यहाँ फिर एक सवाल की क्यों मर्द परायी स्त्री का मोह नहीं त्याग पाता? और मजबूरन औरत को एक कैदी की ज़िंदगी जीने पे मजबूर होना पड़ता है.
नौकरी  की तो दफ्तरों मैं लालची नज़रों का सामना, सहयोगी अफसरों द्वारा औरत को अपनी वासना का शिकार बनाने की कोशिशें. शादी हुई तो सास का खौफ, पति की जी हुजूरी करना. दूसरों की ख़ुशी के लिए औरत के फैसले उसकी ख्वाहिशें दब के रह जाया करती हैं .विधवा हो गयी तो तिरस्कार, मनहूस की डिग्री ,दोबारा शादी करने की आज़ादी नहीं.  
जब की यही औरत जब माँ बनती है तो औलाद को उससे अधिक मुहब्बत देने वाला कोई नहीं होता. औलाद के लिए भी उसकी माँ की जगह कोई नहीं ले सकता. बहुत बार देखा गया है की बेटी जितना अपने माता पिता का ख्याल रख लेती है बेटा नहीं रख पाता. औलाद की परवरिश, उसकी तरबियत अगर एक माँ सही ढंग से ना करे तो वो औलाद जिसपे मर्द फख्र करता है की उनकी निशानी है उसका वंश चलाएगी , बर्बाद हो जाए और बंश पे भी दाग़ लग जाए.
ज़रा ध्यान  से देखें माँ की ममता, पत्नी का प्यार, बहन और बेटी का सहयोग इस मर्द को जीवन मैं शक्ति प्रदान करता है और वंही दूसरी और यही नारी एक कैदी सा या एक वैश्या सा जीवन बिताने पे मजबूर की जाती रही है.हद तो यह है कि पत्नी के रूप मैं भी पति द्वारा बलात्कार क़ी शिकार होती है और चुप रहने पे मजबूर होती है. 
कुछ सवाल हैं जिनका जवाब हमको ही तलाशना होगा. 
हमारे समाज मैं नारी के इस हाल के लिए कौन ज़िम्मेदार है?  सही मायने मैं एक औरत की आज़ादी किसे कहते हैं? जब हमारे जीवन की गाडी नारी के सहयोग के बिना नहीं चल सकती तो यह नारी इतनी कमज़ोर क्यों? जब हमारे धर्मो मैं कहा गया है की जहां पर नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं तो फिर इस नारी की आँखों मैं  डर और आंसू  क्यों?
जिस दिन हमारा समाज नारी को उसकी सही जगह देना सीख लेगा उसे भोग की वस्तु की जगह एक इन्सान , ममता की देवी मानते हुई उसका सम्मान करना सीख लेगा उस दिन शायद महिलाएं भी अपनी सही आजादी का अर्थ समझ ने लगेंगी और एक ऐसा समाज सामने आएगा जहाँ औरत की आँखों मैं डर और आंसू की जगह ख़ुशी और चेहरे पे बेशकीमती मुस्कराहट देखने को मिला करेगी.और उसके चेहरे क़ी यही मुस्कराहट मर्द का जीवन है



वृक्ष हो भले खड़े, हो घने हो बड़े, एक पत छाव की |
मांग मत, मांग मत, मांग मत ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||
तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी |
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||
ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु स्वेद रक्त से |
लथपथ, लथपथ, लथपथ ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||


हिन्दू विवाह भोग विलास का मात्र साधन नहीं, अपितु यह एक धार्मिक संस्कार है| संस्कार से अन्तःशुद्धि होती है और अन्तःकरण में तत्वज्ञान एवं भगवत्प्रेम का प्रादुर्भाव होता है जो जीवन का चरम एवं परम पुरुषार्थ है| काम वासना की चिकित्सा के लिए विवाह बड़ी अच्छी दवा है, किन्तु यह कड़वी है, जिसे यदि बहुत संभलकर उसका उपयोग न किया जाय तो बड़ा भयावह भी है| वास्तव में विवाह करने पर भी यदि जीवन असंयम में ही बीते तो विवाह का सारा उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाता है| अतएव विवाहोपरांत संयमित जीवान का उपभोग ही मनुष्य को सबल एवं सुदृढ़ बनाता है| विवाह मन के भटकाव को रोकता है तथा संयमित जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है| मनुष्य के ऊपर देव ऋण, ऋषि ऋण, एवं पित्री ऋण होते हैं, जिससे मनुष्य को अपने जीवन काल में परिमार्जन कर लेना चाहिए| यज्ञ-यज्ञादि के अनुष्ठान से देव ऋण का, स्वाध्याय से ऋषि ऋण का और विवाह करके पितरों के श्राद्ध तर्पण योग्य, धार्मिक एवं सदाचारी पुत्र का उत्पन्न करने से पितर ऋण का निवारण हो जाता है| इस प्रकार पितरों की सेवा तथा सधर्मपालन की परम्परा सुरक्षित रखने के लिए योग्य संतान उत्पन्न करना विवाह संस्कार का दूसरा उद्देश्य है|पहला संयम और दूसरा परमार्थ साधन- ये दोनों ही उद्देश्य भोग से अन्यत्र ले जाने वाले हैं| विवाह को कहीं भी मात्र भोग का साधन नहीं माना गया है| विवाह के पहले मनुष्य केवल अपने व्यक्तित्व की ही चिंता करता है, किन्तु विवाहोपरांत अपनी चिंता छोड़कर पत्नी,पुत्र, परिवार, कुटुंब, सम्बन्धी,समाज और देश के प्रति चिंतनीय हो जाता है| समस्त वसुधा को ही कुटुंब समझकर वह राग-द्वेष से रहित हो जाता है| अतः विवाह आध्यात्मिक विकास का साधन है| विवाह का अंतिम लक्ष्य भगवत प्राप्ति या मोक्ष है| पुरुष अपना सम्पूर्ण प्रेम पत्नी के प्रति प्रवाहित करके केवल उसी का होकर रह जाता है| उसीप्रकार साध्वी स्त्रियाँ पति के प्रति समर्पित हो जाती है तथा अपना सबकुछ पति को अर्पित कर देती है| सती साध्वी स्त्रियाँ अपने पति में परमेश्वर का वास समझकर कृतार्थ हो जाती है| पुरुष पत्नी के साथ सद्धर्म पालन करने से अन्तःशुद्धि हो जाने पर भगवत्प्रेम का अधिकारी बन जाता है| इसलिए हिन्दू शाश्त्रों में स्त्री के सतीत्व की रक्षा पर विशेष बल दिया गया है| स्त्री की रक्षा करने वाला पुरुष अपने संतान की, अपने सदाचार की, कुल की,अपनी तथा अपने धर्म की रक्षा भी कर लेता है| इसी दृष्टि से बचपन में पिता, युवती अवस्था में पति औरव्रिद्धावास्था में पुत्रों पर स्त्री की रक्षा का भार सौंपा गया है| इसे स्त्री को परतंत्र बनाना नहीं समझना चाहिए| स्त्री द्वारा भिन्न पुरुषों के प्रति प्रेम वासना से उसका सतीत्व तो नष्ट होता ही है, वह वासना के पतन मार्ग पर धंसता चला जाता है तथा एकदिन वह मान-मर्यादा खोकर कई बिमारियों से ग्रसित होकर अपने जीवन को नष्ट कर देता है. पति पत्नी के मन में एक दुसरे के प्रति मंगल कामना भरी हो तो उच्च कोटि का संतान भी सदाचारी होता है| इसलिए हिन्दू विवाह संस्कार को सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ माना गया है| पश्चिमी देशों में स्त्रियाँ कई विवाह करती है तथा कितनी स्त्रियाँ अवैध पुरुष संसर्ग से कई खतरनाक बिमारियों का शिकार होकर कालकवलित हो जाती है| कई देशों में तो बिना विवाह के ही पुरुषों के संग जीवन बिताती है जिससे उसका जीवन नरकतुल्य एवं अंधकारमय हो जाता है| इसलिए कन्यायों का विवाह ससमय किया जाना श्रेयस्कर माना गया है| अधिक उम्र में शादी से जीवन असंयमित हो जाता है तथा अनैतिक संसर्ग को बढ़ाबा देता है| आजकल दहेज़ के लालच में पुरुषों की शादी समय पर नहीं हो पाती है, जिससे जीवन का महत्वपूर्ण समय यों ही बीत जाता है| दहेज़ के चक्कर में जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग निरुद्देश्य ही गुजर जाता है| समय पर विवाह नहीं होने से संताने नहीं हो पाती है, यदि होती है तो अयोग्य या कमजोर मानसिकता के साथ जन्म लेता है| माता-पिता समय पर शिक्षा-दीक्षा भी नहीं दे पाते हैं. उसीप्रकार युवतियों की शादी भी समय पर नहीं हो पाती है जिससे उसका मन परपुरुषों की ओर आकर्षित होता है तथा विवाह के पूर्व ही पुरुषों के संसर्ग में आती है. इसलिए समय पर हिन्दू विवाह सर्वोत्तम है| हिन्दू नारियों के साथ संसार की किसी जाति की स्त्रियों से तुलना नहीं की जा सकती है| इसका मुख्य कारण हिन्दू विवाह की पवित्रता है|



एक माँ की करुण पुकार.........क्या मौत ही है मेरा विकल्प…………?


      दोस्तों, हर इंसान रात को सोते में स्वप्न देखता है, जिनमे से अधिकतर तो वह सुबह उठते ही भूल जाता है, मगर कोई-कोई स्वप्न ऐसा भी होता की लाख कोशिश करने के बाद भी इन्सान उसे कभी भुला नहीं पाता, और स्वप्न उसे इतना बैचेन कर देता है कि, इन्सान उस स्वप्न को सभी को बताने की ठान लेता है! ठीक कुछ यही मेरे साथ हुआ है और मैं भी आपके सामने अपने एक स्वप्न को पेश कर रहा हूँ! बात कुछ दिन पहले की है मैं गहरी नींद में सोया हुआ था! अचानक मैं सपनों की दुनिया में चला गया तो मैंने देखा,
     ”चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं, इन्ही पहाड़ों के मध्य” एक वृद्द महिला मेली- कुचेली, पैबंद लगी, सफ़ेद धोती में अपनी जर्जर काया को समेटे नज़र आई! न जाने ये कौन है, और इतनी रात गए ये यहाँ क्या कर रही है, यही जानने कि उत्कंठा से मैं महिला के निकट जा पहुंचा, उस वृद्द महिला के शरीर पर ज़ख़्म ही ज़ख़्म थे, वो रो रही थी मगर आँखों में आंसू नहीं थे, चेहरे से एक तेज सा नज़र आ रहा था! अचानक उस महिला ने अपने दोनों हाथों आसमान की ओर उठाए और जोर-जोर से भगवान को पुकारने लगी!

    “त्राहि माम प्रभु त्राहि माम, मेरी रक्षा करो प्रभु मेरी रक्षा करो! “हे परम पिता ब्रह्मदेव, मैं ब्रह्मपुत्री हूँ तात:! हे देवादिदेव महादेव- मेरी पुकार सुनो, हे मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम कहाँ हो प्रभु, मुझ दुखियारी पर दया करो दीनानाथ!

    “हे पितामह मैं आपके कमंडल से निकली आपकी पुत्री गंगा हूँ! मैं कालांतर से भूलोक वासियों के दुखों का निवारण करती, हर दुःख, हर ज़ख्म, हर पीड़ा को बिना कुछ कहे, बिना कुछ सुने, अपना फ़र्ज़ निभाती आ रही हूँ! भूलोक वासियों को मुक्ति और मोक्ष देने हेतु उनकी अस्थियों को अपने गर्भ में समाहित कर रही हूँ! मगर हे पितामह आपकी पुत्री अब और दुःख सहन करने की हालत में नहीं है! मेरा धैर्य समाप्त हो चुका है ! अब मेरे जीवन का दीप बुझने की कगार पर है पितामह! इस भूलोक के सभी वासी अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हैं, किसी को भी मेरी पुकार सुनने का समय नहीं है, सब सिर्फ धन के लोभ में भागते नज़र आ रहे हैं! मेरी दुर्दशा किसी को भी नज़र नहीं आ रही है! आह, हे प्रभु यह कैसी बिडम्बना है, कि आपके बनाये इस संसार में आज आपके नियमों का कोई स्थान नहीं है, यह सब कुछ बदल चुका है प्रभु, अब इस जगत में मानवता, प्रेम, अपनत्व का स्थान ईर्ष्या, छल, कपट, हिंसा ने ले लिया है!
    ”एक माँ की समूची दुनिया उसकी संतान से शुरू होती है और संतान पे ही ख़त्म हो जाती है! माँ अपनी संतान को पूरी दुनिया का परिचय देती है, उसी संतान को उसका खुद का परिचय देती है! मगर आज तक किसी माँ को अपनी संतान को अपना ही परिचय देने की जहमत नहीं उठानी पड़ी थी, मगर आज सब कुछ बदल चुका है! जो अबोध बच्चा माँ के क़दमों की आहट से, आवाज़ से, प्रेम की महक से, आँचल (गोद) से ही पहचान लेता था! आज वही अबोध बच्चे बड़े होकर एक माँ से उसके माँ होने का प्रमाण मांग रहे हैं! अब मैं क्या करूँ पितामह मेरी मदद करो“!
    मैंने कहा अरे ये क्या यह तो माँ गंगा है, माँ गंगा का ये क्या हाल ? युगों-युगों से समूचे विश्व में भारतवर्ष का नाम, संस्कृति, सभ्यता, आदि के लिए जिस गंगा की वजह से ही जाना जाता है आज वही गंगा बदहाल होकर इस तरह गुहार लगाती दर-दर की ठोकरें खा रही है! मुझे लगा कि मुझे चुप रहकर पूरी बात सुननी चाहिए, मैं चुप होकर सुनने लगा, तब माँ गंगा अपने दोनों हाथों को फैलाये कहे जा रही थी कि,
    “हे विधाता यह कैसा संकट है आज मेरे सामने ! अब मैं कैसे समझाऊं कि मैं वही गंगा हूँ जिसे सारा संसार में पतितपावनी, पापनाशिनी, रोगनाशिनी, मुक्तिदायिनी, मोक्षदायिनी, हिमालयपुत्री, गौमुखी, माँ गंगे, ब्रह्मपुत्री, रामगंगा और भी अनेकों नाम से पुकारा जाता है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जो परमपिता ब्रह्मदेव के कमंडल में वास करती थी! हाँ मैं वही गंगा हूँ जिसे हिन्दुस्तान की राष्ट्रीय नदी का गौरव प्राप्त है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जो बैकुंठलोक में क्षीरसागर से भी निकलती है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जो शिव के शीश पर वास करती है शिव की जटाओं से निकलती है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जिसे भागीरथी भी कहा जाता है!”
             ”हे भागीरथ, कहाँ हो, आओ पुत्र देखो जिस गंगा को भूलोक पर लाने को तुमने सदियों अखंड तपस्या की,अनगिनत दुःख उठाये, तब तुमने भी नहीं सोचा होगा कि जो गंगा आज निर्मल, पावन, उज्जवल, दुग्ध से भी स्वच्छ और सफ़ेद, अल्हड नवयौवना जैसी चंचलता, मिठास, चपलता, कान्तिमयी, अनुपम छटा बिखेरती उन्माद में प्रवाहित हो रही है ! उसी गंगा को एक दिन तुम इस बदहाल हालत में देखोगे! जिस गंगा के उत्कृष्ट स्वरूप के तुम साक्षी थे, जिस गंगा के प्रवाह से उत्पन्न ध्वनि गर्जन की भयंकरता से कांपती दसों दिशाएं और कांपती संपूर्ण स्रष्टि के साथ ही पृथ्वी के रसातल में धंसने का भय उत्पन्न हो गया था और इस विनाश लीला को रोकने के लिए स्वयं कैलाशपति ने मेरे वेग और मेरी गति को अपनी जटाओं में रोका था! शिव जटाओं से निकली एक छोटी सी धारा को हिमालायराज ने अपने आश्रय में लिया था और फिर गौमुख से निकलकर मैं इस भूलोक में स्वछन्द भाव से विचरण करने लगी! तुमने माँ का दर्जा दे अपना नाम भागीरथी दिया था! आज वही भागीरथी अपने जीवन की सुरक्षा के लिए गुहार लगा रही है! युगों-युगों से अस्थि विसर्जन करने के साथ-साथ दुनिया भर का कूड़ा- करकट, कल-कारखानों से निकलती जहरीली गैस, जहरीला धुंआ, रासायनिक पदार्थ, अधिकाँश महानगरों, ग्रामों का गन्दा पानी, नित्य-प्रतिदिन कटे जाने वाले पशुओं के अवशेष, अरबों-खरबों टन कचरा, गंदगी मेरे ही गर्भ में समाहित किया जा रहा है! यही वजह से आज यह दुर्दशा है कि गंगा का अस्तित्व संकट में है! मेरे जिस जल को अमृत सा पवित्र और चमत्कारी माना जाता था, आज वही जल इतना प्रदूषित हो चुका है कि अब आचमन के योग्य भी नहीं रहा है!मेरे गर्भ में पलने वाले अनेकों दुर्लभ जीव जंतु आज विलुप्त हो चुके हैं! मेरी सहनशक्ति अपनी मर्यादों की सभी सीमाएँ लाँघ चुकी है!”
       “मुझे प्रतीत होता है कि जैसे मेरा अंतिम समय निकट चुका है और मैं अब अपनी अंतिम सांसें गिन रही हूँ! अगर अब मेरी रक्षा हेतु तवज्जो नहीं दी तो यक़ीनन बहुत जल्द ही मैं विलुप्त हो जाउंगी, अर्थात मैं मर जाउंगी! फिर मैं बस इतिहास बनकर किस्से कहानियों और किताबों में ही नज़र आउंगी! हालांकि कुछ पुत्रो ने मेरे दर्द को समझा है और वह मेरी रक्षा को कुछ प्रयास भी कर रहे हैं मगर उनके द्वारा किये जा रहे प्रयासों को भी कहीं से भी बल मिलता नहीं नज़र आ रहा है, बहुत से पुत्रों ने तो मेरी रक्षा के नाम पर मिलने वाली मदद से अपना और अपने परिवार का पेट पलने का जरिया भी बना लिया है! कोई भी मेरी रक्षा के लिए पूरी गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहा है! जिसका खामियाजा भी कल इन्हें ही भुगतना पडेगा! आज तुम सभी अत्यंत शान से कहते हो कि हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है! मगर मेरी म्रत्यु के बाद तुम सिर्फ यही कह सकोगे कि हम उस देश के वासी हैं जिस देश में कभी गंगा बहती थी!” 
      अब इस संसार में कोई भी मेरी पुकार सुनना नहीं चाहता है, अधिकतर लोगों को तो सुनाई ही नहीं देता है, और जिन्हें सुनाई देता है वो सुनना नहीं चाहते, तो अब ऐसे में कौन सुनेगा मेरी पुकार। हे परमात्मा, हे जीवनदाता अब आप ही मुझे बताओ, मेरे सवालों का जवाब आप ही दो, मैं आपसे ही जानना चाहती हूँ, कि -
हे परम पिता क्या मेरा जीवन का यही अंत है…….?
क्या मौत ही है मेरा विकल्प…………? 


तुम्हे एक चिंघाड़ की याद कराता हूँ
आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
तलवार के बारे में बताता हूँ

ये तो युगों से स्वामीभक्ति करती रही
अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही
अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती
रही

ये ही तो राजपूतो आओ मित्रवर मेरी बात सुनो
का असली अलंकार है
इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है
इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है
इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है

जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते
तो तलवार को क्यों छोड़ दिया
बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो
तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया

इसी ने हमेशा है ताज दिलाये
इसी ने दिलाया अनाज भी
जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी
तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी

इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर
उसकी आह को भी रोक दिया
जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की
उसे भी अपने होठो से सोख लिया

मैं तो सच्चा राजपूत हूँ
इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ
मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ
मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू