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जब वोडाफोन के एक विज्ञापन में
दो पैसो मे लड़की पटाने की बातकी जाती है तब कौन ताली बजाता है?पेन्टी हो या पेन्ट हो, कॉलगेटया पेप्सोडेंट हो,साबुन या डिटरजेण्ट हो , कोईभी विज्ञापन हो,1.सब में ये छरहरे बदन वाली छोरियो केअधनंगे बदन को परोसना क्या नारीत्व केसाथ बलात्कार नहीं है?2. फिल्म को चलानेके लिए आईटम सॉन्ग केनाम पर लड़कियो को जिस तरहमटकवाया जाता है या यू कहे लगभगआधा नंगा करके उसके अंग प्रत्यंगको फोकस के साथ दिखाया जाता हैवो स्त्रीयत्व के साथ बलात्कारकरना नहीं है क्या?3. पत्रिकाए हो याअखबार सबमेआधी नंगी लड़कियो के फोटो किसके लिएऔरक्या सिखाने के लिए भरपूर मात्र मे छापेजाते है? ये स्त्रीयत्व का बलात्कारनहीं है क्या?4. दिन रात , टीवी हो या पेपर , फिल्मेहो या सीरियल, लगातार स्त्रीयत्वका बलात्कार होते देखने वाले, और उस परखुश होने वाले, उस का समर्थन करने वालेक्या बलात्कारीनहीं है ?5. संस्कृति के साथ , मर्यादाओ के साथ,संस्कारो के साथ, लज्जा के साथ जो ये सबकिया जा रहा है वो बलात्कार नहीं हैक्या?6. निरंतर हो रहे नारीत्व के बलात्कार केसमर्थको को नारी के बलात्कार पर शर्मआना उसी तरह है जैसे मांस खाने वाला ,लहसुन प्याज पर नाक सिकोडेजिस देश में "आजातेरी _ मारू , तेरे सर से __का भूत उतारू" जैसा गाना गानेवाला हनीसिंह ,सीरियल किसर कहे जाना वाला इमरानहाशमी,और इसी तरह का नंगा नाच फैलाने वालेभांडयुवाओ के " आइडल" बन रहेहो वहा बलात्कार औरछेडछाड़ की घटनाए नहीं तो औरक्या बढ़ेगा?कुल मिलाकर मेरे कहने का अर्थ ये है भाईकि जबहम स्त्रीयत्व का सम्मान करना सीखेंगेतभी हमनारी का सम्मान करना सीख पाएंगे। .

कुं  विजेन्द्र शेखावत 
सिंहासन 



एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम करने के बाद थका -हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका पांच वर्षीय बेटा सोने की बजाये उसका इंतज़ार कर रहा है .अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?”
“ हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा .
बेटा - “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?”
“ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया .
बेटा - “ मैं बस यूँही जानना चाहता हूँ . प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?” पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , “ 100 रुपये .”
“अच्छा ”, बेटे ने मासूमियत से सर झुकाते हुए कहा -,
“ पापा क्या आप मुझे 50 रूपये उधार दे सकते हैं ?”
इतना सुनते ही वह व्यक्ति आग बबूला हो उठा , “ तो तुम इसीलिए ये फ़ालतू का सवाल कर रहे थे ताकि मुझसे पैसे लेकर तुम कोई बेकार का खिलौना या उटपटांग चीज खरीद सको ….चुप –चाप
अपने कमरे में जाओ और सो जाओ ….सोचो तुम कितने स्वार्थी हो …मैं दिन रात मेहनत करके पैसे कमाता हूँ और तुम उसे बेकार की चीजों में बर्वाद करना चाहते हो ”
यह सुन बेटे की आँखों में आंसू आ गए …और वह अपने कमरे में चला गया .
व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे कि ऐसा करने कि हिम्मत कैसे हुई ……पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ , और सोचने लगा कि हो सकता है
कि उसके बेटे ने सच -में किसी ज़रूरी काम के लिए पैसे मांगे हों , क्योंकि आज से पहले उसने कभी इस तरह से पैसे नहीं मांगे थे .फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “
क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया .
“ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया , दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुत थक गया था .” व्यक्ति ने कहा .''सारी'' ….ये लो अपने पचास रूपये .”
ऐसा कहते हुए उसने अपने बेटे के हाथ में पचास की नोट रख दिया .
“थैंक यू पापा ” बेटा ख़ुशी से पैसे लेते हुए कहा , और फिर वह तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा .
यह देख व्यक्ति फिर से क्रोधित होने लगा , “ जब तुम्हारे पास पहले से ही पैसे थे तो तुमने मुझसे और पैसे क्यों मांगे ?”
“ क्योंकि मेरे पास पैसे कम थे , पर अब पूरे हैं ” बेटे ने कहा .
“ पापा अब मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .”

दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान
रखना होगा कि इस आपा-धापी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें भी अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया.
 

कुं  विजेन्द्र शेखावत 
सिंहासन 


मुझे ये बात समझ नही आती की सभी महिलाओ को लेकर बात करते हैं की दोष महिलाओ और लडकियों का,,,,क्यों,, कैसे क्या कभी किसी ने जानने की कोशिश की की ,,,एक मा चाहती क्या है ,,पत्नी क्या चाहती है ,,,आपकी बेटी क्या करना चाहती है,,,,समाज के बड़े बड़े ठेकेदार बस नियम बना देते हैं ,,,या पुराने नियमो पर चलने को कहते हैं,,,तो क्या कभी उब लोगो ने सोचा है की उनके बेटे ,,,या वो खुद क्या करते हैं ,,,समाज की कुरूतियो को मिटाने की बाते करते हैं ,,,जाने कितने ही मंचो पर चढ़ समाज बेटे और बेटियों में फर्क न करो जैसी बाते करते हैं ,,,और उनके खुद के ही घरो में ,,,,,बेटियों की मर्ज़ी कितनी पूछी जाती है ,,,शायद स्वयं भी नही जानते होंगे....वो 
नियम सारे ,,,बेटियों के लिए ही क्यों....बेटो पर ये लागू क्यों नही,,,,
मेने आज कहीं पढ़ा की जिस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है--- वो रात में कर क्या रही थी......अजीब है क्यों क्या उसे कोई काम नही हो सकता था ,,,क्या उसका रात में घर से निकलना गुनाह हैक्या किसी ने पूछा की वो लड़के रात में घर से बाहर क्या कर रहे थे ,,,जिन्होंने ये घिनोना काम किया ,,,नही क्योकि ,,,दोष तो लड़की का है ,,,ये तो पहले से ही तय है.....
संस्कारों की बाते करते हैं ,,,,और स्वयं ,,,,,कहाँ हैं हम सब.....
खुद दोहरी मानसिकता में जीते हैं...और बात करते हैं समाज सुधार 
मुझे लगता है की सुधार की जरूरत पहले हमहें है स्वयं सुधर जाये तभी बाते करे दूसरो को सुधारने की.........


कुं विजेन्द्र शेखावत
सिंहासन