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कपड़े हो गए छोटे शर्म कहाँ से हो
अनाज हो गया रासायनिक स्वाद कहाँ से हो
भोजन हो गया डालडा ताकत कहाँ से हो
नेता हो गया कुर्सी का देशमुखी कहाँ से हो
फूल हो गए प्लास्टिक के खुशबू कहाँ से हो
चेहरा हुआ मेक अप का रूप कहाँ से हो
शिक्षक हुए ट्यूशन के विद्या कहाँ से हो
प्रोग्राम हुए चेनल के संस्कार कहाँ से हो
इंसान हुआ पैसों का दया कहाँ से हो
पानी हुआ केमिकल का गंगाजल कहाँ से हो
संत हुए  स्वार्थ के सत्संग कहाँ से हो
भक्त हुए स्वार्थ के भगवान् कहाँ से हो

कुं विजेन्द्र शेखावत
सिंहासन

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