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ना रजवाड़ा म जन्म लियो,

न ही गढ़ रो राज।

दरबारां री धोख मारां

जद मिळ है दो मण नाज।।

राज करणिया राज करयो,

म्हे तो चौकीदार।

रण लड़ता र शीश चढ़ाता,

साथण ही तरवार।।

साथण ही तरवार,

राजा री शान बचावण न।

ब जनम्या कूबद कमावण न

म्हे जनम्या रण में खून बहावण न।।

म्हे जनम्या रण म खून बहावण न

ब जनम्या राज रो काज चलावण न।

म्हे जनम्या हुकुम निभावण न

ब जनम्या हुकुम सुणावण न।।

ब जनम्या सोना रा थाळ म खावण न

म्हे जनम्या सुखा टूक चबावण न।

ब जनम्या फूला री सेज सजावण न

म्हे जनम्या रातां री नींद जगावण न।।

ब जनम्या मद र रास रचावण न

म्हे जनम्या रजवाड़ी लाज बचावण न।

ब जनम्या खुद रो नाम कारावण न

म्हे जनम्या कौम रो मान कमावण न।।

जन्मभोम र मान र खातर

खुद रो खून बहायो है।

बाँ न अमर राखबा खातर

मन्न थे बिसरायो है।।

मेरो खून रो मोल छिपायो

रजवाड़ा न अमर बणायो है।

भुल्या सूं भी याद करो ना

फण बांका थान चिणायो है।।

टूटयोड़ो सो मेरो झुपड़ो

थां सूं अर्ज लगाई है।

रजवाड़ा म धोख मराणियो

मैं काईं करी खोटी कमाई है।।

~~लेखनी~~

कुं नरपत सिंह पिपराली

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