twitter



एक विज्ञान पर आधारित फ़िल्म फाटक बाबू और खदेरन देख आए। काफ़ी प्रभावित हुए। दोनों के मन में आया ‘क्यों न हम भी कुछ वैज्ञानिकों जैसा काम कर जाएं!’
खदेरन बोला, “फाटक बाबू इसके लिए तो पहले रिसर्च करना होगा!”
फाटक बाबू ने हामी भरी, “बिल्कुल!! चलो मेढक पकड़ लाओ! सब साइंस वाला तो वहीं से शुरु करता है।”
खदेरन राणा टिग्रिना पकड़ लाया। फाटक बाबू बोले, “मैं एक्स्पेरिमेंट करता हूं, तुम रिज़ल्ट नोट करते जाना, और फिर फाइनली कुछ निष्कर्ष निकाला जाएगा!”
खदेरन ने कहा, “ओ.क्के.!!”
फाटक बाबू ने मेढक की एक टांग काटी, और कहा, “कूदो!”
मेढक कूदा !
खदेरन ने नोट किया, “मेढक ३.५ फ़ीट कूदा!”
फाटक बाबू ने मेढक की दूसरी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”
मेढक कूदा!!
खदेरन ने नोट किया, “मेढक २.५ फ़ीट कूदा!”
फाटक बाबू ने मेढक की तीसरी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”
मेढक कूदा!!!
खदेरन ने नोट किया, “मेढक १.५ फ़ीट कूदा!”
फाटक बाबू ने मेढक की चौथी टांग काटी, और कहा, “कूदो!!”
मेढक नहीं कूदा …. !!!!
खदेरन ने चिल्लाकर कर रिज़ल्ट बताया, “जब मेढक की चौथी टांग काट दी जाती है, तो वह बहरा हो जाता है!!!”
फुलमतिया जी और खंजन देवी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा!! चिला पड़ीं, “हैप्पी न्यू ईअर!!!”

कुं विजेंद्र शेखावत 
सिंहासन 


आइये आज आपको डिजिटल केमरे के कुछ फंक्शन बताते है 
Basic shooting modes (बेसिक शूटिंग मोडस)

Auto Mode (ऑटो मोड): यह मोड नौसिखिओं के लिए होता है | इसमें हर बात कैमरा ही तय करता है | आपको कुछ भी नहीं करना है, बस कैमरा ओन कीजिये और बटन दबाइए |

Program Mode (प्रोग्राम मोड): कैमरा में इस मोड को “P” से जाना जाता है | यह लगभग ऑटो मोड की तरह ही होता है बस फर्क यह है कि इसमें आप ISO, फ्लश और White balance
 तय कर सकते हैं | अपरचर और शटर स्पीड कैमरा खुद तय करता है |

Macro mode (मैक्रो मोड): इस मोड में आप छोटी वस्तुओं का चित्र ले सकते हैं अथवा किसी चीज़ का पास से चित्र लेना हो तो इस मोड का इस्तमाल कर सकते हैं | यह एक तरह का “P” मोड ही है पर इससे पास कि वस्तुओं का चित्र बेहतर आता है | मसलन मान लीजिए कि आप किसी फूल या कीड़े की तस्वीर लेना चाहते हैं, तो आप इस मोड का इस्तमाल कीजिये | मैक्रो फोटोग्राफी के लिए मैक्रो लेन्स की ज़रूरत भी होती है | इस मोड में कैमरा खुद ही अपरचर बढ़ा कर DoF कम कर देता है ताकि छोटी वस्तुओं का चित्र साफ आये और बैकग्राउंड धुंधला जाय |

Sports mode (स्पोर्ट्स मोड): यह मोड साधारणतः खेल कूद के चित्र लेने के लिए इस्तमाल होता है क्यूंकि इससे आप तेज रफ़्तार वस्तु या लोगों की तस्वीर ले सकते हैं | इस मोड में कैमरा खुद ही ISO settings और शटर स्पीड बढ़ा देती है ताकि तेज रफ़्तार वस्तुओं की तस्वीर ली जा सके और धुंधलापन न हो |
Portrait mode (पोर्ट्रेट मोड): इस मोड में भी कैमरा खुद ही अपरचर बढ़ा कर DoF कम कर देता है ताकि आप लोगों के चेहरे का चित्र ले सकें और बैकग्राउंड धुंधला आये |

Landscape mode (लैंडस्केप मोड): इस मोड में कैमरा खुद ही अपरचर घटा कर DoF बढ़ा देता है ताकि आप प्राकृतिक दृश्य इत्यादि के चित्र ले सकें और बैकग्राउंड साफ़ आये |
Creative modes (क्रिएटिव मोड्स)

Shutter Priority Mode (शटर प्रायोरिटी मोड): Nikon के कैमरों में इसे “S” से और Canon के कैमरों मे “Tv” चिन्ह से जाना जाता है | इसमें आप शटर स्पीड खुद तय करते हैं और कैमरा तय करता है कि अपरचर क्या होगा | P mode जैसे ही ISO, Flash और White Balance आप तय करते हैं | तेज रफ़्तार वस्तुओं का चित्र लेना हो तो इस मोड का इस्तमाल करना चाहिए |
Aperture Priority (अपरचर प्रायोरिटी मोड): Nikon के कैमरों में इसे “A” से और Canon के कैमरों मे “Av” चिन्ह से जाना जाता है | इससे आप तस्वीर की Brightness तय करते हैं क्यूंकि अपरचर कम ज्यादा करने से अंदर आती रौशनी कम या ज्यादा होती है | पर एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे DoF भी तय होता है | बड़ा अपरचर से कम DoF और छोटा अपरचर से ज्यादा DoF मिलता है | यानि कि यदि आपको बैकग्राउंड को धुंधला करना है तो आप कम DoF चाहेंगे | ऐसे में आपको बड़ा अपरचर चुनना है | दूसरी तरफ यदि आपको बैकग्राइंड को साफ़ रखना है तो आप ज्यादा DoF चाहेंगे | ऐसे में आपको छोटा अपरचर चुनना है | इसमें ISO, Flash और White Balance आप खुद तय कर सकते हैं |

Manual Mode (मनुअल मोड): यदि आप सच में फोटोग्राफी सीखना चाहते हैं तो इस मोड पे तस्वीर लेना सीखिए | इसमें आप अपरचर और शटर दोनों को खुद कंट्रोल कर सकते हैं | इसके अलावा ISO, Flash और White Balance तो आप खुद तय कर ही रहे हैं |
इनके अलावा भी आधुनिक कैमरों में कुछ और मोड आ गए हैं जो पुराने कैमरों मे नहीं थे | चलिए अब हम इन पर अपनी दृष्टि डालें |

Panorama mode (पैनोरामा मोड): इस मोड में आप लगातार कुछ परस्परव्याप्त चित्र ले सकते हैं और कैमरा खुद उन चित्रों को जोड़कर एक बड़ा चित्र बना देगा जो ज्यादा इलाका कवर करता है |

HDR Backlight Control mode (एच डी आर बैकलाईट कंट्रोल मोड): इस मोड में कैमरा खुद ही तीन चित्र अलग अलग एक्स्पोज़र मे लेकर उन्हें आपस में मिलके एक ऐसा चित्र बनाता है जिससे तस्वीर में छांव और चमकीले क्षेत्र दोनों साफ़ नज़र आये |

Night mode (नाईट मोड): इस मोड मे कैमरा खुद फ्लश ओं रखता है | इससे रात के समय चित्र साफ़ आते हैं और बैकग्राउंड साफ़ दीखता है |
Handheld Night scene mode (हैण्डहेल्ड नाईट सीन मोड): इसमें रात के समय कैमरा खुद ३-४ फोटो लगातार ले लेता है और उन्हें आपस मे मिलकर एक फोटो प्रस्तुत करता है जिसमे noise (नाइज) कम हो |

कुं विजेंद्र शेखावत
सिंहासन


चमड़ी मिली खुदा के घर सेदमड़ी नहीं समाज दे सकागजभर भी न वसन ढँकने कोनिर्दय उभरी लाज दे सका
मुखड़ा सटक गया घुटनों मेंअटक कंठ में प्राण रह गयेसिकुड़ गया तन जैसे मन मेंसिकुड़े सब अरमान रह गये
मिली आग लेकिन न भाग्य-साजलने को जुट पाया इन्जनदाँतों के मिस प्रकट हो गयामेरा कठिन शिशिर का क्रन्दन
किन्तु अचानक लगा कि यह,संसार बड़ा दिलदार हो गयाजीने पर दुत्कार मिली थीमरने पर उपकार हो गया
श्वेत माँग-सी विधवा की,चदरी कोई इन्सान दे गयाऔर दूसरा बिन माँगे हीढेर लकड़ियाँ दान दे गया
वस्त्र मिल गया, ठंड मिट गयी,धन्य हुआ मानव का चोलाकफन फाड़कर मुर्दा बोला ।
कहते मरे रहीम न लेकिन,पेट-पीठ मिल एक हो सकेनहीं अश्रु से आज तलक हम,अमिट क्षुधा का दाग धो सके
खाने को कुछ मिला नहीं सो,खाने को ग़म मिले हज़ारोंश्री-सम्पन्न नगर ग्रामों मेंभूखे-बेदम मिले हज़ारों
दाने-दाने पर पाने वालेका सुनता नाम लिखा हैकिन्तु देखता हूँ इन पर,ऊँचा से ऊँचा दाम लिखा है
दास मलूका से पूछो क्या,'सबके दाता राम' लिखा है?या कि गरीबों की खातिर,भूखों मरना अन्जाम लिखा है?
किन्तु अचानक लगा कि यह,संसार बड़ा दिलदार हो गयाजीने पर दुत्कार मिली थीमरने पर उपकार हो गया ।
जुटा-जुटा कर रेजगारियाँ,भोज मनाने बन्धु चल पड़ेजहाँ न कल थी बूँद दीखती,वहाँ उमड़ते सिन्धु चल पड़े
निर्धन के घर हाथ सुखाते,नहीं किसी का अन्तर डोलाकफन फाड़कर मुर्दा बोला ।
घरवालों से, आस-पास से,मैंने केवल दो कण माँगाकिन्तु मिला कुछ नहीं औरमैं बे-पानी ही मरा अभागा
जीते-जी तो नल के जल से,भी अभिषेक किया न किसी नेरहा अपेक्षित, सदा निरादृतकुछ भी ध्यान दिया न किसी ने
बाप तरसता रहा कि बेटा,श्रद्धा से दो घूँट पिला देस्नेह-लता जो सूख रही हैज़रा प्यार से उसे जिला दे
कहाँ श्रवण? युग के दशरथ ने,एक-एक को मार गिरायामन-मृग भोला रहा भटकता,निकली सब कुछ लू की माया
किन्तु अचानक लगा कि यह,घर-बार बड़ा दिलदार हो गयाजीने पर दुत्कार मिली थी,मरने पर उपकार हो गया
आश्चर्य वे बेटे देते,पूर्व-पुरूष को नियमित तर्पणनमक-तेल रोटी क्या देना,कर न सके जो आत्म-समर्पण !
जाऊँ कहाँ, न जगह नरक में,और स्वर्ग के द्वार न खोला !
कफन फाड़कर मुर्दा बोला ।

कुं विजेंद्र शेखावत
सिंहासन


जब कभी हमारे परिवार में कोई परेशानी आती है तो हम एडी-चोटी लगा कर उसको दूर कर देते है, परन्तु आज हमें क्या हो गया कुछ लोग हमारे घर में घुस कर हमारे बच्चो को परिवार के सदस्यों को कुचल रहे है और हम हाथ पर हाथ रखे सुस्ता रहे है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
एक साम्यवादी देश हमारी देश कि आर्थिक स्थति की बीन बजाने पर तुला हुआ है और कामयाब भी हो रहा है ! उसके बनाये खिलोने, दूध दिवाली और ईद पर झिलमिल करने वाली रौशनी हो या मोबाइल सब अवल दर्जे का घटिया सामान वह बड़ी आसानी से बेच रहा है और हमारे श्रमिक बेरोजगार हो रहे है मतलब तो दरी तलवार से कटे जा रहे एक तो हमारे लोग बेरोजगार हो रहे है दूसरे हमारी आर्थिक नीतियों का सत्यानाश हो रहा है ! एक तो कड़वा करेला दूजा निम् चढ़ा ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
भारत की संसद पर हमला करने वाला अफजल हो या नोटंकी करने वाला कसाब ये दोनों हमारे संविधान की मजाक उड़ा सकते है लेकिन हम इनको फाँसी नहीं दे सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(मेरा मत है की इन जैसो को बीच में से चीर कर नमक और मिर्च भर कर चोराहे पर मरने के लिए छोड़ देना चाहिए !)
विश्व मानको की कसोटी पर खरा उतरने पर ही सामान ख़रीदा जाये ऐसे नियम अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायरे में आते है ! लेकिन हम आज कुछ देशो से घटिया सामान लेते ना जाने किस दबाब में ! जबकि अमेरिका कद्दू भी इन मानको के आधार पर खरीदता है ! क्या हम इतने कमजोर हो गए है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है ! हमारा युवा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन में पिटता रहे पर हम और हमारी सरकार कान में तेल डाल अपने मानव संसाधन को पीटने और देश छोड़ कर जाने से नहीं रोक सकते क्योकि उनके लिए यहाँ सही रोज़गार नहीं ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(एक बात तो बताना ही भूल गया हम अभी तक विश्व बैंक के कर्जे टेल दबे है तो हम आजाद तो है नहीं)
होटलों में माफ़ कीजियेगा पांच सितारा होटलों में आम लोगो और किसानो के लिए बनायीं गयी योजनाओ का लोकर्पण किया जाता है, जिनका बजट 4 से 5 लाख रूपये होता है ! वहां मेरी विरादरी में से कुछ लोग तो केवल लाल पानी, कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के लिए जाते है, उनका बड़ा सम्मान होता है और तो और तोहफे भी दिए जाते है जिसका बजट अलग से पास किया जाता है !
(मेरा कुत्ता भी कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के बाद मेरे ही गुण गता है मेरा विरोध नहीं करता कभी)
परन्तु देश की सरहद की और आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले एक सिपाही को प्रतिमाह 10000-20000 से ज्यादा नहीं दे सकते उनके लिए बजट नहीं ला सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !


ऐसा क्या क्या है जो हम नहीं कर सकते जरा गौरफरमाए:--
-हम तकनीक होते हुए भी आईटी में नंबर एक नहीं हो सकते क्योकि सत्यम घोटाला, सुखराम का टेलीफ़ोन घोटाला भी तो हमने ही किया है !
-कृषि प्रधान देश होते हुए भी हम नंबर एक नहीं हो सकते, ना ही किसानो के लिए बढ़िया योजनाये ला सकते और ना ही हम पशुधन में वृद्धी कर सकते ! (चारा घोटाला कोन करेगा)
-हम सुरक्षा कर्मियों की शहादत को भूल सकते है पर उनके परिवारों की जिम्मेदारी नहीं ले सकते ! (बोफोर्स घोटाला और ताबूत घोटाला कोन करेगा)
-हम किसी आतंकी देश या व्यक्ति को मुहतोड़ जबाब नहीं दे सकते
-हम एक मंच पर समस्त भारतीयों को नहीं ला सकते
-हम (मेरे सहित) गाल बजा सकते है, लिख सकते है पर कुछ कर नहीं सकते
-हम शिक्षा का स्तर नहीं सुधार सकते
-हम कश्मीर, अरुणाचल को अपना राज्य नहीं कह सकते (चाइना और पाक से हमको डर लगता है जी दिल तो बच्चा है जी)
-हम भारतीय नहीं कहलवा सकते शर्म आती है
-हम रोजगार नहीं दे सकते
-हम सत्यता को नहीं मन सकते
-हम किसी को अब गले नहीं लगा सकते


ऐसे ही ना जाने कितनी बातें हम नहीं कर सकते पर कुछ तो होगा जो हम कर सकते है ?
-हम अमेरिका के तलुए चाट सकते है अपने रिश्ते और भी मजबूत कर सकते है भले ही कोई गाँधी जी की समाधि पर कुत्ता घुमाये
-पडोसी से वार्ता कर सकते है उसको बेवजह झुक कर सलाम कर सकते है ताजमहल घुमने के लिए बुला सकते है
-बोफोर्स, ताबूत घोटाला कर सकते है
-विदेशी बांको में कला धन जमा कर सकते है
-हम गाँधी जी के अलावा बाकी सब क्रांतिकारियों को भूल सकते और गाँधी परिवार की जयंती और मरण दिवस माना सकते है
-भाषा के नाम पर हिंदुत्व के नाम पर लोगो का गला काट सकते है, हम बिहारी बन सकते है मद्रासी बन सकते है, हम मराठी है उत्तर भारतीय बन सकते है
-कश्मीर में घुसपैंठ करने दे सकते है
-मजदूरो को मजदूर बना रहने दे सकते है
-अधिकारी की कुर्सी पर बैठ कर किसी भी लड़की को रुचिका, मधुमिता बना सकते
-किसी भी भारतीय का अंग किसी विदेशी खलीफा की बेच सकते है
यहाँ तक की हम कुछ पैसो के लिए अपनी कलम (आज जो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया कर रहा है) को भी बेच सकते है ! अब हमारा मूल्य कोई भी लगा सकता है !
सवाल बस यही कि हम क्या कर सकते है और क्या नहीं कर सकते,
आखिर हम कितने पानी में है यह सोचना जरुरी है कुछ करना जरुरी है वरना खड़े-खड़े तमाशा देखते-देखते खुद तमाशा बन जायेंगे ................
सितमगर वक्त का तेवर बदल जाये तो क्या होगा !
मेरा सर और तेरा पत्थर बदल जाये तो क्या होगा !! (नबाब देवबंद जी)
कुछ तो शर्म करो इस देश का नमक खाने वाले बेशर्मो ...कब तक इस देश का खाकर पाकिस्तान के गुण गाते हो , क्या अब फिर एक बार किसी नै क्रांति को जन्म देने का इरादा है , जो शांति के लिये युद्ध लड़ा जाएगा .

जागो हिन्दुस्तान


औरत माँ है बेटी है पत्नी है पूज्य है, जहां पर नारी का सम्मान होता है वहां देवतानिवास करते हैं " यत्र नारी पूज्यंते, रमंते तत्र देवता "लेकिन  इन  सबका   क्या अर्थ हुआ यदि किसी  समाज में महिलाओं को उनके जीवन की सही आज़ादी से वंचित किया जा रहा हो?नारी और पुरूष में प्राकृतिक भिन्नताएं हैं इसी कारण से नारी पुरुष सामान   नहीं लेकिन बराबरी का दर्जा मिलना ही चाहिए और कहीं कहीं तो नारी को पुरुष से भी ऊंचा स्थान देना चाहिए. धार्मिक किताबों मैं भी बहुत सी जगहों पे नारी को पुरुष से ऊंचा स्थान दिया गया है. 
यदि वही उच्च स्थान केवल किताबों में ना रह के हकीअत में दिया जाता तो आज हमारे समाज में जो दुर्व्यवहार  स्त्रीयों के साथ होता है ,ना हो रहा होता. स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक है और एक दूसरे को साथ रहने मैं सुख की प्राप्ति होती है. ऐसे मैं महिला एक इंसान ना रह के भोग की वस्तु कब और कैसे बन गयी इस बारे मैं हमारे आज के समाज को अवश्य सोंचना चाहिए.
महिलाओं को भी इस बात पे विचार करने की आवश्यकता है की मर्द की बराबरी और आज़ादी के सही मायने मैं क्या अर्थ हैं.  औरत का शरीर मर्द से अलग है उसके पहनावा अलग है.  मर्द की तरह पैंट शर्ट को पहनना आज़ादी नहीं, अर्धनग्न वस्त्रों को पहन के खुद को भोग की वस्तु बना लेने पे मर्द को मजबूर करना  आज़ादी नहीं बल्कि आज़ादी है अपनी ख़ुशी से अपना जीवन साथी तलाश करना, दहेज़ को शादी मैं रुकावट  ना बनने  देना  ,पुरुष के जैसे ही शिक्षा हासिल  करना , घर के फैसलों मैं आप की बात को भी अहमियत दी जाए इस बात की कोशिश करना.
लड़की गर्भ मैं आयी  तो डर कि गर्भ मैं ही उसकी हत्या ना कर दी जाए. सवाल यह उठता है की क्या यह काम मर्द करता है और औरत जिसके गर्भ मैं लड़की है मजबूर होती है भ्रूण हत्या करवाने के लिए या एक औरत भी नहीं चाहती की उसकी औलाद एक बेटी हो? दूसरा बड़ा सवाल है कि जब यह मर्द औरत एक दूसरे को सुख ही देते हैं तो क्या कारण है कि औरत कि भ्रूण हत्या कर दी जाए? क्या नुकसान कोई माता पिता को उसके जन्म से होता है?  कहीं दहेज़ इसका कारण तो नहीं?    और अगर यह भी एक कारण है तो इसे बदलने कि कोशिश क्यों नहीं कि जाती? इसी बदलना ,भ्रूण हत्या से बेहतर  है
जब पढ़ाई का समय आया तो बेटे की पढ़ाई पे अधिक ध्यान दिया जाने लगा और बेटी को दूसरे नम्बर पे रखते हुए , उसी दूसरे की अमानत समझते हुए उसकी शादी की फ़िक्र की जाने लगी. यह फैसला अभी माता पिता दोनों मिल कर लेते हैं.
बेटी जवान हुई तो गली मोहल्ले के मर्दों का डर यहाँ तक की बड़े बूढों से , मर्द रिश्तेदारों से भी खतरा. एक कैदी बन के रह जाती है एक जवान औरत की ज़िंदगी. यहाँ फिर एक सवाल की क्यों मर्द परायी स्त्री का मोह नहीं त्याग पाता? और मजबूरन औरत को एक कैदी की ज़िंदगी जीने पे मजबूर होना पड़ता है.
नौकरी  की तो दफ्तरों मैं लालची नज़रों का सामना, सहयोगी अफसरों द्वारा औरत को अपनी वासना का शिकार बनाने की कोशिशें. शादी हुई तो सास का खौफ, पति की जी हुजूरी करना. दूसरों की ख़ुशी के लिए औरत के फैसले उसकी ख्वाहिशें दब के रह जाया करती हैं .विधवा हो गयी तो तिरस्कार, मनहूस की डिग्री ,दोबारा शादी करने की आज़ादी नहीं.  
जब की यही औरत जब माँ बनती है तो औलाद को उससे अधिक मुहब्बत देने वाला कोई नहीं होता. औलाद के लिए भी उसकी माँ की जगह कोई नहीं ले सकता. बहुत बार देखा गया है की बेटी जितना अपने माता पिता का ख्याल रख लेती है बेटा नहीं रख पाता. औलाद की परवरिश, उसकी तरबियत अगर एक माँ सही ढंग से ना करे तो वो औलाद जिसपे मर्द फख्र करता है की उनकी निशानी है उसका वंश चलाएगी , बर्बाद हो जाए और बंश पे भी दाग़ लग जाए.
ज़रा ध्यान  से देखें माँ की ममता, पत्नी का प्यार, बहन और बेटी का सहयोग इस मर्द को जीवन मैं शक्ति प्रदान करता है और वंही दूसरी और यही नारी एक कैदी सा या एक वैश्या सा जीवन बिताने पे मजबूर की जाती रही है.हद तो यह है कि पत्नी के रूप मैं भी पति द्वारा बलात्कार क़ी शिकार होती है और चुप रहने पे मजबूर होती है. 
कुछ सवाल हैं जिनका जवाब हमको ही तलाशना होगा. 
हमारे समाज मैं नारी के इस हाल के लिए कौन ज़िम्मेदार है?  सही मायने मैं एक औरत की आज़ादी किसे कहते हैं? जब हमारे जीवन की गाडी नारी के सहयोग के बिना नहीं चल सकती तो यह नारी इतनी कमज़ोर क्यों? जब हमारे धर्मो मैं कहा गया है की जहां पर नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं तो फिर इस नारी की आँखों मैं  डर और आंसू  क्यों?
जिस दिन हमारा समाज नारी को उसकी सही जगह देना सीख लेगा उसे भोग की वस्तु की जगह एक इन्सान , ममता की देवी मानते हुई उसका सम्मान करना सीख लेगा उस दिन शायद महिलाएं भी अपनी सही आजादी का अर्थ समझ ने लगेंगी और एक ऐसा समाज सामने आएगा जहाँ औरत की आँखों मैं डर और आंसू की जगह ख़ुशी और चेहरे पे बेशकीमती मुस्कराहट देखने को मिला करेगी.और उसके चेहरे क़ी यही मुस्कराहट मर्द का जीवन है