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हमारा देश आज एक ऎसे मार्ग पर चल पड़ा है जिसकी परिणति दु:ख के सिवाय कुछऔर नहीं है। हर व्यक्ति उस मार्ग पर चलकर गौरवान्वित महसूस करता है। उसकेपास कोई विकल्प भी नहीं है। हमारे सामने तथ्य हैं, सारे आंकड़े हैं, दर्शनहै, अनुभव हैं, किन्तु हमारा हंकार या लाचारी हमें इनमें से किसी कोस्वीकारने नहीं देती। समाज और परिवारों में अनावश्यक तनाव, वैमनस्य बढ़ताजा रहा है। यह नया रोग है अन्तरजातीय विवाह। इसको विकासवादी दृष्टिकोण कीपैदाइश माना तो जाता है, किन्तु जीना उनके बीच पड़ता है, जिनके दिलो-दिमागपर विकास पहुंचा ही नहीं है। प्रेम का रिश्ता कितनी सहजता से कट्टरता कीभेंट चढ़ जाता है, यह दृश्य देखकर कितने लोग खुश हो सकते हैं, यह भी मानवसमाज की त्रासदी ही है। क्योंकि भारत में यह पीड़ा या मुसीबतों का पहाड़मूल रूप में तो कन्या पक्ष के सिर टूटता है। पिछले सप्ताह कर्नाटक केधर्मस्थल गया था। एक ब्राह्मण लड़के की शादी अन्य जाति की कन्या से इसलिएकी गई कि ब्राह्मण जाति में उपयुक्त कन्या नहीं मिली। एक साल के बाद लड़केने लड़की को छोड़ दिया। वह लड़की न्याय की तलाश में आध्यात्मिक चेतना के
साथ सामाजिक जनजागरण में जुटे वीरेन्द्र हेगड़े के पास आई थी।

आजशिक्षा की आवश्यकता और भूत ने इस समस्या में "आग में घी" का काम किया है।भौतिकवाद, विकासवाद, स्वतंत्र पहचान, समानता की भ्रमित अवधारणा आदि नेव्यक्ति को शरीर के धरातल पर भी लाकर खड़ा कर दिया और अपने जीवन के फैसलेमां-बाप से छीनकर अपने हाथ में लेने शुरू कर दिए। अधिकांशत: माता-पिता उसकेमार्गदर्शक बनते नहीं जान पड़ते। चूंकि शिक्षा नौकरी के अतिरिक्त अधिकविकल्प नहीं देती, अत: परिवार का विघटन अनिवार्य हो गया।
दादा-दादी बिछुड़ गए। नई बहुएं सास-ससुर से भी मुक्त रहना चाहती हैं, तो बच्चों को संस्कारदेने से भी। स्कूल, होम वर्क के सिवाय बच्चों के लिए उसके पास न समय है, नही वह ज्ञान जिससे बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण होता है। शिक्षा ने उसकेमन को भी समानता के भाव के नाम पर यहां तक प्रभावित कर दिया कि वह "मेरे घरमें लड़के-लड़की में कोई भेद नहीं है" का आलाप तार स्वर में गाती है। इससेकोई अधिक क्रूर मां धरती पर कौन होगी जो अपनी बेटी को स्त्री युक्त,मातृत्व, गर्भस्थ अवस्था आदि की भी जानकारी नहीं देती, क्योंकि बेटे को भीनहीं देती। बेटी को अंधेरे में धक्का देकर गौरवान्वित होती है। बेटे को तोपूरी उम्र मां-बाप की छत्रछाया में रहना है। मां बनना नहीं है। नए घर मेंजीना नहीं है।

इस जीवन-शिक्षा के अभाव में न जाने कितने संकट हो रहे
हैं। बच्चों को यथार्थ का ज्ञान नहीं होता और मित्र मण्डली के प्रवाह में
जीना सीख जाते हैं। उच्च शिक्षा की भी अवधारणा हमारे यहां नकारात्मक है।बच्चों का शिक्षा के साथ उतना जुड़ाव भी नहीं होता, जितना विदेशों में
दिखाई देता है। हां, शिक्षा के नाम पर अधिकांश बच्चों को उन्मुक्त वातावरण
रास आता है। फिर कुदरत की चाल। उम्र के साथ आवश्यकताएं भी बदलती हैं। भूखलगी है और भोजन भी उपलब्ध है, तब व्यक्ति कितना धैर्य रख सकता है? मां-बापबच्चों को भूखा रखते हैं। संस्कारों का सहारा नहीं देते। उधर टीवी, इंटरनेटइनको दोनों हाथों से शरीर सुख परोसने में लगे हैं। मन और आत्मा का तोधरातल ही भूल गए। शुद्ध पशुभाव रह गया। आहार-निद्रा-भय-मैथुन। और कुछ बचाही नहीं जीवन में।

भारत में कुछ सीमा तक जो संस्कृत समाज हैं, उनकोछोड़ दें। शेष अपने जीवन में इस पशुभाव पर नियंत्रण नहीं कर पाते। आज तोस्कूल में ही बच्चे 17-18 साल के हो जाते हैं। कक्षाओं से गायब रहते हैं।तब एक मोड़ जीवन में ऎसा आता है कि नियंत्रण भी छूट जाता है और विकल्प भी
खो जाते हैं। ये परिस्थितियां ही इस अन्तरजातीय विवाह की जननी बनती हैं।

अन्तरजातीयविवाह में यूं तो खराब कुछ नहीं दिखाई देता। जिसको दिखाई देगा वह दुनियाका सबसे बड़ा मूर्ख है। जब लड़का-लड़की दोनों राजी हैं, तब किसी कोअच्छा-बुरा क्यों लगना चाहिए? लेकिन जो कुछ नजारा अगले कुछ महीनों मेंसामने आता है, उसे देखकर मानवता पथरा जाती है। सारा समाज बीच में कूद पड़ताहै। अनेक बाध्यताएं, जिनमें धर्म परिवर्तन तक की भी हैं, अपने मुखौटेदिखा-दिखाकर चिढ़ाती हैं। कट्टरता, संकीर्णता और निर्दयता से सारा वातावरणकम्पित हो जाता है। लड़की के मां-बाप की स्थिति बयान करना सहज नहीं है।लड़की भी हजार गलतियां करने के बाद भारतीय है। मन में कुछ लज्जा का भावहोता है। जब किसी सभ्य परिवार की लड़की असभ्य परिवार से जुड़ जाती है, तबतो तांडव ही कुछ और होता है। किसी असभ्य परिवार की लड़की सभ्य और समृद्धपरिवार में चली जाती है, तब एक अलग तरह के अहंकार की टकराहट शुरू हो जाती
है। जिन जातियों में नाता होता है, वहां मन कोई मन्दिर नहीं रह जाता। लड़कीके दो-तीन तलाक हो जाएं तो लाखों का किराया वसूल लेते हैं मां-बाप। ऊपर सेकानून एकदम अंधा। परिस्थितियों की मार से दबे मां-बाप के लिए कानून भीभयावह जान पड़ता है।
आज न्यायालयों में विवाह विच्छेद के बढ़ते
आंकड़े इस देश के सामाजिक तथा पारिवारिक भविष्य को रेखांकित करते हैं। जीवनविषाक्त होता दिखाई पड़ रहा है। पश्चिम में सम्प्रदायों तथा जातियों की इसप्रकार की वैभिन्नता भी नहीं है और है तो भी ऎसी कट्टरता दिखाई नहीं देती।वहां पैदा होने वाले व्यक्ति को जीवन में दो-तीन शादी कर लेना मान्य है।हम अभी अर्घविकसित हैं। विकास का ढोंग करते हैं। भीतर बदले नहीं हैं।परम्पराओं और मान्यताओं की जकड़ से मुक्त भी नहीं हैं। फिर भी हम विकसितसमाजों के पीछे दिखना भी नहीं चाहते। विदेशों में उच्च शिक्षा का कारण सुखप्राप्ति है। स्वतंत्रता भी है और स्वावलम्बन भी। भारत में लड़कियों कोउच्च शिक्षा सुख प्राप्ति के लिए नहीं दी जाती, बल्कि इसलिए दी जाती है किखराब समय (वैधव्य या विवाह विच्छेद) की स्थिति में पराश्रित न रहे।नकारात्मक चिन्तन ही आधार होता है। तब समझौते का प्रश्न किसी के मन मेंउठता ही नहीं है। हम जब तक इस लायक हों कि यथार्थ को स्पष्ट समझ पाएं,हमारे यहां कुछ विकासशील कुण्ठाएं संस्कृति विरोधी कानून भी पास करवा लेतीहैं। एक कहावत है कि हम अपने दुख से उतने दुखी नहीं हैं, जितने कि पड़ोसीके सुख से।

मात्र कानून बना देना विकास नहीं है। अभी मन्दिर-मस्जिद
के झगड़ों से हम बाहर नहीं आए। आरक्षण ने जातियों के नाम पर अनेक विरोध केस्वर खड़े कर दिए। जब हमारी सन्तान हमारे साथ किसी जाति के विरोध मेंलड़ती है, हिंसक हो जाती है, तब क्या वह लड़का विरोधी जाति की लड़की कापत्नी रूप में सम्मान कर सकेगा। अथवा ऎसा होने पर जातियों के बीच नए संघर्षके बीज बोये जाएंगे? क्या समाज का यह दायित्व नहीं है कि यदि किसीसम्प्रदाय को वह स्वीकार नहीं करता, तो अपने बच्चों को भी शिक्षित करे?
क्या विरोधी समाज की लड़की का अपमान करके अपनी बहू के प्रति उत्तरदायित्वके बोध का सही परिचय दे रहे हैं? क्या यह पूरे समाज का अपमान नहीं है? आजजीवन एक दौड़ में पड़ गया है। एक होड़ में चल रहा है। स्पर्धा ने मूल्योंको समेट दिया है। नकल का एक दौर ऎसा चला है कि व्यक्ति की आंख खुद के जीवनके बजाए दूसरे पर टिकी होती है, जिसकी वह नकल करना चाहता है। जैसे किशिक्षित लड़कियां भी लड़कों की नकल करना चाहती हैं। अत: लड़कियों के गुणग्रहण ही नहीं करतीं। लड़का बन नहीं सकतीं। अत: यह आदमी की हवस का पहलाशिकार होती हैं। भले ही इस कारण ऊंचे पदों तक पहुंच भी जाए, किन्तु सुख नइनको मिलता, न ही इनके माता-पिता को। बस, विकास की धारा में बहते रहते हैं।

प्रश्नयह है कि यदि हम विकसित हो रहे हैं, शिक्षित हो रहे हैं, तो इसका लाभ
स्त्री को क्यों नहीं मिल रहा। शिक्षित व्यक्ति निपट स्वार्थी भी होता जा
रहा है और उसे नुकसान करना भी अधिक आता है। अनपढ़ औरतें कन्या भ्रूण हत्याके लिए बदनाम इसलिए हो गई कि उनको गर्भस्थ शिशु के लिंग की जानकारी उपलब्धनहीं थी। आंकड़े साक्षी हैं कि ऎसी हत्याओं में शिक्षित महिलाएं अधिक लिप्तहैं और चर्चा भी नहीं होती। ये हत्याएं इस बात का प्रमाण तो हैं ही किनारी आज भी स्वयं को लाचार और अत्याचारग्रस्त मानती है। अपनी कन्या को इसरूष के हवाले नहीं करना चाहती। पुरूष वर्ग का इससे अधिक अपमान हो भी क्यासकता है। अब अन्तरजातीय विवाह ने इस नासूर को नया रूप ही दिया है। लड़काअधिकांश मामलों में मां-बाप के साथ होकर लड़की को अकेला छोड़ देता है। तबउसके लिए मायके लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। इसके लिए भी उसेअदालतों के और वकीलों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। यह आत्म-हत्याओं को बढ़ावा
देने वाला मार्ग तैयार हो रहा है। यह भी सच है कि व्यक्ति अपना किया ही
भोगता है।

समाज हर युग में एक-सा रहा है। शिक्षा बाहरी परिवेश हैभीतर की आत्मा की शिक्षा, उसका जागरण, परिष्कार आदि जब तक जीवन में नहीं
जुड़ेंगे, संस्कारवान मानव समाज का निर्माण संभव नहीं है।


इंगलैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान एक शाम
महाराजा जयसिंह सादे कपड़ों में बॉन्ड स्ट्रीट में घूमने के लिए
निकले और वहां उन्होने रोल्स रॉयस कम्पनी का भव्य शो रूम
देखा और मोटर कार का भाव जानने के लिए अंदर चले गए।
शॉ रूम के अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें “कंगाल भारत” का सामान्य
नागरिक समझ कर वापस भेज दिया। शोरूम के सेल्समैन ने
भी उन्हें बहुत अपमानित किया, बस उन्हें “गेट आऊट” कहने के
अलावा अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अपमानित
महाराजा जयसिंह वापस होटल पर आए और रोल्स रॉयस के
उसी शोरूम पर फोन लगवाया और संदेशा कहलवाया कि अलवर के
महाराजा कुछ मोटर कार खरीदने चाहते हैं।
कुछ देर बाद जब महाराजा रजवाड़ी पोशाक में औरअपने पूरे
दबदबे के साथ शोरूम पर पहुंचे तब तक शोरूम में उनके स्वागत में
“रेड कार्पेट” बिछ चुका था। वही अंग्रेज मैनेजर और सेल्समेन्स
उनके सामने नतमस्तक खड़े थे। महाराजा ने उस समय शोरूम में
पड़ी सभी छ: कारों को खरीदकर, कारों की कीमत के साथ उन्हें
भारत पहुँचाने के खर्च का भुगतान कर दिया।
भारत पहुँच कर महाराजा जयसिंह ने सभी छ: कारों को अलवर
नगरपालिका को दे दी और आदेश दिया कि हर कार काउपयोग
(उस समय के दौरान 8320 वर्ग कि.मी) अलवर राज्यमें
कचरा उठाने के लिए किया जाए।
विश्व की अव्वल नंबर मानी जाने वाली सुपर क्लास रोल्स रॉयस
कार नगरपालिका के लिए कचरागाड़ी के रूप में उपयोग लिए जाने
के समाचार पूरी दुनिया में फैल गया और रोल्स रॉयस की इज्जत
तार-तार हुई। युरोप-अमरीका में कोई अमीर व्यक्ति अगर ये
कहता “मेरे पास रोल्स रॉयस कार” है तो सामने
वाला पूछता “कौनसी?” वही जो भारत में कचरा उठाने के काम
आती है! वही?
बदनामी के कारण और कारों की बिक्री में एकदम कमी आने से
रोल्स रॉयस कम्पनी के मालिकों को बहुत नुकसान होने लगा।
महाराज जयसिंह को उन्होने क्षमा मांगते हुए टेलिग्राम भेजे और
अनुरोध किया कि रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बन्द
करवावें। माफी पत्र लिखने के साथ ही छ: और मोटर कार
बिना मूल्य देने के लिए भी तैयार हो गए।
महाराजा जयसिंह जी को जब पक्का विश्वास
हो गया कि अंग्रेजों को वाजिब बोधपाठ मिल गयाहै
तो महाराजा ने उन कारों से कचरा उठवाना बन्द करवाया



राजस्थान की लोक कथाओं में बहुत सी प्रेम कथाएँ प्रचलित है पर इन सबमे ढोला मारू प्रेम गाथा विशेष लोकप्रिय रही है इस गाथा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आठवीं सदी की इस घटना का नायक ढोला राजस्थान में आज भी एक-प्रेमी नायक के रूप में स्मरण किया जाता है और प्रत्येक पति-पत्नी की सुन्दर जोड़ी को ढोला-मारू की उपमा दी जाती है | यही नहीं आज भी लोक गीतों में स्त्रियाँ अपने प्रियतम को ढोला के नाम से ही संबोधित करती है,ढोला शब्द पति शब्द का प्रयायवाची ही बन चूका है |राजस्थान की ग्रामीण स्त्रियाँ आज भी विभिन्न मौकों पर ढोला-मारू के गीत बड़े चाव से गाती है |
इस प्रेमाख्यान का नायक ढोला नरवर के राजा नल का पुत्र था जिसे इतिहास में ढोला व साल्हकुमार के नाम से जाना जाता है, ढोला का विवाह बालपने में जांगलू देश (बीकानेर) के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री मारवणी के साथ हुआ था | उस वक्त ढोला तीन वर्ष का मारवणी मात्र डेढ़ वर्ष की थी | इसीलिए शादी के बाद मारवणी को ढोला के साथ नरवर नहीं भेजा गया | बड़े होने पर ढोला की एक और शादी मालवणी के साथ हो गयी | बचपन में हुई शादी के बारे को ढोला भी लगभग भूल चूका था | उधर जब मारवणी प्रोढ़ हुई तो मां बाप ने उसे ले जाने के लिए ढोला को नरवर कई सन्देश भेजे | ढोला की दूसरी रानी मालवणी को ढोला की पहली शादी का पता चल गया था उसे यह भी पता चल गया था कि मारवणी जैसी बेहद खुबसूरत राजकुमारी कोई और नहीं सो उसने डाह व ईर्ष्या के चलते राजा पिंगल द्वारा भेजा कोई भी सन्देश ढोला तक पहुँचने ही नहीं दिया वह सन्देश वाहको को ढोला तक पहुँचने से पहले ही मरवा डालती थी |
उधर मारवणी के अंकुरित यौवन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया | एक दिन उसे स्वप्न में अपने प्रियतम ढोला के दर्शन हुए उसके बाद तो वह ढोला के वियोग में जलती रही उसे न खाने में रूचि रही न किसी और कार्य में | उसकी हालत देख उसकी मां ने राजा पिंगल से ढोला को फिर से सन्देश भेजने का आग्रह किया, इस बार राजा पिंगल ने सोचा सन्देश वाहक को तो मालवणी मरवा डालती है इसीलिए इस बार क्यों न किसी चतुर ढोली को नरवर भेजा जाय जो गाने के बहाने ढोला तक सन्देश पहुंचा उसे मारवणी के साथ हुई उसकी शादी की याद दिला दे |
जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था तब मारवणी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे ढोला के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है | ढोली (गायक) ने मारवणी को वचन दिया कि वह जीता रहा तो ढोला को जरुर लेकर आएगा और मर गया तो वहीँ का होकर रह जायेगा |
चतुर ढोली याचक बनकर किसी तरह नरवर में ढोला के महल तक पहुँचने में कामयाब हो गया और रात होते ही उसने ऊँची आवाज में गाना शुरू किया | उस रात बादल छा रहे थे,अँधेरी रात में बिजलियाँ चमक रही थी ,झीणी-झीणी पड़ती वर्षा की फुहारों के शांत वातावरण में ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया ऐसे सुहाने मौसम में ढोली की मल्हार राग का मधुर संगीत ढोला के कानों में गूंजने लगा और ढोला फन उठाये नाग की भांति राग पर झुमने लगा तब ढोली ने साफ़ शब्दों में गाया -
" ढोला नरवर सेरियाँ,धण पूंगल गळीयांह |"
गीत में पूंगल व मारवणी का नाम सुनते ही ढोला चौंका और उसे बालपने में हुई शादी की याद ताजा हो आई | ढोली ने तो मल्हार व मारू राग में मारवणी के रूप का वर्णन ऐसे किया जैसे पुस्तक खोलकर सामने कर दी हो | उसे सुनकर ढोला तड़फ उठा |
दाढ़ी(ढोली) पूरी रात गाता रहा | सुबह ढोला ने उसे बुलाकर पूछा तो उसने पूंगल से लाया मारवणी का पूरा संदेशा सुनाते हुए बताया कि कैसे मारवणी उसके वियोग में जल रही है |
आखिर ढोला ने मारवणी को लाने हेतु पूंगल जाने का निश्चय किया पर मालवणी ने उसे रोक दिया ढोला ने कई बहाने बनाये पर मालवणी उसे किसी तरह रोक देती | पर एक दिन ढोला एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर मारवणी को लेने चल ही दिया और पूंगल पहुँच गया | मारवणी ढोला से मिलकर ख़ुशी से झूम उठी | दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताये और एक दिन ढोला ने मारूवणी को अपने साथ ऊंट पर बिठा नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली | कहते है रास्ते में रेगिस्तान में मारूवणी को सांप ने काट खाया पर शिव पार्वती ने आकर मारूवणी को जीवन दान दे दिया | आगे बढ़ने पर ढोला उमर-सुमरा के षड्यंत्र में फंस गया, उमर-सुमरा ढोला को घात से मार कर मारूवणी को हासिल करना चाहता था सो वह उसके रास्ते में जाजम बिछा महफ़िल जमाकर बैठ गया | ढोला जब उधर से गुजरा तो उमर ने उससे मनुहार की और ढोला को रोक लिया | ढोला ने मारूवणी को ऊंट पर बैठे रहने दिया और खुद उमर के साथ अमल की मनुहार लेने बैठ गया | दाढ़ी गा रहा था और ढोला उमर अफीम की मनुहार ले रहे थे , उमर सुमरा के षड्यंत्र का ज्ञान दाढ़ी (ढोली) की पत्नी को था वह भी पूंगल की बेटी थी सो उसने चुपके से इस षड्यंत्र के बारे में मारूवणी को बता दिया |
मारूवणी ने ऊंट के एड मारी,ऊंट भागने लगा तो उसे रोकने के लिए ढोला दौड़ा, पास आते ही मारूवणी ने कहा - धोखा है जल्दी ऊंट पर चढो और ढोला उछलकर ऊंट पर चढ़ा गया | उमर-सुमरा ने घोड़े पर बैठ पीछा किया पर ढोला का वह काला ऊंट उसके कहाँ हाथ लगने वाला था | ढोला मारूवणी को लेकर नरवर पहुँच गया और उमर-सुमरा हाथ मलता रह गया |
नरवर पहुंचकर चतुर ढोला, सौतिहा डाह की नोंक झोंक का समाधान भी करता है। मारुवणी व मालवणी के साथ आनंद से रहने लगा |
इसी ढोला का पुत्र लक्ष्मण हुआ,लक्ष्मण का भानु और भानु का पुत्र परम प्रतापी बज्र्दामा हुआ जिसने अपने वंश का खोया राज्य ग्वालियर पुन: जीतकर कछवाह राज्यलक्ष्मी का उद्धार किया | आगे चलकर इसी वंश का एक राजकुमार दुल्हेराय राजस्थान आया जिसने मांची,भांडारेज,खोह,झोटवाड़ा आदि के मीणों को मारकर अपना राज्य स्थापित किया उसके बाद उसके पुत्र काकिलदेव ने मीणों को परास्त कर आमेर पर अपना राज्य स्थापित किया जो देश की आजादी तक उसके वंशजों के पास रहा | यही नहीं इसके वंशजों में स्व.भैरोंसिंहजी शेखावत इस देश के उपराष्ट्रपति बने व इसी वंश के श्री देवीसिंह शेखावत की धर्म-पत्नी श्रीमती प्रतिभापाटिल आज इस देश की महामहिम राष्ट्रपति है |

ढोला को रिझाने के लिए दाढ़ी (ढोली) द्वारा गाये कुछ दोहे -
आखडिया डंबर भई,नयण गमाया रोय |
क्यूँ साजण परदेस में, रह्या बिंडाणा होय ||

आँखे लाल हो गयी है , रो रो कर नयन गँवा दिए है,साजन परदेस में क्यों पराया हो गया है |

दुज्जण बयण न सांभरी, मना न वीसारेह |
कूंझां लालबचाह ज्यूँ, खिण खिण चीतारेह ||

बुरे लोगों की बातों में आकर उसको (मारूवणी को) मन से मत निकालो | कुरजां पक्षी के लाल बच्चों की तरह वह क्षण क्षण आपको याद करती है | आंसुओं से भीगा चीर निचोड़ते निचोड़ते उसकी हथेलियों में छाले पड़ गए है |

जे थूं साहिबा न आवियो, साँवण पहली तीज |
बीजळ तणे झबूकडै, मूंध मरेसी खीज ||

यदि आप सावन की तीज के पहले नहीं गए तो वह मुग्धा बिजली की चमक देखते ही खीजकर मर जाएगी | आपकी मारूवण के रूप का बखान नहीं हो सकता | पूर्व जन्म के बहुत पुण्य करने वालों को ही ऐसी स्त्री मिलती है |

नमणी, ख़मणी, बहुगुणी, सुकोमळी सुकच्छ |
गोरी गंगा नीर ज्यूँ , मन गरवी तन अच्छ ||

बहुत से गुणों वाली,क्षमशील,नम्र व कोमल है , गंगा के पानी जैसी गौरी है ,उसका मन और तन श्रेष्ठ है |

गति गयंद,जंघ केळ ग्रभ, केहर जिमी कटि लंक |
हीर डसण विप्रभ अधर, मरवण भ्रकुटी मयंक ||

हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत,मूंग सरीखे होठ है | आपकी मारवणी की सिंहों जैसी कमर है ,चंद्रमा जैसी भोएं है |

आदीता हूँ ऊजलो , मारूणी मुख ब्रण |
झीणां कपड़ा पैरणां, ज्यों झांकीई सोब्रण ||

मारवणी का मुंह सूर्य से भी उजला है ,झीणे कपड़ों में से शरीर यों चमकता है मानो स्वर्ण झाँक रहा हो | 


काळ कसुमै ना मरै, बामण बकरी ऊंट|
वो मांगै वा फिर चरै, वो सूका चाबै ठूंठ||

ब्राह्मण, बकरी और ऊंट दुर्भिक्ष के समय भी भूख के मारे नहीं मरते क्योंकि ब्राह्मण मांग कर खा लेता है, बकरी इधर उधर गुजारा कर लेती है और ऊंट सूखे ठूंठ चबा कर जीवित रह सकता है|


एक अमीर आदमी की शादी बुद्धिमान स्त्री से हुई। अमीर हमेशा अपनी बीबी से तर्क और वाद-विवाद मेँ हार जाता था।बीबी ने कहा की स्त्रिया मर्दो से कम नहीँ। अमीर ने कहा मैँ दो वर्षो के लिये परदेश चला जाता हुँ।एक महल, बिजनेस मेँ मुनाफा और एक बच्चा पैदा करके दिखा दो। आदमी परदेश चला गया।

बीबी ने सारे कर्मचारियोँ मेँ ईमानदारी का बोध जगाके और मेहनत का गुण भर दिया। पगार भी बढ़ा दी।सारे कर्मचारी खुश होकर दिल लगा के काम करने लगे। मुनाफा काफी बढ़ा।

बीबी ने महल बनवा दिये,, दस गाय पाली ,,काफी खातिदारी की,,गाय का दूध काफी अच्छा हुआ।

दूध से दही जमा के परदेश मेँ दही बेचने चली गई वेश बदल के।अपने पति के पास बदले वेश मेँ दही बेची,और रूप के मोहपाश मेँ फँसा कर संबंध बना लिया ।फिर एक दो बार और संबंध बना के अँगुठी उपहार मेँ लेकर घर लौट आई।

बीबी एक बच्चे की माँ भी बन गई। दो साल पूरे होने पर पति घर आया।महल और शानो-शौकत देखकर पति दंग और प्रसन्न रह गया।मगर जैसे बीबी की गोद मेँ बच्चा देखा क्रोध से चीख उठा किसका है ये?

बीबी ने जब दही वाली गुजरी की याद दिलाई और उनकी दी अँगुठी दिखाई तो अमीर काफी खुश हुआ।
बीबी ने कहा-
अगर वो दही वाली गुजरी मेरी जगह कोई और होती तो???
अब अमीर निरुत्तर था..!!

वाकई इस ''तो'' का उत्तर तो पूरी पुरूष जाती के पास नहीँ है।
लेकिन सम्बन्ध बनाने में तो दोनों की रजामंदी चाहिए...फिर दोष किसका ...?
(योगेश योगी जी से साभार)


एक समाज सुधारक एक शराबी को समझाइश दे रहा था….

समाज सुधारक – “तुम शराब पीते हो ?”

शराबी – “हाँ.”

समाज सुधारक – “कब से पी रहे हो ?”

शराबी – “करीब 20 साल से … ”

समाज सुधारक – “रोज़ लगभग कितने की पीते हो ?”

शराबी – “यही कोई 500 रुपये की … ”

समाज सुधारक – “इसका मतलब एक महीने में 500×30= 15000 रुपये की पी जाते हो … ”

शराबी – “हाँ, लगभग …”

समाज सुधारक – “अगर साल भर की जोड़ें तो 15000×12=180,000 की हुई … और जैसा कि तुमने बताया कि 20 साल से पी रहे हो तो अब तक तुम लगभग 180,000×20=360,0000 की शराब पी चुके हो … ”

शराबी – “जी हाँ … ”

समाज सुधारक – “मूर्ख आदमी ! 36 लाख रुपये की अगर तुमने बचत की होती तो जानते हो आज तुम मर्सडीज में घूम रहे होते ?”

शराबी – “आप शराब पीते हैं ?”

समाज सुधारक – “बिलकुल नहीं … ”

शराबी – “तो आपकी मर्सडीज कहां हैं …. ?”


BOSS :-अगर मेरे हवाई जहाज़ में 50 ईंटे हो और मैं एक नीचे फ़ेंक दूं तो कितने बचेंगे ?
Employee :- 49

BOSS :-तीन वाक्य में बताओ कि हाथी को फ्रीज़ में कैसे रखा जाये ?
Employee :- (1) फ्रीज़ खोलिए, (2) हाथी को उसमे रखिये और (3) फ्रीज़ बंद
कर दीजिये !

BOSS :-अब 4 वाक्य में बताओ कि हिरन को फ्रीज़ में कैसे रखा जाये ?
Employee :- (1) फ्रीज़ खोलिए (2 ) हाथी को बाहर निकालिए (3) हिरन
को अन्दर रखिये 4)फ्रीज़ ...बंद कर दीजिये!

BOSS :-आज जंगल में शेर का जन्मदिन मनाया जा रहा है, वहां एक को छोड़ कर सब जानवर मौजूद है, बताओ कौन गैरमौजूद है?
Employee :- हिरन, क्योंकि वो फ्रीज़ में बंद है !

BOSS :- बताओ, एक बूढी औरत मगरमच्छो से भरी तालाब को कैसे पार कर सकती है ?
Employee :- बड़े आसानी से, क्योंकि सारे मगरमच्छ शेर के जन्मदिन के पार्टी में गए हैं!

BOSS :- अच्छा आखिरी सवाल, वो बूढी औरत मर कैसे गयी?
Employee :- hmmmmm ....... लगता है सर कि वो तालाब में फिसल
गयी अथवा गिर गयी होगी..... Errrrrrrrrrrr..

BOSS:- अबे गधे, उसके सिर पर ईंट लगी थी जो मैंने Airplane से फेंकी थी,
यही problem है कि तुम अपने काम में जरा भी ध्यान नहीं लगाते हो और
तुम्हारा दिमाग कही और रहता है,
You should always be focused on your job ! Understand ?
.
.
.
Morel:- जितना मर्ज़ी PREPARE कर लो अगर बोस ने ठान ली है
तो बो तुम्हारी बजा के रहेगा.


फेसबुक सा फेस है तेरा, गूगल सी हैं आँखें,
एंटर करके सर्च करूँ तो बस मुझको ही ताकें|
रेडिफ जैसे लाल गाल तेरे हॉटमेल से होंठ,
बलखा के चलती है जब तू लगे जिगर पे चोट|
सुराही दार गर्दन तेरी लगती ज्यों जी-मेल,
अपने दिल के इंटरनेट पर पढ़ मेरा ई-मेल |
मैंने अपने प्यार का फारम कर दिया है अपलोड,
लव का माउस क्लिक कर जानम कर इसे डाउनलोड|
हुआ मैं तेरे प्यार में जोगी, तू बन जा मेरी जोगिन,
अपने दिल की वेबसाईट पर कर ले मुझको लोगिन|
तेरे दिल की हार्डडिस्क में और कोई न आये,
करे कोई कोशिश भी तो पासवर्ड इनवैलिड बतलाये |
गली मोहल्ले के वायरस जो तुझ पर डोरे डालें,
एन्टी वायरस सा मैं बनकर नाकाम कर दूँ सब चालें|
अपने मन की मेमोरी में सेव तुझे रखूँगा,
तेरी यादों की पैन ड्राइव को दिल के पास रखूँगा|
तेरे रूप के मॉनिटर को बुझने कभी न दूँगा,
बनके तेरा यू पी एस मैं निर्बाधित पावर दूँगा |
भेज रहा हूँ तुम्हें निमंत्रण फेसबुक पर आने का,
तोतों को मिलता है जहाँ मौका चोंच लड़ाने का|
फेसबुक की ऑनलाईन पर बत्ती हरी जलाएंगे,
फेसबुक जो हुआ फेल तो ओयेपेजेस पर पींग बढ़ायेंगे|
एक-दूजे के दिल का डाटा आपस में शेयर करायेंगे,
फिर हम दोनों दूर के पंछी एक डाल के हो जायेंगे|
की-बोर्ड और उँगलियों जैसा होगा हमारा प्यार,
बिन तेरे मैं बिना मेरे तू होगी बस बेकार|
फिर हम आजाद पंछी शादी के सी पी यू में बन्ध जायेंगे,
इस दुनिया से दूर डिजिटल की धरती पे घर बनाएँगे|
फिर हम दोनों प्यासे-प्रेमी नजदीक से नजदीकतर आते जायेंगे,
जुड़े हुए थे अब तक सॉफ्टवेयर से अब हार्डवेयर से जुड़ जायेंगे|
तेरे तन के मदरबोर्ड पर जब हम दोनों के बिट टकराएँगे,बिट से बाइट्स,
 फिर मेगा बाइट्स फिर गीगा बाइट्स बन जायेंगे|
ऐसी आधुनिक तकनीकयुक्त बच्चे जब इस धरती पर आयेंगे,
सच कहता हूँ आते ही इस दुनिया में धूम मचाएंगे|
डाक्टर और नर्स सभी दांतों तले उंगली दबाएंगे,
होगे हमारे 3G बच्चे और याहू-याहू चिल्लायेंगे 


एक लड़का एक दवाई कि दुकान में गया और उसके मालिक से एक फ़ोन मिलाने कि आज्ञा ली. दुकान का मालिक चुपचाप उस लड़के कि बातचीत सुनने लगा .बालक ने एक महिला को फ़ोन मिलाया और बोला , " क्या आप मुझे अपना बगीचा सफाई और लॉन काटने का काम दे सकती हैं ?"
इस पर वह महिला फ़ोन के दूसरी ओर से बोली ," मेरे लॉन कि कटाई का काम पहले से कोई कर रहा है . बालक , " किन्तु ,मैं आपके लॉन कि कटाई का काम उससे आधे दाम पर करने के लिए तैयार हूँ ."
महिला , " जो लड़का मेरे लॉन की कटाई का काम कर रहा है , मैं उसके काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ . "
इस पर वह बालक ओर अधिक निश्चय पूर्वक बोला , " मैं आप के लॉन के चारों ओर का रास्ता भी साफ़ कर दिया करूँगा ओर आप के घर के बाहर के शीशे
भी साफ़ कर दिया करूंगा ."

महिला बोली ," नहीं , मुझे किसी की आवश्यकता नहीं है ,धन्यवाद ," यह सुन कर वह बालक मुस्कुराया ओर उसने फोन रख दिया ."

दुकान का मालिक जो कि उस लड़के कि बातचीत सुन रहा था , उसकी ओर आया ओर बोला ,"बेटा ,मुझे तुम्हारा आत्मविश्वास ओर सकारात्मक दृष्टिकोण देख कर बहुत अच्चा लगा . मुझे तुम्हे नौकरी पर रख कर वास्तव मैं ख़ुशी होगी .क्या तुम मेरे लिए काम करना पसंद करोगे ?"इस पर वह बालक बोला ,"धन्यवाद,पर मैं कोई नौकरी नहीं करना चाहता ."
दुकान का मालिक बोला," लेकिन , बेटा तुम तो अभी-अभी फोन पर नौकरी के लिए गिडगिडा रहे थे ."
इस पर बालक बोला," नहीं महोदय , मैं तो केवल अपनी कार्यकुशलता का परीक्षण कर रहा था . दरअसल , जिस महिला को मैंने फोन किया था मैं उसी के लिए कार्य करता हूँ ."
वह आगे बोला," ओर , उससे बात करने के पश्चात यह जान कर मुझे बहुत अधिक आत्मसंतोष मिल रहा है कि वह महिला मेरे कार्य से पूर्ण रूप से संतुष्ट है ."
क्या हम लोग इस छोटे से बालक से आत्म निरीक्षण करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं और कर सकते हैं अपने 
बुलंद संस्कार !


एक अमेरिकन बोला भाई
साहब बताइये
अगर आपका भारत महान
है..तो सँसार के
इतने आविष्कारों में आपके
देश का क्या योगदान है.??
हिन्दुस्तानी -
अरेअमरीकन सुन..
संसार की पहली फायर
प्रूफ लेडी भारत में
हुई.. नाम था "होलिका" आग में
जलती नही थी..
इसीलिए उस वक्त फायर
ब्रिगेड
चलती नही थी!!
संसार की पहली वाटर प्रूफ बिल्डिँग भारत में
हुई..
... नाम था भगवान विष्णु
का"शेषनाग"..
काम तो ऐसे
जैसे"विशेषनाग" दुनिया के पहले पत्रकार
भारत में हुए..
"नारदजी"
जो किसी राजव्यवस्था से
नही डरते थे .. तीनों लोक
की सनसनी खेज रिपोर्टिँग करते थे!!
दुनिया के पहले
कॉँमेन्टेटर"संजय" हुऐ
जिन्होंने नया इतिहास
बनाया ..
महाभारत के युद्ध का आँखो देखा हाल अँधे
"ध्रतराष्ट" को उन्ही ने
सुनाया !!
दादागिरी करना भी दुनिया हमने
सिखाया क्योंकि वर्षो पहले
हमारे"शनिदेव" ने ऐसा आतँक मचाया ..
कि "हफ्ता"
वसूली का रिवाज
उन्ही के
शिष्यो ने
चलाया..आजभी उनके शिष्यहर
शनिवार को आते है !
उनका फोटो दिखाकर
हफ्ता ले जाते है !!
अमेरिकन बोला दोस्त
फालतू की बातें मत बनाओ ! कोई ढँग
का आविष्कार
हो तो बताओ !!
(जैसे हमने इँसान
की किडनी बदल दी,
बाईपास सर्जरी कर दी आदि)
हिन्दुस्तानी बोला रे
अमरीकन
सर्जरी का तो आइडिया ही दुनिया कोहमने
दिया था !
तू ही बता "गणेशजी" का ऑपरेशन क्या तेरे
बाप ने किया था..!!
अमरीकन हडबडाया..
गुस्से मेँ बडबडाया!
देखते ही देखते
चलता फिरता नजर आया!! तब से
पूरी दुनिया को हम
पर मान है!!!
दुनिया में मुल्क कितने
ही हो पर सबमें
मेरा "भारत" महान
है......!!!


सीमा पे एक जवान जो शहीद हो गया,
संवेदनाओं केकितने बीज बो गया,
तिरंगे में लिपटी लाश उसकी घर पे आ गयी,
सिहर उठी हवाएँ, उदासी छा गयी,
तिरंगे में रखा खत जो उसकी माँ को दिख
गया,

मरता हुआ जवान उस खत में लिख गया,
बलिदान को अब आसुओंसेधोना नहीं है,
तुझको कसमहै माँ मेरी की रोना नहीं है।

मुझको याद आ रहा है तेरा उंगली पकड़ना,
कंधे पेबिठाना मुझे बाहों में जकड़ना,
पगडंडियों की खेतों पे मैं तेज़ भागता,
सुननेको कहानी तेरी रातों को जागता,
पर बिन सुने कहानी तेरा लाल सो गया,
सोचा था तूने और कुछ और हो गया,
मुझसा न कोई घर में तेरे खिलौना नहीं है,
तुझको कसमहै माँ मेरी की रोना नहीं है।

सोचा था तूने अपने लिए बहू लाएगी,
पोते को अपने हाथ सेझूला झुलाएगी,
तुतलाती बोली पोते की सुन न सकी माँ,
आँचल में अपनेकलियाँ तू चुन न सकी माँ,
न रंगोली बनी घर में न घोड़े पे मैं चढ़ा,
पतंग पे सवर हो यमलोक मैं चल पड़ा,
वहाँ माँ तेरे आँचल का तो बिछौना नहींहै,
तुझको कसमहै माँ मेरी की रोना नहीं है।

बहना से कहना राखी पे याद न करे,
किस्मत को न कोसे कोई फरियाद न करे,
अब कौन उसे चोटी पकड़ कर चिढ़ाएगा,
कौन भाई दूज का निवाला खाएगा,
कहना के भाई बन कर अबकी बार आऊँगा,
सुहाग वाली चुनरी अबकी बार लाऊँगा,
अब भाई और बहना में मेल होना नहीं है,
तुझको कसमहै माँ मेरी की रोना नहीं है।

सरकार मेरे नाम सेकई फ़ंड लाएगी,
चौराहों पे तुझको तमाशा बनाएगी,
अस्पताल स्कूलों के नाम रखेगी,
अनमोल शहादत का कुछ दाम रखेगी,
पर दलाओं की इस दलाली पर तू थूक देना माँ,
बेटे की मौत की कोई कीमत न लेना माँ,
भूखे भले मखमल पे हमको सोना नहीं है,
तुझको कसम है
माँ मेरी की रोना नहीं है !


जब मैं छोटा था, शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था वहां,

चाट के ठेले, जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...

जब मैं छोटा था,
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े, घंटों उड़ा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
.

जब मैं छोटा था,

शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना...
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं "Hi" हो जाती है,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन,
नए साल पर बस SMS आ जाते हैं, शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
.
जब मैं छोटा था,
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग,
पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप.
अब internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है...
"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते
.ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..
अब बच गए इस पल में..
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,
मेरे दोस्त,

और इस ज़िंदगी को जियो...
खूब जियो मेरे दोस्त


नई-नई शादी के बाद तीन देशों की पत्नियाँ आपस में मिलती हैं –
अमरीकन पत्नि – सुहाग रात को मैंने पति से कहा झाड़ू,पोंछा, खाना पकाना, कपड़े-बर्तन धोना ये सब मैं नहीं करुंगी।अगले दिन पति नज़र नहीं आया,दूसरे दिन पति नजर नहीं आया,तीसरे दिन इन सब कामों की मशीनों के साथदिखाई दिया।रुसी पत्नि – मैंने भी पति से ऐसा ही कहा।अगले दिन पति नज़र नहीं आया,दूसरे दिन पति नजर नहीं आया,तीसरे दिन इन सब कामों की नौकरानियों के साथ दिखाई दिया।भारतीय पत्नि – मैंने भी अपने पति से ठीक ऐसे ही कहा था।अगले दिन पति नज़र नहीं आया,दूसरे दिन भी पति नजर नहीं आया,तीसरे दिन में बाँयी आँख से थोड़ा-थोड़ा पति दिखना शुरु हुआ।(पति ने जमकर धुलाई की)


पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता .पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता.तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाएतो बात बन सकती है. उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा, उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.”... और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया.बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे .लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था, आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बनाथा , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गयाऔर पिताजी सोचते रह गए .Friends , कई बार life की problems भी ऐसी ही होती हैं, सामने से देखने पर वो बड़ी भारी-भरकम लगती हैं , मानो उनसे पार पान असंभव ही हो , लेकिन जब हम उनका दूसरा पहलु देखते हैं तो वही problems आसान बन जाती हैं, इसलिए जब कभी आपके सामने कोई समस्या आये तो उसे सिर्फ एक नजरिये से देखने की बजाये अलग-अलग दृष्टिकोण से देखिये , क्या पता वो बिलकुल आसान बन जाएं !


माता कब की ''ममी'' बना दी, पिता को बना डाला ''डेड''
छोड़ छाड़ के सादी रोटी, खुश रहते सब खाकर ''ब्रेड''
भाई बन गए कब के ''ब्रो'', बहन हो चुकी है अब ''सिस''
संस्कारों की तो पूछो ही मत, जाने कहाँ हो रहे ''मिस''
ताई, चाची, बुआ, मामी, सभी बन गई ''आंटी''
ताऊ, चाचा, फूफा, मामा, के गले में पड़ी ''अंकल'' की घंटी.
यार दोस्त भी अब तो बन बैठे हैं सारे ''ड्यूड''
माँ-बाप अगर टोकें, बालक बोलें होकर ''रयुड''
बच्चों को अब नहीं पसंद पुराना ''पैजामा''
वाट्ज-अप बोलें भूल गए ''रामा-रामा''.
अंग्रेज तो चले गए यहाँ से कब के, छोड़ गए अपनी संस्कृति की ''डब्बी''
बस अब और सहा नहीं जाता, अच्छे भले पति को जब बोलें ''हब्बी''...


१३०२(1302 AD) इश्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंश की राजकुँवरी थी.
रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था.
दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लेश सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना. ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था, चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था. उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगाम के साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था. उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था. कैसे मानी ज सकती थी यह शर्मनाक शर्त. नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यह रवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.
रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाय इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था. कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था. मरने मारने का विकल्प तो अंतिम था. क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय ? रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमता नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.
अल्ला-उ-द्दीन को जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए, राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है..बस. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. जहाँ कहीं भी.
उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा. किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था. पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महल तक उसकी अगवानी की.
महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपने ग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्केबक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया …तकनीकी तौर पर.उसे रानी साहिबा को दिखा दिया गया था….
सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था…… और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए,दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी .उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे….दरवाज़ा खुला…….रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़ कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया. रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे. अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाय. चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२ वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्ण योजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभाल के लिए उसकी खास दसियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लिवा लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते…..कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की….प्रभात बेला में उसने देखा कि एक जुलुस सा सात सौ बंद पालकियों का चला आ रहा है. खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था. खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ् त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वध कर दिया जायेगा…और चित्तौड़ पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस से ज्यादा सोच भी क्या सकता था. खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेश किया……और तुरंत अस्तव्यस्तता का माहौल बन गया… पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्य सुंदरी रानी पद्मिनी और उसकी दासियों का झुण्ड…… बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लेश रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे. गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे. मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंह जी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये. घमासान युद्ध हुआ, जहाँ दया करुणा को कोई स्थान नहीं था. मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.
अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई. खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था, जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य से मुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुष चित्त उसे कैसे स्वीकार का सकता था….उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी….मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेर लिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन कि फौज के सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ार में. छः महीने बीत गये, किले में संगृहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.” या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था,………
ऐसे में बस एक ही विकल्प बचा था झूझना…..युद्ध करना…..शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते. यही चिंता समायी थी धर्म परायण शिशोदिया वंश के राजपूतों में. …….
और मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया…..किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया…..सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक, अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया….और पलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी…… नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी…..अपने पुरुषों को अश्रुपूरित विदाई दे रही थी….अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसे ही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता कि ओर प्रस्थान किया…..और कूद पड़ी धधकती चित्ता में….अपने आत्मदाह के लिए….जौहर के लिए….देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.
अगस्त २५, १३०३ कि भोर थी, आत्मसंयमी दुखसुख को समान रूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिम श्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फट गयी…..सूरज कि लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई…..पुरुषों ने केसरिया बागे पहन लिए….अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया….मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा….दुर्ग के द्वार खोल दिए गये.
जय एकलिंग….हर हर महादेव कि हुंकार लगते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने मारने का ज़ज्बा था….आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये. अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ कि पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और छल लिया था.
रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था.दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लेश सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना. ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था, चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था. उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगाम के साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था. उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था. कैसे मानी ज सकती थी यह शर्मनाक शर्त. नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यह रवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाय इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था. कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था. मरने मारने का विकल्प तो अंतिम था. क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय ? रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमता नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.अल्ला-उ-द्दीन को जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए, राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है..बस. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. जहाँ कहीं भी. उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा. किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था. पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महल तक उसकी अगवानी की.महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपने ग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्केबक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया …तकनीकी तौर पर.उसे रानी साहिबा को दिखा दिया गया था…. सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था…… और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए,दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी .उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे….दरवाज़ा खुला…….रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़ कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया. रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे. अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाय. चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२ वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्ण योजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की. अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभाल के लिए उसकी खास दसियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लिवा लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते…..कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की….प्रभात बेला में उसने देखा कि एक जुलुस सा सात सौ बंद पालकियों का चला आ रहा है. खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था. खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ् त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वध कर दिया जायेगा…और चित्तौड़ पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस से ज्यादा सोच भी क्या सकता था. खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेश किया……और तुरंत अस्तव्यस्तता का माहौल बन गया… पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्य सुंदरी रानी पद्मिनी और उसकी दासियों का झुण्ड…… बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लेश रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे. गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे. मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंह जी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये. घमासान युद्ध हुआ, जहाँ दया करुणा को कोई स्थान नहीं था. मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी. अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई. खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था, जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य से मुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुष चित्त उसे कैसे स्वीकार का सकता था….उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी….मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेर लिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन कि फौज के सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ार में. छः महीने बीत गये, किले में संगृहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.” या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था,………ऐसे में बस एक ही विकल्प बचा था झूझना…..युद्ध करना…..शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते. यही चिंता समायी थी धर्म परायण शिशोदिया वंश के राजपूतों में. …….और मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया…..किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया…..सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक, अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया….और पलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी…… नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी…..अपने पुरुषों को अश्रुपूरित विदाई दे रही थी….अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसे ही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता कि ओर प्रस्थान किया…..और कूद पड़ी धधकती चित्ता में….अपने आत्मदाह के लिए….जौहर के लिए….देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था. अगस्त २५, १३०३ कि भोर थी, आत्मसंयमी दुखसुख को समान रूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिम श्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फट गयी…..सूरज कि लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई…..पुरुषों ने केसरिया बागे पहन लिए….अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया….मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा….दुर्ग के द्वार खोल दिए गये. जय एकलिंग….हर हर महादेव कि हुंकार लगते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने मारने का ज़ज्बा था….आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये. अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ कि पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और छल लिया था.


मेरा साथी भारतीयों के लिए ....

इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर पहुचाया. बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था लेकिन वहाँ से जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन के कारण बाहर निकाल दी गयी.... उसके बाद उनको शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया .

शान्तिनिकेतन से बहार निकाले जाने के बाद इंदिरा अकेला हो गयी. राजनीतिज्ञ के रूप में पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और मां तपेदिक के स्विट्जरलैंड में मर रही थी. उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के व्यापारी ने उठाया. फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु के घर पे मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था. फ़िरोज़ खान और इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डा. श्रीप्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी, कि इंदिरा फिरोज खान के साथ अवैध संबंध रहा था. फिरोज खान इंग्लैंड में तो था और इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. जल्द ही वह अपने धर्म का त्याग कर, एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक मस्जिद में फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी. इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने नया नाम मैमुना बेगम रख लिया. उनकी मां कमला नेहरू इस शादी से काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और ज्यादा बिगड़ गयी. नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे इंदिरा के प्रधानमंत्री बन्ने की सम्भावना खतरे में आ गयी.

तो, नेहरू ने युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से गांधी कर लो. परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ कोई लेना - देना नहीं था. यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम परिवर्तन का एक मामला था. और फिरोज खान फिरोज गांधी बन गया है, हालांकि यह बिस्मिल्लाह सरमा की तरह एक असंगत नाम है. दोनों ने ही भारत की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था. जब वे भारत लौटे, एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए स्थापित किया गया था. इस प्रकार, इंदिरा और उसके वंश को काल्पनिक नाम गांधी मिला. नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं. जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलती है, वैसे ही इन लोगो ने अपनी असली पहचान छुपाने के लिए नाम बदले.

इंदिरा गांधी के दो बेटे राजीव गांधी और संजय गांधी थे . संजय का मूल नाम संजीव था क्युकी राजीव और संजीव सुनने में अच्छे लगते थे. संजीव ब्रिटेन में कार चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ और उसका पासपोर्ट जब्त किया गया. इंदिरा गांधी की दिशा निर्देश में, भारतीय राजदूत कृष्णा मेनन अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर संजीव से उसका नाम संजय करवा दिया और एक नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवा दिया.

यह एक ज्ञात तथ्य यह है कि राजीव के जन्म के बाद, इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी अलग - अलग रहते थे, लेकिन उन्होंने छवि ख़राब होने के कारण तलाक नहीं लिया. के.एन. राव की पुस्तक "नेहरू राजवंश" (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र नहीं था, जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक तथ्यों को सामने रखा गया है. उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है की संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था.

दिलचस्प बात यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था. यूनुस शादी से नाखुश था क्युकी वह अपनी बहू के रूप में अपनी पसंद की एक मुस्लिम लड़की के साथ उसकी शादी करना चाहता था. मोहम्मद यूनुस ही वह व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा रोया था. 'यूनुस की पुस्तक "व्यक्ति जुनून और राजनीति" (persons passions and politics )(ISBN-10: 0706910176) में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के जन्म के बाद उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ किया गया था.

यह एक तथ्य है कि संजय गांधी लगातार अपनी माँ इंदिरा को ब्लाच्क्मैल करते थे की वह उनको असली पिता के बारे में बताये. संजय का अपनी माँ पर एक गहरा भावनात्मक नियंत्रण था जिसका वह अक्सर दुरोपयोग करते थे. इंदिरा गांधी संजय के कुकर्मों की अनदेखी करती थी और संजय परोक्ष रूप से सरकार नियंत्रित करता था.

जब संजय गांधी की मृत्यु की खबर इंदिरा गांधी के पास पहुची तो इंदिरा का पहला सवाल था "संजय की चाभी और घडी कहाँ है ??". नेहरू - गांधी वंश के बारे में कुछ गहरे रहस्य उन चीजों में छुपे थे. विमान दुर्घटना का होना भी आज तक एक रहस्य ही है. यह एक नया विमान था जो गोता मारकर जमीन पर गिरा और उसमे तब तक कोई विस्फोट या आग नहीं थी जब तक वह जमीन पर नहीं गिरा. यह तब होता है जब विमान में ईंधन ख़त्म हो जाता है. लेकिन उड़ान रजिस्टर से पता चलता है कि ईंधन टैंक उड़ान से पहले फुल किया गया था. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुचित प्रभाव का उपयोग कर इस दुर्घटना की जांच होने से रोक ली जो अपने आप में संदेहास्पद है.

कैथरीन फ्रैंक की पुस्तक "the life of Indira Nehru Gandhi (ISBN: 9780007259304) में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के कुछ पर प्रकाश डाला है. यह लिखा है कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन में जर्मन शिक्षक के साथ था. बाद में वह एमओ मथाई, (पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी (उनके योग शिक्षक) के साथ और दिनेश सिंह (विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए प्रसिद्द हुई.
पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के लिए संबंध के बारे में एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक "profiles and letters " (ISBN: 8129102358) में किया. यह कहा गया है कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के रूप में अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी . नटवर सिंह एक आईएफएस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. दिन भर के कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में सैर के लिए बाहर जाना था . कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद, इंदिरा गांधी बाबर की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी, हालांकि यह इस यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया. अफगान सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर आपत्ति जताई पर इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . अंत में वह उस कब्रगाह पर गयी . यह एक सुनसान जगह थी. वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर आँखें बंद करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . जब इंदिरा ने उसकी प्रार्थना समाप्त कर ली तब वह मुड़कर नटवर से बोली "आज मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we have had our brush with history ". यहाँ आपको यह बता दे की बाबर मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक था, और नेहरु खानदान इसी मुग़ल साम्राज्य से उत्पन्न हुआ. इतने सालो से भारतीय जनता इसी धोखे में है की नेहरु एक कश्मीरी पंडित था....जो की सरासर गलत तथ्य है.
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यह गिनती करना मुश्किल है आज कितने उच्च शिक्षा के संस्थानों कैसे राजीव गांधी के नाम पर चल रहे हैं लेकिन सच यह है की खुद राजीव गांधी कम क्षमता का एक व्यक्ति था. 1962 से 1965 तक, वह ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक यांत्रिक अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम के लिए नामांकित किया गया था. लेकिन, वह कैम्ब्रिज की डिग्री के बिना छोड़ दिया, क्योंकि वह परीक्षा पारित नहीं कर सका. अगले साल 1966 में, वह इंपीरियल कॉलेज, लंदन, गया लेकिन यहाँ भी डिग्री के बिना ही उनको जाना पड़ा.

ऊपर में के.एन. राव ने कहा कि पुस्तक का आरोप है कि राजीव गांधी एक कैथोलिक बन गए सानिया माइनो शादी करने के लिए. राजीव रॉबर्टो बन गया. उनके बेटे का नाम Raul और बेटी का नाम Bianca है. काफी चतुराई से एक ही नाम राहुल और प्रियंका के रूप में भारत के लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.

व्यक्तिगत आचरण में राजीव हमेशा ही एक मुगल राजा की तरह था. वह 15 अगस्त 1988 को लाल किले की प्राचीर से गरज कर बोला था : "हमारा प्रयास भारत को 250-300 साल पहले वाली ऊंचाई तक ले जाने के लिए होना चाहिए". यह तो औरंगजेब और उसके जेज़िया गुरु का शाशन काल था जो की नंबर एक का मंदिर विध्वंसक था. "

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद लन्दन में उनका पत्रकार सम्मेलन बहुत जानकारीपूर्ण था. इस पत्रकार सम्मेलन में राजीव दावा है कि वह एक पारसी है और हिन्दू नहीं है . फिरोज खान के पिता और राजीव गांधी के पैतृक दादा गुजरात के जूनागढ़ क्षेत्र से एक मुस्लिम सज्जन था. नवाब खान के नाम से यह मुस्लिम पंसारीने एक पारसी महिला को मुस्लिम बनाकर उससे शादी की थी. इस स्रोत से पता चलता है की वोह अपने आप को पारसी क्यों कहते थे. ध्यान रहे कि उनका कोई पारसी पूर्वज नहीं था . उनकी दादी ने पारसी धर्म को त्याग दिया और नवाब खान शादी के बाद मुस्लिम बन गयी थी . हैरानी की बात है, पारसी राजीव गांधी का वैदिक संस्कार के अनुसार भारतीय जनता का पूरा ध्यान में रखते हुए अंतिम संस्कार किया गया था.

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डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी लिखते हैं कि सोनिया गांधी के नाम एंटोनिया माइनो था. उसके पिता एक मेसन था. वह कुख्यात इटली के फासिस्ट शासन के एक कार्यकर्ता था और वह रूस में पांच साल की कैद की सेवा की. वास्तव में सोनिया गांधी ने कभी पांचवी कक्षा के ऊपर अध्ययन नहीं किया है. वह एक अंग्रेजी शिक्षण कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय परिसर में लेनोक्स स्कूल नाम की दुकान से कुछ अंग्रेजी सीखी है. इस तथ्य से वह प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने का दावा करती थी परन्तु जब डॉक्टर स्वामी ने उनके इस झूठ पर प्रश्न किये, तो सोनिया ने चुप्पी साध ली और बाद में कह दिया की उनके द्वारा cambridge university में डिग्री की बात एक "प्रिंटिंग मिस्टेक" है. उसके बाद सोनिया ने कभी cambridge university में पढने की बात नहीं स्वीकारी. सत्य यह है की कुछ अंग्रेजी सीखने के बाद, वह कैम्ब्रिज शहर में एक रेस्तरां में एक वेट्रेस थी .

सोनिया गांधी ब्रिटेन में जिस रेस्तरां में एक वेट्रेस थी वहां माधवराव सिंधिया अक्सर आते थे क्युकी वह उस समय cambridge में शिक्षा ले रहे थे. माधवराव सिंधिया से सोनिया के गर्म रिश्ते थे जो उसकी शादी के बाद भी जारी रहे . 1982 की एक रात 2 बजे आईआईटी दिल्ली मुख्य गेट के पास एक दुर्घटना हुई थी, जिसमे पुलीस ने श्री सिंधिया के साथ सोनिया को नशे की हालत में कार से बाहर निकाला था.

जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब प्रधानमंत्री के सुरक्षा कर्मी नई दिल्ली और चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों में प्राचीन मंदिर की मूर्तियां, और अन्य प्राचीन वस्तुओं को भारतीय खजाने के बक्सों में इटली भेजने जाते थे. मुख्यमंत्री और बाद में संस्कृति प्रभारी मंत्री के रूप में अर्जुन सिंह इस लूट का आयोजन करते थे. सीमा से अनियंत्रित, वे इटली में पहुंचा दिए जाते थे जहाँ उन्हें Etnica और Ganpati नाम के दो शो रूम्स में बेचा जाता था. ये दोनों शो रूम्स सोनिया गांधी की बहन Alessandra माइनो विंची के नाम पर हैं.

इंदिरा गांधी की मृत्यु उसके दिल या दिमाग में गोलियों के कारण नहीं हुई बल्कि वह खून की कमी के कारण मरी थी. इंदिरा गाँधी को गोली लगने के बाद जब उनका काफी खून बह चूका था उस समय सोनिया ने अजीब जोर देकर कहा है कि खून बह रहा इंदिरा गांधी को डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाया जाना चाहिए ना की एम्स में जो एक आपात प्रोटोकॉल के लिए और ठीक इस तरह की घटनाओं के इलाज के लिए उपयुक्त है. इस प्रकार 24 बहुमूल्य मिनट बर्बाद कर दिए गए . यह संदिग्ध है कि यह सोनिया गांधी की अपरिपक्वता या तेजी से सत्ता में उसके पति को लाने के लिए एक चाल थी.

राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया के प्रधानमंत्री के पद के लिए मजबूत दावेदार थे और वे सोनिया गांधी के सत्ता के लिए अपने रास्ते में पत्थर थे. उन दोनों के रहस्यमय दुर्घटनाओं में मृत्यु हो गई.

इस बात के प्रचुर तथ्य मौजूद हैं की मायिनो परिवार ने लिट्टे के साथ अनुबंध किया था जिससे उनकी राजीव हत्याकांड में भूमिका संदेहास्पद बनती है . आजकल, सोनिया गांधी काफी एमडीएमके, पीएमके और द्रमुक जैसे जो राजीव गांधी के हत्यारों की स्तुति के साथ राजनीतिक गठबंधन में अडिग है. कोई भारतीय विधवा कभी अपने पति के हत्यारों के साथ ऐसा नहीं कर सकती. ऐसी परिस्थितियों में कई हैं, और एक शक बढ़ा. राजीव की हत्या में सोनिया की भागीदारी में एक जांच आवश्यक है. (ISBN 81-220-0591-8) - तुम डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी पुस्तक "आशातीत प्रश्न और अनुत्तरित प्रश्न राजीव गांधी की हत्या पढ़ सकते हैं. यह इस तरह के षड्यंत्र का संकेत होता है.

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इटली के कानून के अनुसार राहुल और प्रियंका इटालियन नागरिक हैं क्युकी उन दोनों के जन्म के समय सोनिया गाँधी एक इटालियन नागरिक थी. 1992 में, सोनिया गांधी इतालवी नागरिकता कानून के अनुच्छेद 17 के तहत इटली की उसकी नागरिकता को पुनर्जीवित किया . राहुल गांधी के इतालवी उसकी हिन्दी की तुलना में बेहतर है. राहुल गांधी एक इतालवी नागरिक तथ्य यह है कि 27 सितंबर 2001 को वह एक इतालवी पासपोर्ट पर यात्रा करने के लिए बोस्टन हवाई अड्डे, संयुक्त राज्य अमेरिका में एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था से प्रासंगिक है. यदि भारत में एक कानून बना है कि कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर विदेशी मूल के एक व्यक्ति को नहीं लाया जा सकता तो राहुल गांधी को स्वचालित रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य हैं.

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स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद, राहुल गांधी नई दिल्ली में सेंट स्टीफंस कॉलेज में प्रवेश मिल गया, योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राइफल शूटिंग के खेल कोटे पर. 1989-90 में कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद राहुल ने 1994 में रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा जो एक christianचैरिटी द्वारा चलाया जाने वाला सी ग्रेड का कॉलेज है , से बी.ए. किया. बस एक बीए करने के लिए अमेरिका जाने की ज़रूरत किसी को नहीं होती. इसलिए अगले ही वर्ष, 1995 में उसे एम. फिल मिला ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से . इस डिग्री की वास्तविकता आप इसी से समझ सकते हैं की उन्हें ये डिग्री बिना एमए किये हुवे मिल गयी. इसके पीछे Amaratya सेन की मदद का हाथ माना जाता है. आप में से कई मशहूर फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस " देख ही चुके हैं .

2008 में राहुल गांधी ने कानपुर में चन्द्र शेखर आजाद विश्वविद्यालय के छात्रों की रैली के लिए एक सभागार का उपयोग करने से रोका गया था. बाद में, विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के. सूरी, को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा अपदस्थ किया गया था. 26/11 के दौरान जब पूरे देश के बारे में कैसे मुंबई आतंक से निपटने के लिए तनाव में था, राहुल गांधी आराम से प्रातः 5 बजे तक अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहा था . राहुल गांधी कांग्रेस के सदस्यों के लिए तपस्या की सलाह है. वे कहते हैं, यह सभी नेताओं का कर्तव्य है तपस्या हो. दूसरी ओर वह एक पूरी तरह सुसज्जित जिम वाले एक मंत्री वाले बंगला में रहते हैं . इसके अलावा वह दिल्ली के दो सबसे मेहेंगे ५ स्टार जिम के नियमित सदस्य भी हैं, राहुल गांधी की चेन्नई यात्रा 2009 में तपस्या के लिए अभियान के लिए पार्टी के 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये . इस तरह की विसंगतियों से पता चलता है कि राहुल गांधी द्वारा की गई पहलों का कितना महत्व है.
2007 उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि "अगर नेहरू - गांधी परिवार का कोई भी सदस्य उस समय सक्रिय होता तो बाबरी मस्जिद कभी न गिरती."
इस कथन से उनका अपने पूर्वजों के लिए एक वफादारी के रूप में अपने मुसलमान संबद्धता का पता चलता है.
31 दिसंबर, 2004 को जॉन एम., itty, केरल के अलाप्पुझा जिले में एक सेवानिवृत्त कॉलेज के प्रोफेसर, दलील देते है कि केरल में एक रिसॉर्ट में तीन दिनों के लिए एक साथ रहने के लिए राहुल गांधी और उसकी प्रेमिका Juvenitta उर्फ वेरोनिका के खिलाफ कार्रवाई लिया जाना चाहिए. यह अनैतिक तस्करी अधिनियम के तहत एक आपराधिक अपमान के रूप में वे शादी नहीं कर रहे. वैसे भी, एक और विदेशी बहू के सहिष्णु भारतीयों पर राज कर रही है.

स्विस पत्रिका Schweizer है Illustrierte 11 वीं नवम्बर 1991 अंक से पता चला है कि राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी द्वारा नियंत्रित अमेरिकी 2 अरब डॉलर के लायक खातों के लाभार्थी था. 2006 में स्विस बैंकिंग एसोसिएशन से एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय नागरिकों की संयुक्त जमा के रूप में अभी तक किसी भी अन्य देश, 1.4 खरब अमरीकी डॉलर का एक कुल, एक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक का आंकड़ा अधिक से अधिक कर रहे हैं. इस राजवंश ने भारत के आधे से अधिक नियम. केंद्र की उपेक्षा कर, बाहर के 28 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेशों की, उनमें से आधे से अधिक समय के किसी भी बिंदु पर कांग्रेस सरकार है. तक राजीव गांधी ने भारत में मुगल शासन के साथ सोनिया गांधी, रोम भारत पर शासन करना शुरू कर दिया था.

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इस लेख लिखने के पीछे उद्देश्य भारतीय नागरिको को उनके प्रिय नेताओ के बारे में जागरूक करना है और यह बताना है की किस तरह एक परिवार सदियों से इस देश को खोकला करता आ रहा है और हम भारतीय चुपचाप उनकी गुलामी करते जा रहे हैं. सबूत के समर्थन की कमी की वजह से इस लेख में कई अन्य चौंकाने वाला तथ्य नहीं प्रस्तुत कर रहे हैं.
इन सभी तथ्यों की पुष्टि के लिए आप डॉक्टर सुभ्रमनियम स्वामी की पुस्तकों या उनकी वेबसाइट देख सकते हैं.

शान्तिनिकेतन से बहार निकाले जाने के बाद इंदिरा अकेला हो गयी. राजनीतिज्ञ के रूप में पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और मां तपेदिक के स्विट्जरलैंड में मर रही थी. उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के व्यापारी ने उठाया. फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु के घर पे मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था. फ़िरोज़ खान और इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डा. श्रीप्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी, कि इंदिरा फिरोज खान के साथ अवैध संबंध रहा था. फिरोज खान इंग्लैंड में तो था और इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. जल्द ही वह अपने धर्म का त्याग कर, एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन के एक मस्जिद में फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी. इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने नया नाम मैमुना बेगम रख लिया. उनकी मां कमला नेहरू इस शादी से काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और ज्यादा बिगड़ गयी. नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे इंदिरा के प्रधानमंत्री बन्ने की सम्भावना खतरे में आ गयी.
तो, नेहरू ने युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से गांधी कर लो. परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ कोई लेना - देना नहीं था. यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम परिवर्तन का एक मामला था. और फिरोज खान फिरोज गांधी बन गया है, हालांकि यह बिस्मिल्लाह सरमा की तरह एक असंगत नाम है. दोनों ने ही भारत की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था. जब वे भारत लौटे, एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए स्थापित किया गया था. इस प्रकार, इंदिरा और उसके वंश को काल्पनिक नाम गांधी मिला. नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं. जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलती है, वैसे ही इन लोगो ने अपनी असली पहचान छुपाने के लिए नाम बदले.
इंदिरा गांधी के दो बेटे राजीव गांधी और संजय गांधी थे . संजय का मूल नाम संजीव था क्युकी राजीव और संजीव सुनने में अच्छे लगते थे. संजीव ब्रिटेन में कार चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ और उसका पासपोर्ट जब्त किया गया. इंदिरा गांधी की दिशा निर्देश में, भारतीय राजदूत कृष्णा मेनन अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर संजीव से उसका नाम संजय करवा दिया और एक नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवा दिया.
यह एक ज्ञात तथ्य यह है कि राजीव के जन्म के बाद, इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी अलग - अलग रहते थे, लेकिन उन्होंने छवि ख़राब होने के कारण तलाक नहीं लिया. के.एन. राव की पुस्तक "नेहरू राजवंश" (10:8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र नहीं था, जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक तथ्यों को सामने रखा गया है. उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है की संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था.
दिलचस्प बात यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ मोहम्मद यूनुस के घर में ही हुआ था. यूनुस शादी से नाखुश था क्युकी वह अपनी बहू के रूप में अपनी पसंद की एक मुस्लिम लड़की के साथ उसकी शादी करना चाहता था. मोहम्मद यूनुस ही वह व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा रोया था. 'यूनुस की पुस्तक "व्यक्ति जुनून और राजनीति" (persons passions and politics )(ISBN-10: 0706910176) में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के जन्म के बाद उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ किया गया था.
यह एक तथ्य है कि संजय गांधी लगातार अपनी माँ इंदिरा को ब्लाच्क्मैल करते थे की वह उनको असली पिता के बारे में बताये. संजय का अपनी माँ पर एक गहरा भावनात्मक नियंत्रण था जिसका वह अक्सर दुरोपयोग करते थे. इंदिरा गांधी संजय के कुकर्मों की अनदेखी करती थी और संजय परोक्ष रूप से सरकार नियंत्रित करता था.
जब संजय गांधी की मृत्यु की खबर इंदिरा गांधी के पास पहुची तो इंदिरा का पहला सवाल था "संजय की चाभी और घडी कहाँ है ??". नेहरू - गांधी वंश के बारे में कुछ गहरे रहस्य उन चीजों में छुपे थे. विमान दुर्घटना का होना भी आज तक एक रहस्य ही है. यह एक नया विमान था जो गोता मारकर जमीन पर गिरा और उसमे तब तक कोई विस्फोट या आग नहीं थी जब तक वह जमीन पर नहीं गिरा. यह तब होता है जब विमान में ईंधन ख़त्म हो जाता है. लेकिन उड़ान रजिस्टर से पता चलता है कि ईंधन टैंक उड़ान से पहले फुल किया गया था. इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुचित प्रभाव का उपयोग कर इस दुर्घटना की जांच होने से रोक ली जो अपने आप में संदेहास्पद है. 
कैथरीन फ्रैंक की पुस्तक "the life of Indira Nehru Gandhi (ISBN: 9780007259304) में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के कुछ पर प्रकाश डाला है. यह लिखा है कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन में जर्मन शिक्षक के साथ था. बाद में वह एमओ मथाई, (पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी (उनके योग शिक्षक) के साथ और दिनेश सिंह (विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए प्रसिद्द हुई.पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के लिए संबंध के बारे में एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक "profiles and letters " (ISBN: 8129102358) में किया. यह कहा गया है कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के रूप में अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी . नटवर सिंह एक आईएफएस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. दिन भर के कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में सैर के लिए बाहर जाना था . कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद, इंदिरा गांधी बाबर की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी, हालांकि यह इस यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया. अफगान सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर आपत्ति जताई पर इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . अंत में वह उस कब्रगाह पर गयी . यह एक सुनसान जगह थी. वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर आँखें बंद करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . जब इंदिरा ने उसकी प्रार्थना समाप्त कर ली तब वह मुड़कर नटवर से बोली "आज मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we have had our brush with history ". यहाँ आपको यह बता दे की बाबर मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक था, और नेहरु खानदान इसी मुग़ल साम्राज्य से उत्पन्न हुआ. इतने सालो से भारतीय जनता इसी धोखे में है की नेहरु एक कश्मीरी पंडित था....जो की सरासर गलत तथ्य है.~ * ~ * ~ * ~ * ~ * ~
यह गिनती करना मुश्किल है आज कितने उच्च शिक्षा के संस्थानों कैसे राजीव गांधी के नाम पर चल रहे हैं लेकिन सच यह है की खुद राजीव गांधी कम क्षमता का एक व्यक्ति था. 1962 से 1965 तक, वह ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में एक यांत्रिक अभियांत्रिकी पाठ्यक्रम के लिए नामांकित किया गया था. लेकिन, वह कैम्ब्रिज की डिग्री के बिना छोड़ दिया, क्योंकि वह परीक्षा पारित नहीं कर सका. अगले साल 1966 में, वह इंपीरियल कॉलेज, लंदन, गया लेकिन यहाँ भी डिग्री के बिना ही उनको जाना पड़ा.
ऊपर में के.एन. राव ने कहा कि पुस्तक का आरोप है कि राजीव गांधी एक कैथोलिक बन गए सानिया माइनो शादी करने के लिए. राजीव रॉबर्टो बन गया. उनके बेटे का नाम Raul और बेटी का नाम Bianca है. काफी चतुराई से एक ही नाम राहुल और प्रियंका के रूप में भारत के लोगों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं.
व्यक्तिगत आचरण में राजीव हमेशा ही एक मुगल राजा की तरह था. वह 15 अगस्त 1988 को लाल किले की प्राचीर से गरज कर बोला था : "हमारा प्रयास भारत को 250-300 साल पहले वाली ऊंचाई तक ले जाने के लिए होना चाहिए". यह तो औरंगजेब और उसके जेज़िया गुरु का शाशन काल था जो की नंबर एक का मंदिर विध्वंसक था. "
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद लन्दन में उनका पत्रकार सम्मेलन बहुत जानकारीपूर्ण था. इस पत्रकार सम्मेलन में राजीव दावा है कि वह एक पारसी है और हिन्दू नहीं है . फिरोज खान के पिता और राजीव गांधी के पैतृक दादा गुजरात के जूनागढ़ क्षेत्र से एक मुस्लिम सज्जन था. नवाब खान के नाम से यह मुस्लिम पंसारीने एक पारसी महिला को मुस्लिम बनाकर उससे शादी की थी. इस स्रोत से पता चलता है की वोह अपने आप को पारसी क्यों कहते थे. ध्यान रहे कि उनका कोई पारसी पूर्वज नहीं था . उनकी दादी ने पारसी धर्म को त्याग दिया और नवाब खान शादी के बाद मुस्लिम बन गयी थी . हैरानी की बात है, पारसी राजीव गांधी का वैदिक संस्कार के अनुसार भारतीय जनता का पूरा ध्यान में रखते हुए अंतिम संस्कार किया गया था.
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डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी लिखते हैं कि सोनिया गांधी के नाम एंटोनिया माइनो था. उसके पिता एक मेसन था. वह कुख्यात इटली के फासिस्ट शासन के एक कार्यकर्ता था और वह रूस में पांच साल की कैद की सेवा की. वास्तव में सोनिया गांधी ने कभी पांचवी कक्षा के ऊपर अध्ययन नहीं किया है. वह एक अंग्रेजी शिक्षण कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय परिसर में लेनोक्स स्कूल नाम की दुकान से कुछ अंग्रेजी सीखी है. इस तथ्य से वह प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने का दावा करती थी परन्तु जब डॉक्टर स्वामी ने उनके इस झूठ पर प्रश्न किये, तो सोनिया ने चुप्पी साध ली और बाद में कह दिया की उनके द्वारा cambridge university में डिग्री की बात एक "प्रिंटिंग मिस्टेक" है. उसके बाद सोनिया ने कभी cambridge university में पढने की बात नहीं स्वीकारी. सत्य यह है की कुछ अंग्रेजी सीखने के बाद, वह कैम्ब्रिज शहर में एक रेस्तरां में एक वेट्रेस थी .
सोनिया गांधी ब्रिटेन में जिस रेस्तरां में एक वेट्रेस थी वहां माधवराव सिंधिया अक्सर आते थे क्युकी वह उस समय cambridge में शिक्षा ले रहे थे. माधवराव सिंधिया से सोनिया के गर्म रिश्ते थे जो उसकी शादी के बाद भी जारी रहे . 1982 की एक रात 2 बजे आईआईटी दिल्ली मुख्य गेट के पास एक दुर्घटना हुई थी, जिसमे पुलीस ने श्री सिंधिया के साथ सोनिया को नशे की हालत में कार से बाहर निकाला था.
जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब प्रधानमंत्री के सुरक्षा कर्मी नई दिल्ली और चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों में प्राचीन मंदिर की मूर्तियां, और अन्य प्राचीन वस्तुओं को भारतीय खजाने के बक्सों में इटली भेजने जाते थे. मुख्यमंत्री और बाद में संस्कृति प्रभारी मंत्री के रूप में अर्जुन सिंह इस लूट का आयोजन करते थे. सीमा से अनियंत्रित, वे इटली में पहुंचा दिए जाते थे जहाँ उन्हें Etnica और Ganpati नाम के दो शो रूम्स में बेचा जाता था. ये दोनों शो रूम्स सोनिया गांधी की बहन Alessandra माइनो विंची के नाम पर हैं.
इंदिरा गांधी की मृत्यु उसके दिल या दिमाग में गोलियों के कारण नहीं हुई बल्कि वह खून की कमी के कारण मरी थी. इंदिरा गाँधी को गोली लगने के बाद जब उनका काफी खून बह चूका था उस समय सोनिया ने अजीब जोर देकर कहा है कि खून बह रहा इंदिरा गांधी को डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाया जाना चाहिए ना की एम्स में जो एक आपात प्रोटोकॉल के लिए और ठीक इस तरह की घटनाओं के इलाज के लिए उपयुक्त है. इस प्रकार 24 बहुमूल्य मिनट बर्बाद कर दिए गए . यह संदिग्ध है कि यह सोनिया गांधी की अपरिपक्वता या तेजी से सत्ता में उसके पति को लाने के लिए एक चाल थी.
राजेश पायलट और माधव राव सिंधिया के प्रधानमंत्री के पद के लिए मजबूत दावेदार थे और वे सोनिया गांधी के सत्ता के लिए अपने रास्ते में पत्थर थे. उन दोनों के रहस्यमय दुर्घटनाओं में मृत्यु हो गई.
इस बात के प्रचुर तथ्य मौजूद हैं की मायिनो परिवार ने लिट्टे के साथ अनुबंध किया था जिससे उनकी राजीव हत्याकांड में भूमिका संदेहास्पद बनती है . आजकल, सोनिया गांधी काफी एमडीएमके, पीएमके और द्रमुक जैसे जो राजीव गांधी के हत्यारों की स्तुति के साथ राजनीतिक गठबंधन में अडिग है. कोई भारतीय विधवा कभी अपने पति के हत्यारों के साथ ऐसा नहीं कर सकती. ऐसी परिस्थितियों में कई हैं, और एक शक बढ़ा. राजीव की हत्या में सोनिया की भागीदारी में एक जांच आवश्यक है. (ISBN 81-220-0591-8) - तुम डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी पुस्तक "आशातीत प्रश्न और अनुत्तरित प्रश्न राजीव गांधी की हत्या पढ़ सकते हैं. यह इस तरह के षड्यंत्र का संकेत होता है.
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इटली के कानून के अनुसार राहुल और प्रियंका इटालियन नागरिक हैं क्युकी उन दोनों के जन्म के समय सोनिया गाँधी एक इटालियन नागरिक थी. 1992 में, सोनिया गांधी इतालवी नागरिकता कानून के अनुच्छेद 17 के तहत इटली की उसकी नागरिकता को पुनर्जीवित किया . राहुल गांधी के इतालवी उसकी हिन्दी की तुलना में बेहतर है. राहुल गांधी एक इतालवी नागरिक तथ्य यह है कि 27 सितंबर 2001 को वह एक इतालवी पासपोर्ट पर यात्रा करने के लिए बोस्टन हवाई अड्डे, संयुक्त राज्य अमेरिका में एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था से प्रासंगिक है. यदि भारत में एक कानून बना है कि कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर विदेशी मूल के एक व्यक्ति को नहीं लाया जा सकता तो राहुल गांधी को स्वचालित रूप से प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य हैं.
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स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद, राहुल गांधी नई दिल्ली में सेंट स्टीफंस कॉलेज में प्रवेश मिल गया, योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राइफल शूटिंग के खेल कोटे पर. 1989-90 में कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद राहुल ने 1994 में रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा जो एक christianचैरिटी द्वारा चलाया जाने वाला सी ग्रेड का कॉलेज है , से बी.ए. किया. बस एक बीए करने के लिए अमेरिका जाने की ज़रूरत किसी को नहीं होती. इसलिए अगले ही वर्ष, 1995 में उसे एम. फिल मिला ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से . इस डिग्री की वास्तविकता आप इसी से समझ सकते हैं की उन्हें ये डिग्री बिना एमए किये हुवे मिल गयी. इसके पीछे Amaratya सेन की मदद का हाथ माना जाता है. आप में से कई मशहूर फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस " देख ही चुके हैं .
2008 में राहुल गांधी ने कानपुर में चन्द्र शेखर आजाद विश्वविद्यालय के छात्रों की रैली के लिए एक सभागार का उपयोग करने से रोका गया था. बाद में, विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के. सूरी, को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा अपदस्थ किया गया था. 26/11 के दौरान जब पूरे देश के बारे में कैसे मुंबई आतंक से निपटने के लिए तनाव में था, राहुल गांधी आराम से प्रातः 5 बजे तक अपने दोस्तों के साथ जश्न मना रहा था . राहुल गांधी कांग्रेस के सदस्यों के लिए तपस्या की सलाह है. वे कहते हैं, यह सभी नेताओं का कर्तव्य है तपस्या हो. दूसरी ओर वह एक पूरी तरह सुसज्जित जिम वाले एक मंत्री वाले बंगला में रहते हैं . इसके अलावा वह दिल्ली के दो सबसे मेहेंगे ५ स्टार जिम के नियमित सदस्य भी हैं, राहुल गांधी की चेन्नई यात्रा 2009 में तपस्या के लिए अभियान के लिए पार्टी के 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये . इस तरह की विसंगतियों से पता चलता है कि राहुल गांधी द्वारा की गई पहलों का कितना महत्व है.2007 उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि "अगर नेहरू - गांधी परिवार का कोई भी सदस्य उस समय सक्रिय होता तो बाबरी मस्जिद कभी न गिरती."इस कथन से उनका अपने पूर्वजों के लिए एक वफादारी के रूप में अपने मुसलमान संबद्धता का पता चलता है.31 दिसंबर, 2004 को जॉन एम., itty, केरल के अलाप्पुझा जिले में एक सेवानिवृत्त कॉलेज के प्रोफेसर, दलील देते है कि केरल में एक रिसॉर्ट में तीन दिनों के लिए एक साथ रहने के लिए राहुल गांधी और उसकी प्रेमिका Juvenitta उर्फ वेरोनिका के खिलाफ कार्रवाई लिया जाना चाहिए. यह अनैतिक तस्करी अधिनियम के तहत एक आपराधिक अपमान के रूप में वे शादी नहीं कर रहे. वैसे भी, एक और विदेशी बहू के सहिष्णु भारतीयों पर राज कर रही है.
स्विस पत्रिका Schweizer है Illustrierte 11 वीं नवम्बर 1991 अंक से पता चला है कि राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी द्वारा नियंत्रित अमेरिकी 2 अरब डॉलर के लायक खातों के लाभार्थी था. 2006 में स्विस बैंकिंग एसोसिएशन से एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय नागरिकों की संयुक्त जमा के रूप में अभी तक किसी भी अन्य देश, 1.4 खरब अमरीकी डॉलर का एक कुल, एक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक का आंकड़ा अधिक से अधिक कर रहे हैं. इस राजवंश ने भारत के आधे से अधिक नियम. केंद्र की उपेक्षा कर, बाहर के 28 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेशों की, उनमें से आधे से अधिक समय के किसी भी बिंदु पर कांग्रेस सरकार है. तक राजीव गांधी ने भारत में मुगल शासन के साथ सोनिया गांधी, रोम भारत पर शासन करना शुरू कर दिया था.
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इस लेख लिखने के पीछे उद्देश्य भारतीय नागरिको को उनके प्रिय नेताओ के बारे में जागरूक करना है और यह बताना है की किस तरह एक परिवार सदियों से इस देश को खोकला करता आ रहा है और हम भारतीय चुपचाप उनकी गुलामी करते जा रहे हैं. सबूत के समर्थन की कमी की वजह से इस लेख में कई अन्य चौंकाने वाला तथ्य नहीं प्रस्तुत कर रहे हैं.इन सभी तथ्यों की पुष्टि के लिए आप डॉक्टर सुभ्रमनियम स्वामी की पुस्तकों या उनकी वेबसाइट देख सकते हैं.