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किसी ने सच ही कहा है कि जिस देश को बरबाद करना हो सबसे पहले उसकी संस्कृति पर हमला करो और वहाँ की युवा पीढी को गुमराह करो । जो समाज इनकी रक्षा नहीं कर सकता उसका पतन और सर्वनाश निश्चित हो जाता है । हमारे आसपास घटने वाली काफ़ी बातें समाज के गिरते नैतिक स्तर और खोखले होते सांस्कृतिक माहौल की ओर इशारा कर रही हैं, एक खतरे की घंटी बज रही है, लेकिन समाज और नेता लगातार इसकी अनदेखी करते जा रहे हैं । इसके लिये सामाजिक ढाँचे या पारिवारिक ढाँचे का पुनरीक्षण करने की बात अधिकतर समाजशास्त्री उठा रहे हैं, परन्तु मुख्यतः जिम्मेदार है हमारे आसपास का माहौल और लगातार तेज होती जा रही "भूख" । जी हाँ "भूख" सिर्फ़ पेट की नहीं होती, न ही सिर्फ़ तन की होती है, एक और भूख होती है "मन की भूख" । इसी विशिष्ट भूख को "बाजार" जगाता है, उसे हवा देता है, पालता-पोसता है और उकसाता है। यह भूख पैदा करना तो आसान है, लेकिन क्या हमारा समाज, हमारी राजनीति, हमारा अर्थतन्त्र इतना मजबूत और लचीला है, कि इस भूख को शान्त कर सके ।दृश्य-श्रव्य माध्यमों का प्रभाव कोमल मन पर सर्वाधिक होता है, एक उम्र विशेष के युवक, किशोर, किशोरियाँ इसके प्रभाव में बडी जल्दी आ जाते हैं । जब यह वर्ग देखता है कि किसी सिगरेट पीने से बहादुरी के कारनामे किये जा सकते हैं, या फ़लाँ शराब पीने से तेज दौडकर चोर को पकडा जा सकता है, अथवा कोई कूल्हे मटकाती और अंग-प्रत्यंग का फ़ूहड प्रदर्शन करती हुई ख्यातनाम अभिनेत्री किसी साबुन को खरीदने की अपील (?) करे, तो वयःसन्धि के नाजुक मोड़ पर खडा किशोर मन उसकी ओर तेजी से आकृष्ट होता है । इन्तिहा तो तब हो जाती है, जब ये सारे तथाकथित कारनामे उनके पसन्दीदा हीरो-हीरोईन कर रहे होते हैं, तब वह भी उस वस्तु को पाने को लालायित हो उठता है, उसे पाने की कोशिश करता है, वह सपने और हकीकत में फ़र्क नहीं कर पाता । जब तक उसे इच्छित वस्तु मिलती रहती है, तब तक तो कोई समस्या नहीं है, परन्तु यदि उसे यह नहीं मिलती तो वह युवक कुंठाग्रस्त हो जाता है । फ़िर वह उसे पाने के लिये नाजायज तरीके अपनाता है, या अपराध कर बैठता है । और जिनको ये सुविधायें आसानी से हासिल हो जाती हैं, वे इसके आदी हो जाते हैं, उन्हें नशाखोरी या पैसा उडाने की लत लग जाती है, जिसकी परिणति अन्ततः किसी मासूम की हत्या या फ़िर चोरी-डकैती में शामिल होना होता है । ये युवक तब अपने आपको एक अन्धी गली में पाते हैं, जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता । आजकल अपने आसपास के युवकों को धडल्ले से पैसा खर्च करते देखा जा सकता है । यदि सिर्फ़ पाऊच / गुट्खे का हिसाब लगाया जाये, तो एक गुटका यदि दो रुपये का मिलता है, और दिन में पन्द्रह-बीस पाऊच खाना तो आम बात है, इस हिसाब से सिर्फ़ गुटके का तीस रुपये रोज का खर्चा है, इसमें दोस्तों को खिलाना, सिगरेट पिलाना, मोबाइल का खर्च, दिन भर यहाँ-वहाँ घूमने के लिये पेट्रोल का खर्चा, अर्थात दिन भर में कम से कम सौ रुपये का खर्च, मासिक तीन हजार रुपये । क्या भारत के युवा अचानक इतने अमीर हो गये हैं ? यह अनाप-शनाप पैसा तो कुछ को ही उपलब्ध है, परन्तु जब उनकी देखादेखी एक मध्यम या निम्नवर्गीय युवा का मन ललचाता है, तो वह रास्ता अपराध की ओर ही मुडता है । यह "बाजार" की मार्केटिंग की ताकत (?) ही है, जो इस "मन की भूख" को पैदा करती है, और यही सबसे खतरनाक बात है ।
अपसंस्कृति की भूख फ़ैलाने में बाजार और उसके मुख्य हथियार (!) टीवी का योगदान (?) इसमें अतुलनीय है । उदारीकरण की आँधी में हमारे नेताओं द्वारा सांस्कृतिक प्रदूषण की ओर से आँखें मूंद लेने के कारण इनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने वाला कोई न रहा, जिसके कारण ये तथाकथित "मीडिया" और अधिक उच्छृंखल और बदतर होता गया है । एक जानकारी के अनुसार फ़्रेण्डशिप डे के लिये पूरे देश के "बाजार" में लगभग चार सौ करोड़ रुपयों की (ग्रीटिंग, गुलाब के फ़ूल, चॉकलेट और उपहार मिलाकर) खरीदारी हुई । जो चार सौ करोड रुपये (जिनमें से अधिकतर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जेब में गये हैं) अगले वर्ष बढकर सात सौ करोड हो जायेंगे, इसका उन्हें पूरा विश्वास है । लेकिन "प्रेम" और "दोस्ती" के इस भौंडे प्रदर्शन में जिस "धन" की भूमिका है वही सारे पतन की जड है, और इसका सामाजिक असर क्या होगा, इस बारे में कोई सोचने को भी तैयार नहीं है । जिस तरह से भावनाओं का बाजारीकरण किया जा रहा है, युवाओं का मानसिक और आर्थिक शोषण किया जा रहा है, वह गलत है, कई बार यह आर्थिक शोषण, शारीरिक शोषण में बदल जाता है । मजे की बात तो यह है कि कई बार कोई दिवस क्यों मनाया जाता है, इसका पता भी उन्हें नहीं होता, परन्तु जैसा मीडिया बता दे अथवा जैसी "भेडचाल" हो वैसा ही सही, जैसा कि वेलेण्टाइन के मामले मे है कि "जिस दिन को ये युवा प्रेम-दिवस के रूप में मनाते हैं दरअसल वह एक शहीद दिवस है, क्योंकि संयोगवश तीनों वेलेण्टाइनों को तत्कालीन राजाओं ने मरवा दिया था, और वह भी चौदह फ़रवरी को" । अब आपत्ति इस बात पर है कि जब आप जानते ही नहीं कि यह उत्सव किसलिये और क्यों मनाया जा रहा है, ऐसे दिवस का क्या औचित्य है ? मार्केटिंग के पैरोकारों की रटी-रटाई दलील होती है कि "यदि इन दिवसों का बाजारीकरण हो भी गया है तो इसमें क्या बुराई है ? क्या पैसा कमाना गलत बात है ? किसी बहाने से बाजार में तीन-चार सौ करोड रुपया आता है, तो इसमें हाय-तौबा क्यों ? जिसे खरीदना हो वह खरीदे, जिसे ना खरीदना हो ना खरीदे, क्या यह बात आपत्तिजनक है ?" नहीं साहब पैसा कमाना बिलकुल गलत बात नहीं, लेकिन जिस आक्रामक तरीके उस पूरे "पैकेज" की मार्केटिंग की जाती है, उसका उद्देश्य युवाओं से अधिक से अधिक पैसा खींचने की नीयत होती है और वह "मार्केटिंग" उस युवा के मन में भी खर्च करने के भाव जगाती है जिसकी जेब में पैसा नहीं है और ना कभी होगा, यह गलत बात है । पढने-सुनने में भले ही अजीब लगे, परन्तु सच यही है कि आज की तारीख में भारत के पचास-साठ प्रतिशत युवाओं की खुद की कोई कमाई नहीं है, और ऐसे युवाओं की संख्या भी कम ही है जिन्हें नियमित जेबखर्च मिलता हो । बाप वीआरएस और जबरन छँटनी का शिकार है, और बेटे को कोई नौकरी नहीं है, इसलिये दोनों ही बेकार हैं और टीवी उन्हें यह "भूख" परोस रहा है, पैसे की भूख, साधनों की भूख । भूख जो कि एक दावानल का रूप ले रही है । इसी मोड पर आकर "सामाजिक परिवर्तन", "सामाजिक क्रान्ति", "सामाजिक असर" की बात प्रासंगिक हो जाती है, लेकिन लगता है कि देश कानों में तेल डाले सो रहा है । आज हमारे चारों तरफ़ घोटाले, राजनीति, पैसे के लिये मारामारीम हत्याएं, बलात्कार हो रहे हैं, इन सभी के पीछे कारण वही "भूख" है । समाजशास्त्रियों की चिंता वाजिब है कि ऐसे लाखों युवाओं की फ़ौज समाज पर क्या असर डालेगी ? लेकिन "मदर्स डे", "फ़ादर्स डे", "वेलेन्टाईन", "फ़्रेण्डशिप डे", ये सब प्रतीक मात्र नहीं है, बल्कि इनसे आपको कमतरी का एहसास कराया जाता है कि यदि आपने कोई उपहार नहीं दिया तो आपको दोस्ती करना नहीं आता, यदि आपने कार्ड या फ़ूल नहीं खरीदा इसका मतलब है कि आप प्रेम नहीं करते, परिणाम यह होता है कि विवेकानन्द या अपने कोर्स की कोई किताब खरीदने की बजाय व्यक्ति किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी की कोई बेहूदा चॉकलेट खरीद लेता है, क्योंकि उस चॉकलेट से तथाकथित "स्टेटस" (?) जुडा है, और यही "स्टेटस" यानी एक और "भूख" । बाजार को नियन्त्रित करने वालों से यही अपेक्षा है कि उस "भूख" को भडकाने का काम ना करें, जो आज समाज के लिये "भस्मासुर" साबित हो रही है, कल उनके लिये भी खतरा बन सकती है ।


प्रिय सुरेश,
कृपया अपने आज के पत्र को सन्दर्भित करें । मुझे आपका यह "ऑफ़र" स्वीकृत करने में खुशी होगी । हालाँकि आपकी "प्रमोशन" सम्बन्धी शर्त आकर्षक है, लेकिन आपके पत्र में सेवा शर्तों का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, अतः कुछ बिन्दुओं पर जानकारी एवं स्पष्टीकरण भेजने का कष्ट करें । जैसे आपकी कम्पनी में सेवानिवृत्ति पश्चात मिलने वाले लाभ, "ग्रेच्युटी" की राशि आदि की जानकारी । साथ ही सुरक्षित भविष्य के लिये कृपया आप मुझे लिखित आश्वासन दें कि कोई "छँटनी या तालाबन्दी" आदि नहीं होगी, इसी प्रकार ट्रांसपोर्टेशन एवं रसोई शुल्क आदि की दरें भी केन्द्र सरकार की अनुशंसाओं के अनुसार होना चाहिये ।
यदि इन शर्तों के साथ आप फ़िर भी मुझे अपनी प्रेमिका नियुक्त करना चाहें तो कृपया अतिशीघ्र विस्तृत सूचना के साथ उत्तर भेजने का कष्ट करें, क्योंकि इसी प्रकार के कई ऑफ़र एवं अनुबन्ध मेरे समक्ष लम्बित हैं, उन्हें भी यथासमय उत्तर देना आवश्यक है । साथ ही यह सूचना भी दी जाती है कि मेरी बहन काफ़ी समय पहले "अनुबन्धित" हो चुकी है, और उसके दो बच्चे भी हैं...
तत्काल प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में
सधन्यवाद
आपकी सम्भावित प्रेमिका
सारिका


आदरणीय बिल्लू भिया को,
इंडिया से मुंगेरीलाल सरपंच का सलाम कबूल हो... आपके देश के एक और बिल्लू भिया (बतावत रहें कि प्रेसीडेंटवा रहे) ऊ भी इस पंचायत को एक ठो कम्प्यूटर दे गये हैं । अब हमरे गाँव में थोडा-बहुत हमही पढे-लिखे हैं तो कम्प्यूटर को हम घर पर ही रख लिये हैं । ई चिट्ठी हम आपको इसलिये लिख रहे हैं कि उसमें बहुत सी खराबी हैं (लगता है खराब सा कम्प्यूटर हमें पकडा़ई दिये हैं), ढेर सारी "प्राबलम" में से कुछ नीचे लिख रहे हैं, उसका उपाय बताईये -
१. जब भी हम इंटरनेट चालू करने के लिये पासवर्ड डालते हैं तो हमेशा ******** यही लिखा आता है, जबकि हमारा पासवर्ड तो "चमेली" है... बहुत अच्छी लडकी है...।
२. जब हम shut down का बटन दबाते हैं, तो कोई बटन काम नही करता है ।
३. आपने start नाम का बटन रखा है, Stop नाम का कोई बटन नही है.... रखवाईये...
४. क्या इस कम्प्यूटर में re-scooter नाम का बटन है ? आपने तो recycle बटन रखा है, जबकि हमारी सायकल तो दो महीने से खराब पडी है...
५. Run नाम के बटन दबा कर हम गाँव के बाहर तक दौड़कर आये, लेकिन कुछ नही हुआ, कृपया इसे भी चेक करवायें या फ़िर Sit नाम का बटन बनायें...
६. कल हमारी चाबियाँ खो गई थीं, Find का बटन दबाया, लेकिन नहीं मिली, क्या किया जाये ?
७. Out-Look का बटन दबा कर छोरे को बहुत देर तक बाहर देखने को बोला,,, भैंस और चमेली के अलावा कुछ नहीं दिखा....
८. programs तो आपने बहुत दिये हैं लेकिन हमरे काम का कुछ नहीं, इसलिये प्रार्थना है कि... जीटीवी, एमटीवी भी चालू करवा दें... मजा आ जायेगा....
९. Paste की भी कोई जरूरत नहीं है... हम तो नीम की दातौन करते हैं...
१०. सिर्फ़ एक बात तारीफ़ की है... कि आपने ये कैसे जाना कि यह "My Computer" है ?
जल्दी से जल्दी कम्प्यूटर ठीक करवाने की कृपा करें... ताकि पंचायत का काम "सई-साट" चले...

हस्ताक्षर / अंगूठा
सरपंच मुंगेरीलाल


एक बार चार युवक देर रात तक "बार" में मस्ती करते रहे और नशे में चूर होकर घर लौटे । अगले दिन उनकी एक महत्वपूर्ण परीक्षा थी । रात की मस्ती के कारण उन्हें अगली सुबह उठने में देर हो गई । उन्होंने सोचा कि परीक्षा में देर से पहुँचे तो प्रिन्सिपल डाँटेंगे और यदि अनुपस्थित रहे तो फ़ेल तो होना ही है, चारों ने एक तरकीब सोची..और अपने-अपने कपडे़ गन्दे कर लिये । कपडों पर मिट्टी और ऑईल रगड़ लिया, फ़िर चारों कॉलेज पहुँचे । उनकी पेशी प्राचार्य के सामने हुई, कारण पूछने पर उन्होंने बताया - सर... बहुत मुश्किल हो गई थी हम चारों साथ-साथ ही एक कार में परीक्षा देने निकले थे, लेकिन रास्ते में कार का टायर पंचर हो गया और कोई मदद नहीं मिली, इसलिये हमें आने में देर हो गई, देखिये सर हमारे कपडे अभी भी कितने गन्दे हो रहे हैं, इसलिये हम प्रार्थना करते हैं कि कृपया हमें फ़ेल ना किया जाये, बल्कि और किसी दिन हमारी परीक्षा ले ली जाये, हम उसके लिये तैयार हैं । प्राचार्य ने कहा - ठीक है तुम चारों परसों आ जाओ, तुम्हारी परीक्षा उस दिन ले लेते हैं । चारों युवक अपनी इस सफ़लता पर बहुत खुश हुए, उन्होंने सोचा कि चलो बच गये अब परसों तो परीक्षा दे ही देंगे, खूब बेवकूफ़ बनाया प्रिन्सिपल को... मजा आ गया । नियत दिन पर जब वे कॉलेज पहुँचे तो प्राचार्य ने कहा कि - तुम लोगों का मामला थोडा अलग है इसलिये तुम चारों अलग-अलग कमरों में बैठकर परीक्षा दोगे । युवक राजी हो गये । परीक्षा हुई, रिजल्ट आया और चारों युवक फ़ेल हो गये । दरअसल परीक्षा में सौ अंकों का सिर्फ़ एक सवाल पूछा गया था - कार का कौन सा टायर पंक्चर हुआ था ? इसलिये बूढों को कमतर नहीं आँकना चाहिये ...


एक बार एक भारतीय व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिकावासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे एक से बढकर एक भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में थक-हार कर जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि यहाँ के नर्क में सजा की क्या व्यवस्था है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ जाओ अन्दर !!!


यदि आपको प्रमोशन चाहिये या बॉस की नजरों में चढना है तो कृपया ये आजमाये हुए नुस्खे देखें और अमल में लायें, शर्तिया फ़ायदे की गारंटी....

(१) हमेशा आपके हाथ में काम से सम्बन्धित कागज होने चाहिये 
वह कर्मचारी जिसके हाथ में सदैव काम के कागज या फ़ाईलें होती हैं, बहुत मेहनती माना जाता है (माना जाता है, होता नहीं है),इसलिये ऑफ़िस में इधर-उधर खामख्वाह घूमते हुए आपके हाथ में हमेशा कोई कागज होना चाहिये, यदि आपके हाथ में कुछ नहीं है तो लोग समझेंगे कि आप कैण्टीन जा रहे हैं, और यदि आपके हाथ में अखबार है तो ऐसा प्रतीत होगा कि आप टॉयलेट जा रहे हैं । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शाम को ऑफ़िस से जाते समय कुछ फ़ाईलें घर जरूर ले जायें, ताकि यह भ्रम बना रहे कि आप ऑफ़िस का काम घर पर भी करते हैं ।

(२) व्यस्त दिखने के लिये कम्प्य़ूटर का उपयोग करें - 
जब भी आप कम्प्य़ूटर का उपयोग करते हैं तो लोगों को आप बहुत व्यस्त प्रतीत होते हैं । हालांकि मॉनिटर का मुँह ऐसी तरफ़ रखें जहाँ से कोई यह ना देख सके कि आप चैटिंग कर रहे हैं और गेम खेल रहे हैं । कम्प्य़ूटर क्रांति के इस अनोखे सामाजिक उपयोग से आप बॉस की निगाह में चढ जायेंगे । यदि भगवान ना करे आप पकडे जायें (और यह तो कभी ना कभी होकर रहेगा) तो आप बहाना बना सकते हैं कि मैं इस "सॉफ़्टवेयर" को सीख कर देख रहा था, जिससे कम्पनी का "ट्रेनिंग" का पैसा बचे ।

(३) काम करने की टेबल हमेशा भरी हुई होना चाहिये - 
आपके काम करने की जगह हमेशा भरी हुई और अस्तव्यस्त होनी चाहिये । टेबल पर ढेर सारे कागज और फ़ाईलें इधर-उधर बिखरे होने चाहिये, कुछ सीडी, कुछ फ़्लॉपियाँ और आधे-अधूरे प्रिंट आऊट भी बिखरे हों तो सोने पर सुहागा । जब आपको मालूम हो कि किसी व्यक्ति को आपसे किसी फ़ाईल का काम है, तो उस खास फ़ाईल को एक बडे ढेर मे छुपा दीजिये और उसके सामने ही ढूँढिये । हो सके तो कम्प्य़ूटर से सम्बन्धित मोटी-मोटी किताबें कहीं से इकठ्ठा कर लें (पढने के लिये नहीं).. उससे आपकी इमेज विशिष्ट बनेगी । एक बात याद रखें कि पढने वाले को प्रमोशन नहीं मिलता, झाँकी जमाने वाले को मिलता है ।

(४) वॉइस (आन्सरिंग) मशीन का अधिकाधिक उपयोग करें - 
संचार तकनीक के एक और वरदान "आन्सरिंग मशीन" का अधिक से अधिक उपयोग करें । जब आपका बॉस या कोई सहकर्मी आपको फ़ोन करे तो जरूरी नहीं कि वह काम आवश्यक ही हो... इसलिये भले ही आप फ़ोन के सिर पर बैठे हों, कभी सीधे जवाब ना दें, बल्कि यह काम "आन्सरिंग मशीन" को करने दें । फ़िर थोडी देर बाद सभी सन्देशों को सुनें, उसमें से मुख्य और आवश्यक को छाँटकर ठीक लंच टाईम में सामने वाले को फ़ोन करें, ताकि उसे लगे कि आप लंच टाईम में भी ऑफ़िस वर्क भूलते नहीं हैं ।

(५) हमेशा असंतुष्ट और अन्यमनस्क दिखें - 
काम करते समय हमेशा असन्तुष्ट और तनावग्रस्त दिखें । जब भी कोई सहकर्मी आपसे कुछ पूछे तो सबसे पहले एक गहरी साँस लें, ताकि उसे लगे कि आप काम के बोझ से बेहद दबे हुए हैं । साथ ही अपने जूनियर को हमेशा सीख देते रहें और उससे हमेशा असन्तुष्ट रहें, जूनियर के चार कामों में से तीन में जरूर मीनमेख निकालें और एक में "हाँ.. ठीक है" कहें..

(६) ऑफ़िस से हमेशा सबसे देर से निकलें - 
ऑफ़िस से हमेशा आपको देर से घर के लिये निकलना चाहिये, खासकर तब जबकि आपका बॉस ऑफ़िस में हो । आराम से मैगजीन और किताबें पढते रहें, जब तक कि जाने का समय ना हो जाये । ऑफ़िस टाईम के बाद कोशिश करें कि बॉस के कमरे के सामने से कम से कम दो-तीन बार गुजरें । यदि बॉस की गाडी खराब हो जाये और आप उसे उसके घर पर "ड्रॉप" कर सकें, इससे अधिक पुण्य आपके लिये और कुछ नहीं है, इसलिये हो सके तो साल में तीन बार कुछ ऐसा करें कि बॉस आपकी गाडी में लिफ़्ट ले । जितनी महत्वपूर्ण ई-मेल हो उसे हमेशा विषम समय पर ही भेजें, जैसे रात के साढे नौ बजे या सुबह सात बजे । बॉस की निगाह जरूर ई-मेल में पडे समय पर पडेगी, और वह बेहद "इम्प्रेस" हो जायेगा ।

(७) अपना भाषा ज्ञान और व्याकरण बढायें - 
आपको अंग्रेजी के कुछ मुहावरे और लच्छेदार भाषा कंठस्थ करनी होगी । कम्प्य़ूटर और मैनेजमेंट से सम्बन्धित कुछ भारी-भरकम शब्द और वाक्य रचना यदि आप रट सकें तो बेहतर होगा, और जब भी बॉस के साथ बात करें इन शब्दों का भरपूर उपयोग करें, इस अन्दाज में कि बॉस को लगना चाहिये कि यदि यह बात नहीं मानी गई तो कम्पनी में प्रलय आ जायेगी ।

(८) हमेशा दो कोट या जैकेट (जो भी पहनते हों) रखें - 
यदि आप किसी बडे ऑफ़िस में काम करते हैं, तो आपको हमेशा दो कोट रखना चाहिये । एक पहने रहें और दूसरा आपकी कुर्सी पर टंगा होना चाहिये । इससे एक तो आप आराम से घूम-फ़िर सकते हैं और दूसरे लोग समझेंगे कि आप आस-पास ही कहीं हैं, आते ही होंगे । यदि देर हो भी जाये तो आप कह सकते हैं कि जरूरी मीटिंग थी ।

तो साहेबान, इन नुस्खों को आज से ही लागू कर दीजिये, फ़िर देखिये आपका बॉस तो आपसे खुश रहेगा ही, आपके सहकर्मी भी आपके प्रमोशन को देख-देख जलेंगे..


आजकल विभिन्न मैनेजमेंट साईटें हमे बताती हैं कि नौकरी के लिये इंटरव्यू देते समय क्या-क्या कहना चाहिये, क्या नहीं कहना चाहिये, क्या बताना चाहिये, क्या छुपाना चाहिये आदि-आदि । इसलिये इंटरव्यू के समय प्रत्याशी रेडीमेड और रटे-रटाये, ऊँचे-ऊँचे उत्तर देते हैं, लेकिन असल में उनके मन में क्या होता है, यह पढिये -
हालांकि प्रश्न भी लगभग वही होते हैं सभी कम्पनियों में...लेकिन जो उत्तर हैं वे असल में दिल की आवाज हैं ।

प्रश्न - आपने इस नौकरी के लिये क्यों आवेदन किया ?
उत्तर - बस यूँ ही बहुत सारी जगह आवेदन दिया था, आपने बुला लिया तो चला आया ।
प्रश्न - आप इस कम्पनी के लिये क्यों काम करना चाहते हैं ?
उत्तर - जो कम्पनी मुझे नौकरी दे मुझे वहाँ करना ही है, लेकिन खासतौर से आपकी कम्पनी का नाम मेरे दिमाग में नहीं है..
प्रश्न - हम आपको नौकरी क्यों दें ?
उत्तर - किसी ना किसी को तो आपको रखना ही है, मुझे ही ट्राय करें..
प्रश्न - यदि यह नौकरी मिल जाती है तो आप क्या करेंगे ?
उत्तर - यह तो मेरे मूड और तात्कालिक परिस्थिति पर निर्भर करेगा..
प्रश्न - आपकी प्रमुख शक्ति या मजबूती क्या है ?
उत्तर - अच्छी तनख्वाह देने वाली किसी भी कम्पनी में नौकरी करना, मेरे या कम्पनी के भविष्य की परवाह किये बिना..
प्रश्न - आपकी सबसे बडी कमजोरी क्या है ?
उत्तर - लड़कियाँ (आपकी कम्पनी में भी अच्छी-अच्छी लडकियाँ हैं)
प्रश्न - आपकी सबसे बडी गलती क्या थी, और उससे आपने क्या सीखा ?
उत्तर - पहले वाली कम्पनी में नौकरी करना और सीख मिली कि अधिक तनख्वाह होना चाहिये, इसीलिये मैं आज यहाँ हूँ..
प्रश्न - आप पिछली नौकरी क्यों छोड रहे हैं ?
उत्तर - सीधी सी बात है, सैलेरी बढाने के लिये..
प्रश्न - इस नौकरी से आपकी क्या अपेक्षायें हैं ?
उत्तर - काम ना दिया जाये और हर साल सैलेरी प्रमोशन दिया जाये..
प्रश्न - इस नौकरी का प्रमुख उद्देश्य क्या है और आपकी भविष्य की क्या योजनायें हैं ?
उत्तर - अधिक से अधिक पैसा प्राप्त करना, और उसके लिये प्रत्येक दो-चार वर्षों में कम्पनी बदलते रहना..
प्रश्न - आप की तनख्वाह की क्या अपेक्षायें हैं, और आप उसे कैसे उचित ठहरायेंगे ?
उत्तर - कोई भी व्यक्ति तब तक मौजूदा कम्पनी नहीं छोडता जब तक कि उसे बीस प्रतिशत अधिक तनख्वाह दूसरी कम्पनी में ना मिले (यह एक अलिखित नियम है) इसलिये मुझे बीस प्रतिशत अधिक तनख्वाह चाहिये (और मुझे मालूम है कि आप "बारगेनिंग" करेंगे, इसलिये मैंने पिछली तनख्वाह भी बीस प्रतिशत बढाकर बताई है...)
धन्यवाद, आप जा सकते हैं...


चाणक्य और विदेशी बहू प्रसंग - 

आज से करीब 2300 साल पहले पहले पैदा हुए चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के पहले विचारक माने जाते हैं। पाटलिपुत्र (पटना) के शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़ फेंकने और अपने शिष्य चंदगुप्त मौर्य को बतौर राजा स्थापित करने में 
चाणक्य का अहम योगदान... रहा। ज्ञान के केंद्र तक्षशिला विश्वविद्यालय में 
आचार्य रहे चाणक्य राजनीति के चतुर खिलाड़ी थे और इसी कारण उनकी नीति कोरे 
आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान पर टिकी है। आप एक प्रसंग पढे 

सम्राट चंद्रगुप्त अपने मंत्रियों के साथ एक विशेष मंत्रणा में व्यस्त थे कि प्रहरी ने सूचित किया कि आचार्य चाणक्य राजभवन में पधार रहे हैं । सम्राट चकित रह गए । इस असमय में गुरू का आगमन ! वह घबरा भी गए । अभी वह कुछ सोचते ही कि लंबे - लंबे डग भरते चाणक्य ने सभा में प्रवेश किया ।

सम्राट चंद्रगुप्त सहित सभी सभासद सम्मान में उठ गए । सम्राट ने गुरूदेव को सिंहासन पर आसीन होने को कहा । आचार्य चाणक्य बोले - " भावुक न बनो सम्राट , अभी तुम्हारे समक्ष तुम्हारा गुरू नहीं , तुम्हारे राज्य का एक याचक खड़ा है , मुझे कुछ याचना करनी है । " चंद्रगुप्त की आँखें डबडबा आईं । बोले - " आप आज्ञा दें , समस्त राजपाट आपके चरणों में डाल दूं । " चाणक्य ने कहा - " मैंने आपसे कहा भावना में न बहें , मेरी याचना सुनें । " गुरूदेव की मुखमुद्रा देख सम्राट चंद्रगुप्त गंभीर हो गए । बोले - " आज्ञा दें । " चाणक्य ने कहा - " आज्ञा नहीं , याचना है कि मैं किसी निकटस्थ सघन वन में साधना करना चाहता हूं । दो माह के लिए राजकार्य से मुक्त कर दें और यह स्मरण रहे वन में अनावश्यक मुझसे कोई मिलने न आए । आप भी नहीं । मेरा उचित प्रबंध करा दें । " 

चंद्रगुप्त ने कहा - " सब कुछ स्वीकार है । " दूसरे दिन प्रबंध कर दिया गया । चाणक्य वन चले गए । अभी उन्हें वन गए एक सप्ताह भी न बीता था कि यूनान से सेल्युकस ( सिकन्दर का सेनापति ) अपने जामाता चंद्रगुप्त से मिलने भारत पधारे । उनकी पुत्री का हेलेन का विवाह चंद्रगुप्त से हुआ था । दो - चार दिन के बाद उन्होंने चाणक्य से मिलने की इच्छा प्रकट कर दी । सेल्युकस ने कहा - " सम्राट , आप वन में अपने गुप्तचर भेज दें । उन्हें मेरे बारे में कहें । वह मेरा बड़ा आदर करते है । वह कभी इन्कार नहीं करेंगे । " 

अपने श्वसुर की बात मान चंद्रगुप्त ने ऐसा ही किया । गुप्तचर भेज दिए गए । चाणक्य ने उत्तर दिया - " ससम्मान सेल्युकस वन लाए जाएं , मुझे उनसे मिल कर प्रसन्नता होगी । " सेना के संरक्षण में सेल्युकस वन पहुंचे । औपचारिक अभिवादन के बाद चाणक्य ने पूछा - " मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ । " इस पर सेल्युकस ने कहा - " भला आपके रहते मुझे कष्ट होगा ? आपने मेरा बहुत ख्याल रखा । " न जाने इस उत्तर का चाणक्य पर क्या प्रभाव पड़ा कि वह बोल उठे - " हां , सचमुच आपका मैंने बहुत ख्याल रखा । " इतना कहने के बाद चाणक्य ने सेल्युकस के भारत की भूमि पर कदम रखने के बाद से वन आने तक की सारी घटनाएं सुना दीं । उसे इतना तक बताया कि सेल्युकस ने सम्राट से क्या बात की , एकांत में अपनी पुत्री से क्या बातें हुईं । मार्ग में किस सैनिक से क्या पूछा । सेल्युकस व्यथित हो गए । बोले - " इतना अविश्वास ? मेरी गुप्तचरी की गई । मेरा इतना अपमान । "

चाणक्य ने कहा - " न तो अपमान , न अविश्वास और न ही गुप्तचरी । अपमान की तो बात मैं सोच भी नहीं सकता । सम्राट भी इन दो महीनों में शायद न मिल पाते । आप हमारे अतिथि हैं । रह गई बात सूचनाओं की तो वह मेरा " राष्ट्रधर्म " है । आप कुछ भी हों , पर विदेशी हैं । अपनी मातृभूमि से आपकी जितनी प्रतिबद्धता है , वह इस राष्ट्र से नहीं हो सकती । यह स्वाभाविक भी है । मैं तो सम्राज्ञी की भी प्रत्येक गतिविधि पर दृष्टि रखता हूं । मेरे इस ' धर्म ' को अन्यथा न लें । मेरी भावना समझें । " 

सेल्युकस हैरान हो गया । वह चाणक्य के पैरों में गिर पड़ा । उसने कहा - " जिस राष्ट्र में आप जैसे राष्ट्रभक्त हों , उस देश की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देख सकता । " सेल्युकस वापस लौट गया ।

मित्रों आज भारत में फिर से एक विदेशी बहु का राज चल रहा है , तो क्या हम भारतीय राष्ट्रधर्म का पालन कर रहे है ???


जीवन में ढलती खुशियों की शाम है बीवी
जो पढ़ी नहीं सिर्फ सुनी जाये वो कलाम है बीवी

सर चढ़ गयी तो फिर कुछ भी अपने बस में नहीं
ये जान के भी जो पी जाये वो जाम है बीवी

क्यों मारी पैर पे कुल्हाड़ी जेहन में उनके है अब
जो सोचते थे चक्कर काटने का इनाम है बीवी

अरेंज मर्डर हुआ हो या इश्क में खुद ही चढ़ गए सूली
जो सब को झेलनी, ऐसी उलझनों आम है बीवी

सजा तय है जो जुर्म किया हो न किया हो
रोयी नहीं की फिर क्या सबूत क्या इलज़ाम है बीवी

माँ की कहानियों में ही होती थी सावित्री, दमयंती
मगर अब शहरी चका-चौंध की गुलाम है बीवी

क्या करो, ओढो, पहनो ये बताने की जुर्रत किसको
पर क्या ये खर्चे मेरे पसीने का दाम है बीवी

माँ-बाप पीछे पड़े हैं कैसे समझाऊ उन्हें
बदलते दौर में किस बला का नाम है बीवी

कुंवारा हूँ सो कह लूं आज जो कुछ भी कहना है
कल तो लिखना ही है खुदा का पैगाम है बीवी





भगवान् का शुक्र है अभी तक कुंवारा हूँ .


दिल में दर्द दबाने की
आँखों में नमी छुपाने की
हर कोशिश कर के हार गए
हम तेरी याद भूलाने की

तेरी चाहत में हमने
हर दर्द को समझा थोड़ा था
उस रोज बिखर गए टूट के हम
जब तुमने भी भी मुंह मोडा था
रोते रहे थे रात भर
बाकी फिर भी समंदर था
जाने कितना दर्द अभी भी
इस सीने के अंदर था

फिर आदत हो गयी दिल को
वक़्त गम के साथ बिताने की
हर कोशिश कर के हार गए
हम तेरी याद भूलाने की

कु. विजेंद्र शेखावत
ठि. सिंहासन


यौवन के मद में अनियंत्रित, सागर में खो जाने को
आज चला था पैसो से मैं यौवन का सुख पाने को

दिल की धड़कन भी थिरक रही थी यौवन के मोहक बाजे पे
अरमानों के साथ मैं पंहुचा उस तड़ीता के दरवाजे पे

अंदर पंहुचा तो मानो हया ने भी मुँह फेर लिया
चारो तरफ से मुझको यूँ रुपसियों ने था घेर लिया

हर कोई अपने यौवन के श्रृंगार से सुसज्जित था
पर अब जाने क्यों मेरा मॅन थोडा सा लज्जित था

आहत होता था हृदय बहुत उन संबोधन के तीरों से
पर अभी भी मॅन था बंधा हुआ संवेगों की जंजीरों से

तभी एक रूपसी पर अटकी मेरी दृष्टि थी
लगता था मानो स्वयं वही सुन्दरता की सृष्टि थी

व्यग्र हुआ मॅन साथ में उसके स्वयं चरम सुख पाने को
उस कनकलता को लिए चला अपनी कामाग्नि बुझाने को

जून के उष्ण महीने में बसंती सी हो गयी थी रुत
कुछ ऐसे अपने तन को उसने मेरे समुख किया प्रस्तुत

खुला निमंत्रण था सपनो को आलिंगन में भरने का
पर नहीं समझ पा रहा था कारण अपने अंतस के डरने का

अंतस को अनदेखा कर के प्रथम स्पर्श किया तन को
उस मद से ज्यादा मद-मादित अब तक कुछ नहीं लगा मॅन को

खुद अंग ही इतने सुंदर थे लज्जा आ जाये गहनों को
पर सहसा सहम गया देख उस मृग-नयनी के नयनो को

आँखों में कोई चमक नहीं चेहरे पे कोई भाव नहीं
सपने कोई छीन गया जैसे जीने कोई चाह नहीं

प्रश्नों की श्रृंखल कड़ियों ने सारा मद तोड़ दिया पल में
व्याकुल था अंतस जानने को क्या है इसके हृदयातल में

उसे देख अवस्था में ऐसी जब रहा नहीं गया मुझसे
जो उबल रहा था अंतस में वो सब कुछ बोल दिया उससे

आँखे सूना चेहरा सूना क्यों सूना तेरा जीवन है
इच्छाओं के संसार में क्यों अब लगता नहीं तेरा मॅन है

सिर्फ तन का मूल्य दिया हूँ मैं, मॅन पर मेरा अधिकार नहीं
पर इतना तो बता ऐ कनकलता क्या तुझको मैं स्वीकार्य नहीं

हे कामप्रिया!,हे मृगनयनी! ऐसी क्या विवशता है तुझको
जो मॅन से मेरे साथ नहीं फिर तन क्यों सौप दिया मुझको

शांत भाव से बोली वो यहाँ मॅन को कौन समझता है
एक लड़की के लिए गरीबी ही उसकी सबसे बड़ी विवशता है

इतना कह के फिर शांत हो गयी कुछ समझ नहीं आया मुझको
प्रश्नों की श्रृंखल कड़ियों से फिर मैंने झक-झोर दिया उसको

लड़ना ही जीवन है चाहे मुश्किल कितनी भी ज्यादा हो
फिर नारी हो के क्यों तोड़ दिया तुमने अपनी मर्यादा को

कमी नहीं दुनिया में काम की पैसे इज्जत से कमाने को
फिर क्यों बेच दिया खुद को बस अपनी क्षुधा मिटाने को ?

तड़प उठी वो मेरे ऐसे प्रश्नों के आघातों से
मुझसे बोली क्या समझाना चाहते हो इन बातों से

शौक नहीं था वेश्या बन बाज़ारों में बिक जाने का
अपने ही हाथों से खुद अपना आस्तित्व मिटाने का

पर आँखों के सारे सपने एक रोज बह गए पानी में
जब माँ-बाप,घर-आँगन सब खो गए सुनामी में

फिर एक ही रात में बदल गयी मेरी दुनिया की तस्वीर यहाँ
कठपुतली बना के बहुत नचाई मुझको मेरी तक़दीर यहाँ

दिन अच्छे हो जाते हैं राते भी अच्छी लगती हैं
भरे पेट को सिद्धांत की हर बातें अच्छी लगती हैं

पर मई-जून की गर्मी से जब देह झुलसने लगती है
रोटी के टुकड़े खोज रही आँखे कुछ थकने लगती हैं

भूख की आग में तड़प-तड़प मुश्किल से दिन कट पाते हैं
अपनी बेबसी में घुट-घुट कर सपनों को जलाती रातें है

जब नीली छत के सिवा सर पर कोई और छत नहीं होती है
कपडो के छेदों से झाँक रही मजबूरी खुद पे रोती है

गिद्धदृष्टि से देहांश देखता जब कोई चीर-सुराखों से
तब मॅन छलनी हो जाता है तीर विष बुझे लाखों से

जब इन हालातों से लड़ लड़ कर जवानी थकने लगती है
तब मर्यादा और सम्मान की ये बातें बेमानी लगने लगतीं है

लोगो ने जाने कितनी बार मन को निर्वस्त्र कर डाला था
पर फिर भी किसी तरह मैंने अपना तन संभाला था

पर एक दिन कुचल गयी कली कुछ मदमाते क़दमों से
कुछ और नहीं अब बाकी था इन किस्मत के पन्नों में

खुद को ख़त्म कर लेने का निश्चय कर लिया मेरे मॅन ने
पर लाख चाहने पर भी दिल का साथ नहीं दिया हिम्मत ने

पर जीने का मतलब मेरे लिए हर मोड़ पर एक समझौता था
फिर इस जगह से ज्यादा गया गुजरा मेरे लिए क्या हो सकता था

इतना गिर गयी हूँ मैं कैसे ये सवाल हमेशा डसता था
लेकिन मेरे पास भी इसके सिवा अब और कहाँ कोई रस्ता था

उस वक़्त बहुत मैं रोई थी हद से ज्यादा चिल्लाई थी
दूसरों के हाथ आस्तित्वहीन हा जब खुद को मैं पाई थी

पर रो-रो के सारे आंसू एक रोज़ बहा डाला मैंने
हर अरमान का गला घोंट कफ़न ओढा डाला मैंने

पर अब पेट भर जाने पर भी जब नीद नहीं आती रातों को
नहीं सँभाल पता है ये दिल तब इन बिखरे जज्बातों को

क्यों नहीं सजा सकती हूँ मैं दुल्हन बन किसी आँगन को
क्यों प्रेयसी बनने का अधिकार नहीं मिला मुझ अभागन को

काश कि मैं भी किसी को प्राणों से प्यारा कह पाती
काश कि मैं भी किसी के हृदयातल में रह पाती

काश कि मेरे आँचल में भी एक अंश मेरा अपना होता
ममता से पागल हो जाती एक बार जो मुझको माँ कहता

इतना कहते कहते ही उसकी आँखे भर आई थी
मैं भी था खामोश वहाँ बस एक उदासी छाई थी

फिर मुझमे हिम्मत ही नहीं थी उससे कुछ कह पाने को
धीमे क़दमों से लौट गया वापस गंतव्य पे जाने को

सोचता रहा ये रास्ते भर होके मानववृत्ति के अधीन
वो चरित्रहीन थी या फिर दुनिया ही है चरित्रहीन



सभी मित्रों से निवेदन है कृपया इसे असभ्य न समझे ये आज के समाज के इंसान की असलियत है  

कु. विजेंद्र शेखावत
ठि. सिंहासन


(अपने बी. काम. फर्स्ट इयर में जब मैंने ये कविता लिखी थी उस वक़्त unicode जैसी सहूलियत नहीं थी इसलिए मेरे दोस्त भगवान सिंह , जो की इस कविता के प्रेरणा भी थे (क्युकी वो कभी कभी बोलता की यार मैं इमरान हाश्मी बनना चाहता हूँ ) ने इसे हिंदी पैड पे लिख के jpeg फॉर्मेट में मेल में attach किया! आज मैं इसे unicode में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ )

मैं इमरान हाशमी बनना चाहता हूँ

पांचवी कक्षा की एक क्लास मे मास्टर ने बच्चों से पूछा
बताओ क्या बनोगे, कैसे करोंगे अपने माँ-बाप का नाम ऊँचा
किसी ने IAS. किसी ने PCS. किसी ने कहा अच्छा आदमी बनाना चाहता हूँ
तभी पीछे की सीट से उठकर एक बच्चे ने कहा
Sir! मैं इमरान हाशमी बनना चाहता हूँ

ऐसे जवाब की ख्वाब मे भी नही की थी कभी कल्पना
पर Teacher को लगा शायद हो ये लडके का बचपना
समझाया की बेटा गलती की है तुने Career को चुनने मे
ये तो बता क्या प्रॉब्लम है तुझे और कुछ बनने मे ???

लड़का बोला Sir! जॉब मे अभी कहाँ इतना पैसा है
और Business करना मुझे लगता बेवकूफों जैसा है
नेता फस जाते हैं Akshar स्टिंग ऑपरेशन के जंजाल मे
खेल मे Zahar भर दिया मैच फिक्सिंग के बवाल ने
पर फ़िल्म इंडस्ट्री मे प्रोफिट की लाइन हमेशा ऊपर चढ़ती है
बढ़िया काम से Price-Value तो बुरे से Popularity बढ़ती है
और इस बात को तो ख़ुद कई बड़े फ़िल्म समीक्षक माने है
MMS Clips से भी ज्यादा बिकते इमरान के फिल्मो के गाने है

मै भी ऐसे गाने कर अपनी लाइफ बदलना चाहता हूँ
इसीलिए तो Sir! मैं इमरान हाशमी बनाना चाहता हूँ

हुंह!!!! आज कल के लडके जाने पढ़ते हैं किस किताब से
Teacher का भी सर चक्र गया बच्चे के इस जवाब से
Teacher ने फ़िर भी पूछा उसमे ऐसी क्या बात समाई है
ये तो बता अभिषेक बच्चन बनने मे क्या बुराई है ???

सिर्फ़ दो फिल्मो से इतना नाम नही कमाया अभिषेक के बाप ने
Murder किया लड़किया फ़िर भी कहती .Aashiq Banaya Aap Ne…
मल्लिका,तनुश्री, उदिता निपटी पिछली फिल्मों की साइन मे
सुनाने मे आया है की अब सेलिना हृषिता भी है लाइन मे

मै भी ऐसे टेस्टी CHOCOLATE का स्वाद चखाना चाहता हूँ
इसीलिए तो Sir मैं इमरान हाशमी बनाना चाहता हूँ

अब मास्टर का गुस्सा पहुच गया सातवे आसमान पे
बोले.. सिवाय लड़किया घुमाने के क्या किया इमरान ने ??
Sir! लड़कियों को पीछे घुमाना कोई आसान काम नही
वरना बड़े Powerful लोगो का होता ये अंजाम नहीं

क्या नही जानते आप America के पूर्व राष्ट्रपति को ??
कैसे प्राप्त हुए मोनिका के चक्कर मे .वीरगति को
बदल गया कप्तान देश का सौरभ-नग्मा के टक्कर मे
Cricket खेलना भूल गया वो .नए खेल के चक्कर मे
मेरी इतनी बातों का मतलब बिलकुल सीधा-साफ है
काबिलियेत मे भी इमरान हाशमी. बिल क्लिंटन का बाप है

मैं भी एक Demanded और काबिल आदमी बनाना चाहता हूँ
इसीलिए तो Sir! मैं इमरान हाशमी बनाना चाहता हूँ


कु. विजेंद्र शेखावत
ठि. सिंहासन


जमाने के सितम ने कर दिया बहुत बुरा हाल है,
इंजीनियरिंग कॉलेज में जूली का ये चौथा साल है,

यूँ तो क्लास में टीचर एंट्री देते नहीं इसे,
पर २-३ क्लास करके जूली ने मचाया काफी बवाल है,

कहाँ साल भर प्रिप्रेशन करने के बाद लड़के एडमिशन लेने आते हैं,
और फिर रहने के लिए हॉस्टल का एक ट्रीपल सीटर रूम पाते हैं,

पर जूली तो बचपन से ही हॉस्टल में अपनी मनमानी चलायी है,
किसी ट्रिपल सीटर में दिन तो सिंगल सीटर में रातें बिताई है,

वार्डेन महीनों में कभी चेक करे ये बड़ी बात हैं,
पर जूली कमरों में झांकती हर रात हैं,

दरवाजा बंद है तो अगले पे जाती है,
गर खुला मिल जाये तो बिस्तर पे आराम फरमाती है,

इतना ही नहीं जूली ने और भी कई गुल खिलाये हैं,
चंगु-मंगू नाम के दो बच्चे अपने गुलशन में उगाये हैं,

पर आजकल जूली घूमती तन्हा अकेली है,
उसके बच्चो का पिता कौन है ये अबुझ पहेली है,

हमारे पड़ोस वाले गुप्ता जी नशे में मस्त रहते हैं,
इनकी बक-बक से पूरे हॉस्टलवासी त्रस्त रहते हैं,

उस रात जूली उनके कमरे में सोई थी,
अपने टाइगर के खयालो में जाने कहाँ खोई थी,

इतने में गुप्ता जी नशे में अन्दर आये,
और जूली की बाहों में बिस्तर पर रात बिताये,

सुबह जब आँखे खुली तो गलती का एहसास था,
तन्हाई के सिवा अब कुछ नहीं जूली के पास था,

तब से वो पतला कुत्ता टाइगर भी साथ नहीं रहता है,
वो भी ज़माने की तरह जूली को बेवफा कहता है,

“अरे माफ़ कीजीयेगा…. जूली का परिचय देना तो भूल गया”

यूँ तो AKGEC के ब्वायेस हॉस्टल में इसे किसी परिचय की जरुरत नहीं,
पर जूली नाम की ये आवारा कुतिया जरा भी खूबसूरत नहीं ,

पर जूली का हॉस्टल से प्यार देखते हे बनता है,
साल में कई मौको पे इसका का बैर्थ-डे मानता है,

दर-असल जब भी जूली किसी का बर्थ-डे के खा जाती है ,
तो बर्थडे बॉय की बर्थडे बमप्स में लातें भी पाती है,

अरे एक बार तो मेरे आँखों के सामने हे पूरा हंगामा खडा था,
गलती से जूली छत पे बंद क्या हुई सारा होस्टल ताले पे जुटा पड़ा था,

थोडी देर में ताला टुटा तो लोगो की जान में जान आई ,
ये बात और है की थोडी हे देर में जूली फिर कई लातें खाई ,

जूली नाक में दम कर देती है अच्छे-अच्छो की,
कहानी पे यकीं कर लो कसम तुम्हे जुली के बच्चो की ,



कुं विजेंद्र शेखावत
सिंहासन