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महिलाओ का भी अधिकार है विधवा पुनर्विवाह.........लेखन -प्रद्युम्न सिंह चौहान अगर कोई महिला शादी के कुछ दिन बाद दुर्भाग्य से विधवा हो जाती है तो क्या किया जाना चाहिए ?..शायद आप यही सोच रहे होंगे कि उसका पुनर्विवाह कर दिया जाना चाहिए यदि वह खुद चाहती है कि उसका पुनर्विवाह किया जाये ।यह बात भले ही सही लगे कि पुनर्विवाह कर दिया जाना चाहिए लेकिन सामाजिक रूप से यदि इसे राजपूत समाज के सन्दर्भ में देखा जाये तो यहाँ पर ये नहीं हो सकता है क्योकि राजपूत समाज में विधवा पुनर्विवाह नहीं होता है ।जब बात हम कुरूतियो और समस्याओ की करते है तो राजपूत समाज में एक और समस्या है या कहे कुरूति है "विधवा पुनर्विवाह "|मै आज बहुत ही संवेदन शील मुद्दे पर बात कर रहा हु ,दुर्भाग्य वश किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाने पर राजपूतो में महिलाओ का पुनर्विवाह नहीं होता है |किसी महिला के भी अपने परिवार को लेकर सपने होते है यदि दुर्भाग्य से उसके पति की मृत्यु विवाह के कुछ दिन बाद ,कुछ महीने बाद हो जाती है ,अर्थात महिला को अपने दाम्पत्य का सुख नहीं मिल पाया ,उसके हर्दय में भी ममता है वो भी चाहती है की उसका परिवार रहे ,उसकी संतान रहे वो अपनी ममता उस संतान पर लुटा सके और भी उसकी अपनी भावनाए होती है लेकिन वो महिला गलत प्रथा ,एक कुरूति जिसके अनुसार वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती है ।इस कुरीति के कारण उस महिला की भावनाओ की हत्या की जाती है ,उसका संतान को जन्म देने का और उस पर अपनी ममता को अर्पित करने का सपना अधुरा रह जाता है भले ही उस महिला कि आत्मा कहे कि विवाह कर लेकिन इस सामाजिक कुरूति और गलत सोच के कारण वो अपनी भावनाए समाज में ,परिवार में व्यक्त नही कर पाती है ।हम इसे एक वैज्ञानिक और दार्शनिक नजरिये से देखे तो यह उस महिला के साथ बड़ा अन्याय है क्योकि क्या महिला होना उसकी गलती है ?......जो की नहीं है लेकिन समाज ने जो कुरूति बनाई है वो जरुर गलत है।इस कुरूति के कारण हमारी मातृ शक्तियों का जीवन दुखो से भर दिया गया ,कितनी ही महिलाओ की कोख खाली रह गई होगी ,कितनी ही महिलाओ ने जीवित रहते हुए मृत्यु का अनुभव किया होगा ,समाज के लोगो ने मानसिक प्रताड़ना दी होगी वो अलग ।वैसे भी हम सिर्फ दुखो का आकलन कर सकते है लेकिन दुखो का अनुभव उसे ही होता है जिस पर बीतती है ।पुरुष प्रधान समाज का ये एक बड़ा सच है जिसमे सिर्फ पुरुषो का ये विचार की वो किसी विधवा से विवाह नहीं करेंगे लेकिन यदि किसी महिला की मृत्यु हो जाये तो पुरुष कर सकता है विवाह ।यह एक तरह से महिला और पुरुष में पक्ष पात है ,या कहे एक का सम्मान और दुसरे का अपमान । लेकिन मै यह कहूँगा "यदि महिला चाहे तो उसका पुनर्विवाह किया जाना चाहिए " आपको और समाज के लोगो को ऐसा लगेगा की यह मेरा सामाजिक हस्तक्षेप है समाज में ,लेकिन ये सिर्फ मै नहीं कह रहा हु बल्कि हमारी आर्यावर्त की संस्कृति और वेद कह रहे है |ये प्रथा एक पुरुष प्रधान समाज में पुरुषो के खुद के बनाये नियमो की देन है साथ ही मध्यकाल में मुस्लिम हमलो से हुए परिवर्तनों के कारण भी ये प्रगाड़ हो गई |बात सीधी सी है जब पुरुषो का पुनर्विवाह हो सकता है तो महिलाओ का क्यों नहीं ? मतलब की महिलाओ को आप अपने हिसाब से प्रथाओ में बांध दो और पुरुष समाज अपने लिए या कहे अपने हित के लिए कोई ऐसी प्रथा नहीं बनाई ।जबकि वैदिक संस्कृति ये कहती है की विधवा पुनर्विवाह हो सकता है और होता था |मतलब पहले भारत में विधवा पुनर्विवाह होते थे लेकिन पिछली कुछ शताब्दियों से विधवा पुनर्विवाह करना बंद कर दिया गया ,जबकि कोई महिला चाहती हैकि उसका पुनर्विवाह हो तो यह किया जाना चाहिए | यहाँ पर वेदों में विधवा पुनर्विवाह के लिए कहा गया है जैसे :-ऋग्वेद की ये ऋचा (मंत्र ) कुह स्विद्दोषा कुह ................| को वां शयुत्रा .......................|| (ऋ ० मं० १० |सु ० ४० |मं ० २ ||) इस मंत्र में विधवा स्त्रियों को अपने पति के साथ संतान उत्पन्न करने को कहा गया है मतलब की विधवा पुर्विवाह को यहाँ भी समर्थन है | इसी प्रकार मनु स्मृति में भी कहा गया है तमनेन विधानेन............||मनु ०|| यहाँ पर भी विधवा विवाह करने को कहा गया है | (यहाँ पर मंत्र संस्कृत में टाइप करने में असुविधा के कारण पुरे नहीं लिखे गए लेकिन उनके श्लोक क्रमांक दिए गए है ) इसके अतिरिक्त और भी प्रमाण है जो वेदों में मंत्रो के रूप में है जिनके आधार पर हम कह सकते है कि विधवा पुनर्विवाह करने में कोई बुराई नहीं है। अब ये राजपूत समाज क्यों प्राचीन आर्यवर्त और भारत वर्ष की परम्पराओ से मुख मोड़कर गलत सोच से प्रभावित है ....??.क्या परिवार वाले ऐसी महिलाओ का पुनर्विवाह नहीं कर सकते जो दुर्भाग्य वश बहुत कम उम्र में ही विधवा हो चुकी है ....??जैसे पुरुष पुनर्विवाह कर सकते है, वैसे ही महिलाओ को भी ये अधिकार होना चाहिए वे भी दुर्भाग्य वश विधवा होने पर पुनर्विवाह कर सके ....................मेरा उद्देश्य यह लेख लिख कर सामाजिक ताने बाने को नुकसान पहुचाना नहीं ,बल्कि उसे सुधारकर जागरूकता लाकर वैदिक और आर्यावर्त कि संस्कृति के अनुसार सामाजिक परिवर्तन करना है ,क्योकि हमारे पूर्वज जो वैदिक संस्कृति का पालन करते थे वो इसी प्रकार कि सामाजिक माहौल में रहते थे ,जहा पर विधवा पुनर्विवाह को अनुमति थी |.........सभी राजपूत क्षत्रिय और क्षत्राणी भारत वर्ष कि आर्य संस्कृति को फिर से स्थापित करने के लिए कुछ अच्छे सामाजिक परिवर्तन करे|. जय हाडा रानी ....जय धाय माँ पन्ना ....जय क्षात्र धर्म .....जय आर्यावर्त....जय भारत वर्ष आपका राजपूत बन्धु - विजेंद्र सिंह शेखावत  (राजपूतो में वैचारिक और सामाजिक परिवर्तन करने के लिए एक छोटा सा प्रयास )

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