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इस दर्द की तारीफ में क्या-क्या गिला लिखूँ
दिन-रात के फिराक का क्या-क्या सिला लिखूँ
बस्ती में खिला फूल भी बस्ती का हो चुका है
कांटें मिले हैं जिसको उसे मैं दिलजला लिखूं
घर लौटते हैं किसलिए घर के ये लड़ते लोग
नहीं जानता उन्हें तो क्यूं बुरा-भला लिखूं
मेरे सफर में रह न सका कोई मेरे साथ
तन्हाइयों को ही मैं अब सिलसिला लिखूं

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