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जय हो जीण जमुवाय,
भवानी जय हो जीण जमुवाय।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
बीच पहाड़ा रामगढ़ र
थर्प दियो थारो थान।
ज्योत जगे दिन रात मैया री
ध्वजा फरूके असमान।
जय हो जीण जमुवाय,
भवानी जय हो जीण जमुवाय।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
ढोल नगाड़ा और झांझ री
छणक री झणकार।
धाम मैया र नित उठ देखो
हो रही जय जयकार।।
जय हो जीण जमवाय,
भवानी जय हो जीण जमुवाय ।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
लड़ दुश्मन सूं जद महाराणी
वीर पड़्या मैदान।
सुण राणी री करुण वेदना
दियो अभय वरदान।
जय हो जीण जमुवाय ,
भवानी जय हो जीण जमुवाय ।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
गऊ रूप अवतारी माता
दियो दूध रो दान।
टुट्या घोड़ा भागण लाग्या
जीत लियो घमसाण।।
जय हो जीण जमुवाय ,
भवानी जय हो जीण जमुवाय ।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
खीर चूरमा और मैया र
लडवां रो नित उठ भोग।
जात जड़ूला और लागे है
गठजोड़ा री धोक ।।
जय हो जीण जमुवाय ,
भवानी जय हो जीण जमुवाय ।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
शेखाणा री शाख राखज्यो
कुलदेवी महामाय।
भक्त खड़या अरदास करे माँ
भक्त री सदा सहाय।।
जय हो जीण जमुवाय ,
भवानी जय हो जीण जमुवाय ।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।
कुंवर थारो चरणा रो चाकर
विनती लीज्यो मान।
नित उठ रहूँ चरण में हाजीर
देड्यो ओ वरदान।।
जय हो जीण जमुवाय ,
भवानी जय हो जीण जमुवाय ।
कुल कच्छावा कुलदेवी माँ,
भवन दियो बणवाय।।


इस मंदिर को 3000 बम भी नहीं हिला सके – तनोट माता मंदिर।
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माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।
इंसान के बनाए हथियारों से भगवान को नुकसान पहुंचाने का शायद ही कोई दुस्‍साहस कर सकता है। ऐसी हिमाकत पाकिस्‍तान ने की थी वो भी एक-दो नहीं बल्कि हजारों बार, लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। जी हां, जैसलमेर में भारत-पाकिस्‍तान सीमा के पास स्थित तनोट राय माता मंदिर में 1965 और 1971 की लड़ाई के दौरान पाकिस्‍तान द्वारा कई बार बम फेंके गए लेकिन हर बार उसे असफलता ही हाथ लगी। आज भी मंदिर के संग्रहालय में पाकिस्तान द्वारा दागे गए जीवित बम रखे हुए हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, जैसलमेर के थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित सिद्ध तनोट राय माता मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई अजीबो गरीब यादें जुड़ी हुई हैं। राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता है कि युद्ध के दौरान तनोट राय माता ने भारतीय सैनिकों की मदद की इसके चलते ही पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा।
जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर स्थि‍त माता तनोट राय (आवड़ माता) का मंदिर है। तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है।
tanot-mata
भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था। भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे। कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु मंदिर तनोट में ही रहा।
सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। तनोट पर आक्रमण से पहले श‍त्रु (पाक) पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर चुका था। तनोट तीन दिशाओं से घिरा हुआ था। यदि श‍‍त्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। अत: तनोट पर अधिकार जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था।
17 से 19 नवंबर 1965 को श‍त्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियाँ दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी। शत्रु ने जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी के मंदिर के समीप एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था।
Bombs
दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।
एक बार फिर 4 दिसम्बर 1971 की रात को पंजाब रेजीमेंट की एक कंपनी और सीसुब की एक कंपनी ने माँ के आशीर्वाद से लोंगेवाला में विश्व की महानतम लड़ाइयों में से एक में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजीमेंट को धूल चटा दी थी। लोंगेवाला को पाकिस्तान टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था।
1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे। सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है।
लोंगेवाला विजय के बाद माता तनोट राय के परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया, जहाँ हर वर्ष 16 दिसम्बर को महान सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है।
हर वर्ष आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी दिनोंदिन बढ़ती प्रसिद्धि के कारण तनोट एक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध होता जा रहा है।
इतिहास: मंदिर के वर्तमान पुजारी सीसुब में हेड काँस्टेबल कमलेश्वर मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया कि बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें।
माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की।
काँस्टेबल कालिकांत सिन्हा जो तनोट चौकी पर पिछले चार साल से पदस्थ हैं कहते हैं कि माता बहुत शक्तिशाली है और मेरी हर मनोकामना पूर्ण करती है। हमारे सिर पर हमेशा माता की कृपा बनी रहती है। दुश्मन हमारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता है।
विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र सिद्ध देवराज, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ। इतना कहकर सभी बहनों ने पश्चिम में हिंगलाज माता की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। पहले माता की पूजा साकल दीपी ब्राह्मण किया करते थे। 1965 से माता की पूजा सीसुब द्वारा नियुक्त पुजारी करता है


ना रजवाड़ा म जन्म लियो,

न ही गढ़ रो राज।

दरबारां री धोख मारां

जद मिळ है दो मण नाज।।

राज करणिया राज करयो,

म्हे तो चौकीदार।

रण लड़ता र शीश चढ़ाता,

साथण ही तरवार।।

साथण ही तरवार,

राजा री शान बचावण न।

ब जनम्या कूबद कमावण न

म्हे जनम्या रण में खून बहावण न।।

म्हे जनम्या रण म खून बहावण न

ब जनम्या राज रो काज चलावण न।

म्हे जनम्या हुकुम निभावण न

ब जनम्या हुकुम सुणावण न।।

ब जनम्या सोना रा थाळ म खावण न

म्हे जनम्या सुखा टूक चबावण न।

ब जनम्या फूला री सेज सजावण न

म्हे जनम्या रातां री नींद जगावण न।।

ब जनम्या मद र रास रचावण न

म्हे जनम्या रजवाड़ी लाज बचावण न।

ब जनम्या खुद रो नाम कारावण न

म्हे जनम्या कौम रो मान कमावण न।।

जन्मभोम र मान र खातर

खुद रो खून बहायो है।

बाँ न अमर राखबा खातर

मन्न थे बिसरायो है।।

मेरो खून रो मोल छिपायो

रजवाड़ा न अमर बणायो है।

भुल्या सूं भी याद करो ना

फण बांका थान चिणायो है।।

टूटयोड़ो सो मेरो झुपड़ो

थां सूं अर्ज लगाई है।

रजवाड़ा म धोख मराणियो

मैं काईं करी खोटी कमाई है।।

~~लेखनी~~

कुं नरपत सिंह पिपराली


इन सोलह पॉइंट्स को पढ़ने के बाद यकीनन गांधी नफरत के पात्र बन जायेंगे

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण “मैंने गांधी को क्यों मारा”

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया | नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया | इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था | हालाँकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया | नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की | देसी लुटियंस पेश करते है “नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के मुख्य अंश”

1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी |कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे | नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे |


2.1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था | भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी जी के पास गयी लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।


3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया | महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके |


4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |


5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी | पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।


6. गांधी जी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए | अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने | जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया | गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता |


7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली | मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।


8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया | लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके |


9. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया | गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे | इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे |


10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी जी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी जी ने कुछ नहीं किया |



11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे | जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे | बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ |


12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया |


13. गांधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे |


14. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।


15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।


16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया | केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी ।
महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज | गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की |


उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया | नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की | मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के ,एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ | गांधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था |

नाथूराम गोड़से जी ......
द्वारा अदालत में दिए बयान के मुख्य अंश.....

मेने गांधी को नहीं मारा
मेने गांधी का वध किया हे
गांधी वध

वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे

जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता हे

मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति के प्रति गांधीजी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे मजबूर किया

पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुकतान करने की गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी जी अनशन पर बेठे

बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती और दूरदशा ने मुझे हिला के रख दिया था

अखंड हिन्दू राष्ट्र गांधी जी के कारण मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक रहा था

बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना 
विभाजित होना असहनीय था

अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे

मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को गांधी जी मानते जा रहे थे

मेने ये निर्णय किया के भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना हे तो मुझे गांधी को मारना ही होगा

और मेने इसलिए गांधी को मारा.....

मुझे पता हे इसके लिए मुझे फ़ासी होगी
में इसके लिए भी तैयार हु

और हा यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे तो में यह अपराध बार बार करूँगा
हर बार करूँगा

और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना

मुझे फ़ासी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज
और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो

में फ़ासी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय जय बोलना चाहूँगा

हे भारत माँ 
मुझे दुःख हे में तेरी इतनी ही सेवा कर पाया....

नाथूराम गोडसे


सीतामढ़ी कोर्ट में भगवान श्रीराम और उनके भाई लक्ष्‍मण पर मामला दर्ज करने की अर्जी दाखिल की गई है. इस मामले में सीतामढ़ी सीजेएम रामबिहारी में सोमवार दोपहर को सुनवाई होनी है.
सीतामढ़ी के एक वकील ठाकुर चंदन सिंह ने शनिवार को व्यवहार न्यायालय में भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को अभियुक्त बनाते हुए मामला दर्ज करने की अर्जी दाखिल है, जिसमें भगवान राम पर माता सीता को एक धोबी के कहने पर परित्याग करने की बात का जिक्र है.
चंदन सिंह ठाकुर ने न्यूज़18/ ईटीवी से बात करते हुए कहा कि मैंनेे अर्जी इसलिए दायर की है ताकि पूरी महिला जाति को न्याय मिले. गलत को गलत कहना मेरी शुरू से आदत हैै. भगवान श्रीराम गलत थे. वो कैसे एक गभर्वती महिला को जंगल में छोड़ सकते थे. मुझे उम्मीद है कि कोर्ट से मुझे न्याय मिलेगा.
उन्होंने कहा कि सीता मां की क्या गलती थी. क्या उनकी गलती थी कि रावण उनका अपहरण करके ले गया. भगवान श्रीराम को पत्नी को छोडने के बजाय राजगद्दी छोड़ देना चाहिए था.
क्‍या भगवान श्रीराम और लक्ष्‍मण अदालत में होंगे हाजिर?
सस्ती लोकप्रियता हासिल करनेे के सवाल पर उन्होंने कहा कि इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.  यह लोगों के विवेक पर निर्भर करता है. मैं उनकी समझ को नहीं बदल सकता हूं. अगर भगवान ने गलती की है तो गलत कहने में बुराई क्या है ?
परिवादी के आवेदन पर सुनवाई  के बाद यह निर्णय लिया जाएगा कि मामला कोर्ट ने स्वीकार कर लिया या फिर रिजेक्ट.
हालांकि, कानून के जानकारों का मानाना है कि इस मामले मे ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिसपर कोर्ट अपनी सहमति दे.
कोर्ट में परिवाद दायर करने वाले अधिवक्ता ने आरोप लगाया है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने मिथिला की बेटी का न सिर्फ अपमान किया बल्कि बिना तथ्यों की जांच किये बगैर माता सीता पर लगाये गये आरोप पर विश्वास करते हुये उन्हे सजा दे दी.
मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता सीता की शादी सीतामढ़ी से ही सटे नेपाल के जनकपुरधाम मे संपन्न हुई थी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता का सीतामढ़ी के इस पवित्र स्थल पर जन्म हुआ था.
मान्यता है कि जब इलाके में अकाल की छाया पड़ी थी तब मिथिला के राजा जनक ने सीतामढ़ी मे हल चलाया तो धरती के गर्भ से माता सीता ने जन्म लिया. सीतामढ़ी और पड़ोसी मुल्क नेपाल में रामायण काल से जुड़े दर्जनों पौराणिक स्थल है. शायद यह वजह है कि माता सीता को मिथिला की बेटी भी कहा जाता है.


हमारा देश आज एक ऎसे मार्ग पर चल पड़ा है जिसकी परिणति दु:ख के सिवाय कुछऔर नहीं है। हर व्यक्ति उस मार्ग पर चलकर गौरवान्वित महसूस करता है। उसकेपास कोई विकल्प भी नहीं है। हमारे सामने तथ्य हैं, सारे आंकड़े हैं, दर्शनहै, अनुभव हैं, किन्तु हमारा हंकार या लाचारी हमें इनमें से किसी कोस्वीकारने नहीं देती। समाज और परिवारों में अनावश्यक तनाव, वैमनस्य बढ़ताजा रहा है। यह नया रोग है अन्तरजातीय विवाह। इसको विकासवादी दृष्टिकोण कीपैदाइश माना तो जाता है, किन्तु जीना उनके बीच पड़ता है, जिनके दिलो-दिमागपर विकास पहुंचा ही नहीं है। प्रेम का रिश्ता कितनी सहजता से कट्टरता कीभेंट चढ़ जाता है, यह दृश्य देखकर कितने लोग खुश हो सकते हैं, यह भी मानवसमाज की त्रासदी ही है। क्योंकि भारत में यह पीड़ा या मुसीबतों का पहाड़मूल रूप में तो कन्या पक्ष के सिर टूटता है। पिछले सप्ताह कर्नाटक केधर्मस्थल गया था। एक ब्राह्मण लड़के की शादी अन्य जाति की कन्या से इसलिएकी गई कि ब्राह्मण जाति में उपयुक्त कन्या नहीं मिली। एक साल के बाद लड़केने लड़की को छोड़ दिया। वह लड़की न्याय की तलाश में आध्यात्मिक चेतना के
साथ सामाजिक जनजागरण में जुटे वीरेन्द्र हेगड़े के पास आई थी।

आजशिक्षा की आवश्यकता और भूत ने इस समस्या में "आग में घी" का काम किया है।भौतिकवाद, विकासवाद, स्वतंत्र पहचान, समानता की भ्रमित अवधारणा आदि नेव्यक्ति को शरीर के धरातल पर भी लाकर खड़ा कर दिया और अपने जीवन के फैसलेमां-बाप से छीनकर अपने हाथ में लेने शुरू कर दिए। अधिकांशत: माता-पिता उसकेमार्गदर्शक बनते नहीं जान पड़ते। चूंकि शिक्षा नौकरी के अतिरिक्त अधिकविकल्प नहीं देती, अत: परिवार का विघटन अनिवार्य हो गया।
दादा-दादी बिछुड़ गए। नई बहुएं सास-ससुर से भी मुक्त रहना चाहती हैं, तो बच्चों को संस्कारदेने से भी। स्कूल, होम वर्क के सिवाय बच्चों के लिए उसके पास न समय है, नही वह ज्ञान जिससे बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण होता है। शिक्षा ने उसकेमन को भी समानता के भाव के नाम पर यहां तक प्रभावित कर दिया कि वह "मेरे घरमें लड़के-लड़की में कोई भेद नहीं है" का आलाप तार स्वर में गाती है। इससेकोई अधिक क्रूर मां धरती पर कौन होगी जो अपनी बेटी को स्त्री युक्त,मातृत्व, गर्भस्थ अवस्था आदि की भी जानकारी नहीं देती, क्योंकि बेटे को भीनहीं देती। बेटी को अंधेरे में धक्का देकर गौरवान्वित होती है। बेटे को तोपूरी उम्र मां-बाप की छत्रछाया में रहना है। मां बनना नहीं है। नए घर मेंजीना नहीं है।

इस जीवन-शिक्षा के अभाव में न जाने कितने संकट हो रहे
हैं। बच्चों को यथार्थ का ज्ञान नहीं होता और मित्र मण्डली के प्रवाह में
जीना सीख जाते हैं। उच्च शिक्षा की भी अवधारणा हमारे यहां नकारात्मक है।बच्चों का शिक्षा के साथ उतना जुड़ाव भी नहीं होता, जितना विदेशों में
दिखाई देता है। हां, शिक्षा के नाम पर अधिकांश बच्चों को उन्मुक्त वातावरण
रास आता है। फिर कुदरत की चाल। उम्र के साथ आवश्यकताएं भी बदलती हैं। भूखलगी है और भोजन भी उपलब्ध है, तब व्यक्ति कितना धैर्य रख सकता है? मां-बापबच्चों को भूखा रखते हैं। संस्कारों का सहारा नहीं देते। उधर टीवी, इंटरनेटइनको दोनों हाथों से शरीर सुख परोसने में लगे हैं। मन और आत्मा का तोधरातल ही भूल गए। शुद्ध पशुभाव रह गया। आहार-निद्रा-भय-मैथुन। और कुछ बचाही नहीं जीवन में।

भारत में कुछ सीमा तक जो संस्कृत समाज हैं, उनकोछोड़ दें। शेष अपने जीवन में इस पशुभाव पर नियंत्रण नहीं कर पाते। आज तोस्कूल में ही बच्चे 17-18 साल के हो जाते हैं। कक्षाओं से गायब रहते हैं।तब एक मोड़ जीवन में ऎसा आता है कि नियंत्रण भी छूट जाता है और विकल्प भी
खो जाते हैं। ये परिस्थितियां ही इस अन्तरजातीय विवाह की जननी बनती हैं।

अन्तरजातीयविवाह में यूं तो खराब कुछ नहीं दिखाई देता। जिसको दिखाई देगा वह दुनियाका सबसे बड़ा मूर्ख है। जब लड़का-लड़की दोनों राजी हैं, तब किसी कोअच्छा-बुरा क्यों लगना चाहिए? लेकिन जो कुछ नजारा अगले कुछ महीनों मेंसामने आता है, उसे देखकर मानवता पथरा जाती है। सारा समाज बीच में कूद पड़ताहै। अनेक बाध्यताएं, जिनमें धर्म परिवर्तन तक की भी हैं, अपने मुखौटेदिखा-दिखाकर चिढ़ाती हैं। कट्टरता, संकीर्णता और निर्दयता से सारा वातावरणकम्पित हो जाता है। लड़की के मां-बाप की स्थिति बयान करना सहज नहीं है।लड़की भी हजार गलतियां करने के बाद भारतीय है। मन में कुछ लज्जा का भावहोता है। जब किसी सभ्य परिवार की लड़की असभ्य परिवार से जुड़ जाती है, तबतो तांडव ही कुछ और होता है। किसी असभ्य परिवार की लड़की सभ्य और समृद्धपरिवार में चली जाती है, तब एक अलग तरह के अहंकार की टकराहट शुरू हो जाती
है। जिन जातियों में नाता होता है, वहां मन कोई मन्दिर नहीं रह जाता। लड़कीके दो-तीन तलाक हो जाएं तो लाखों का किराया वसूल लेते हैं मां-बाप। ऊपर सेकानून एकदम अंधा। परिस्थितियों की मार से दबे मां-बाप के लिए कानून भीभयावह जान पड़ता है।
आज न्यायालयों में विवाह विच्छेद के बढ़ते
आंकड़े इस देश के सामाजिक तथा पारिवारिक भविष्य को रेखांकित करते हैं। जीवनविषाक्त होता दिखाई पड़ रहा है। पश्चिम में सम्प्रदायों तथा जातियों की इसप्रकार की वैभिन्नता भी नहीं है और है तो भी ऎसी कट्टरता दिखाई नहीं देती।वहां पैदा होने वाले व्यक्ति को जीवन में दो-तीन शादी कर लेना मान्य है।हम अभी अर्घविकसित हैं। विकास का ढोंग करते हैं। भीतर बदले नहीं हैं।परम्पराओं और मान्यताओं की जकड़ से मुक्त भी नहीं हैं। फिर भी हम विकसितसमाजों के पीछे दिखना भी नहीं चाहते। विदेशों में उच्च शिक्षा का कारण सुखप्राप्ति है। स्वतंत्रता भी है और स्वावलम्बन भी। भारत में लड़कियों कोउच्च शिक्षा सुख प्राप्ति के लिए नहीं दी जाती, बल्कि इसलिए दी जाती है किखराब समय (वैधव्य या विवाह विच्छेद) की स्थिति में पराश्रित न रहे।नकारात्मक चिन्तन ही आधार होता है। तब समझौते का प्रश्न किसी के मन मेंउठता ही नहीं है। हम जब तक इस लायक हों कि यथार्थ को स्पष्ट समझ पाएं,हमारे यहां कुछ विकासशील कुण्ठाएं संस्कृति विरोधी कानून भी पास करवा लेतीहैं। एक कहावत है कि हम अपने दुख से उतने दुखी नहीं हैं, जितने कि पड़ोसीके सुख से।

मात्र कानून बना देना विकास नहीं है। अभी मन्दिर-मस्जिद
के झगड़ों से हम बाहर नहीं आए। आरक्षण ने जातियों के नाम पर अनेक विरोध केस्वर खड़े कर दिए। जब हमारी सन्तान हमारे साथ किसी जाति के विरोध मेंलड़ती है, हिंसक हो जाती है, तब क्या वह लड़का विरोधी जाति की लड़की कापत्नी रूप में सम्मान कर सकेगा। अथवा ऎसा होने पर जातियों के बीच नए संघर्षके बीज बोये जाएंगे? क्या समाज का यह दायित्व नहीं है कि यदि किसीसम्प्रदाय को वह स्वीकार नहीं करता, तो अपने बच्चों को भी शिक्षित करे?
क्या विरोधी समाज की लड़की का अपमान करके अपनी बहू के प्रति उत्तरदायित्वके बोध का सही परिचय दे रहे हैं? क्या यह पूरे समाज का अपमान नहीं है? आजजीवन एक दौड़ में पड़ गया है। एक होड़ में चल रहा है। स्पर्धा ने मूल्योंको समेट दिया है। नकल का एक दौर ऎसा चला है कि व्यक्ति की आंख खुद के जीवनके बजाए दूसरे पर टिकी होती है, जिसकी वह नकल करना चाहता है। जैसे किशिक्षित लड़कियां भी लड़कों की नकल करना चाहती हैं। अत: लड़कियों के गुणग्रहण ही नहीं करतीं। लड़का बन नहीं सकतीं। अत: यह आदमी की हवस का पहलाशिकार होती हैं। भले ही इस कारण ऊंचे पदों तक पहुंच भी जाए, किन्तु सुख नइनको मिलता, न ही इनके माता-पिता को। बस, विकास की धारा में बहते रहते हैं।

प्रश्नयह है कि यदि हम विकसित हो रहे हैं, शिक्षित हो रहे हैं, तो इसका लाभ
स्त्री को क्यों नहीं मिल रहा। शिक्षित व्यक्ति निपट स्वार्थी भी होता जा
रहा है और उसे नुकसान करना भी अधिक आता है। अनपढ़ औरतें कन्या भ्रूण हत्याके लिए बदनाम इसलिए हो गई कि उनको गर्भस्थ शिशु के लिंग की जानकारी उपलब्धनहीं थी। आंकड़े साक्षी हैं कि ऎसी हत्याओं में शिक्षित महिलाएं अधिक लिप्तहैं और चर्चा भी नहीं होती। ये हत्याएं इस बात का प्रमाण तो हैं ही किनारी आज भी स्वयं को लाचार और अत्याचारग्रस्त मानती है। अपनी कन्या को इसरूष के हवाले नहीं करना चाहती। पुरूष वर्ग का इससे अधिक अपमान हो भी क्यासकता है। अब अन्तरजातीय विवाह ने इस नासूर को नया रूप ही दिया है। लड़काअधिकांश मामलों में मां-बाप के साथ होकर लड़की को अकेला छोड़ देता है। तबउसके लिए मायके लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। इसके लिए भी उसेअदालतों के और वकीलों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। यह आत्म-हत्याओं को बढ़ावा
देने वाला मार्ग तैयार हो रहा है। यह भी सच है कि व्यक्ति अपना किया ही
भोगता है।

समाज हर युग में एक-सा रहा है। शिक्षा बाहरी परिवेश हैभीतर की आत्मा की शिक्षा, उसका जागरण, परिष्कार आदि जब तक जीवन में नहीं
जुड़ेंगे, संस्कारवान मानव समाज का निर्माण संभव नहीं है।


इंगलैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान एक शाम
महाराजा जयसिंह सादे कपड़ों में बॉन्ड स्ट्रीट में घूमने के लिए
निकले और वहां उन्होने रोल्स रॉयस कम्पनी का भव्य शो रूम
देखा और मोटर कार का भाव जानने के लिए अंदर चले गए।
शॉ रूम के अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें “कंगाल भारत” का सामान्य
नागरिक समझ कर वापस भेज दिया। शोरूम के सेल्समैन ने
भी उन्हें बहुत अपमानित किया, बस उन्हें “गेट आऊट” कहने के
अलावा अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अपमानित
महाराजा जयसिंह वापस होटल पर आए और रोल्स रॉयस के
उसी शोरूम पर फोन लगवाया और संदेशा कहलवाया कि अलवर के
महाराजा कुछ मोटर कार खरीदने चाहते हैं।
कुछ देर बाद जब महाराजा रजवाड़ी पोशाक में औरअपने पूरे
दबदबे के साथ शोरूम पर पहुंचे तब तक शोरूम में उनके स्वागत में
“रेड कार्पेट” बिछ चुका था। वही अंग्रेज मैनेजर और सेल्समेन्स
उनके सामने नतमस्तक खड़े थे। महाराजा ने उस समय शोरूम में
पड़ी सभी छ: कारों को खरीदकर, कारों की कीमत के साथ उन्हें
भारत पहुँचाने के खर्च का भुगतान कर दिया।
भारत पहुँच कर महाराजा जयसिंह ने सभी छ: कारों को अलवर
नगरपालिका को दे दी और आदेश दिया कि हर कार काउपयोग
(उस समय के दौरान 8320 वर्ग कि.मी) अलवर राज्यमें
कचरा उठाने के लिए किया जाए।
विश्व की अव्वल नंबर मानी जाने वाली सुपर क्लास रोल्स रॉयस
कार नगरपालिका के लिए कचरागाड़ी के रूप में उपयोग लिए जाने
के समाचार पूरी दुनिया में फैल गया और रोल्स रॉयस की इज्जत
तार-तार हुई। युरोप-अमरीका में कोई अमीर व्यक्ति अगर ये
कहता “मेरे पास रोल्स रॉयस कार” है तो सामने
वाला पूछता “कौनसी?” वही जो भारत में कचरा उठाने के काम
आती है! वही?
बदनामी के कारण और कारों की बिक्री में एकदम कमी आने से
रोल्स रॉयस कम्पनी के मालिकों को बहुत नुकसान होने लगा।
महाराज जयसिंह को उन्होने क्षमा मांगते हुए टेलिग्राम भेजे और
अनुरोध किया कि रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बन्द
करवावें। माफी पत्र लिखने के साथ ही छ: और मोटर कार
बिना मूल्य देने के लिए भी तैयार हो गए।
महाराजा जयसिंह जी को जब पक्का विश्वास
हो गया कि अंग्रेजों को वाजिब बोधपाठ मिल गयाहै
तो महाराजा ने उन कारों से कचरा उठवाना बन्द करवाया