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मुझे ये बात समझ नही आती की सभी महिलाओ को लेकर बात करते हैं की दोष महिलाओ और लडकियों का,,,,क्यों,, कैसे क्या कभी किसी ने जानने की कोशिश की की ,,,एक मा चाहती क्या है ,,पत्नी क्या चाहती है ,,,आपकी बेटी क्या करना चाहती है,,,,समाज के बड़े बड़े ठेकेदार बस नियम बना देते हैं ,,,या पुराने नियमो पर चलने को कहते हैं,,,तो क्या कभी उब लोगो ने सोचा है की उनके बेटे ,,,या वो खुद क्या करते हैं ,,,समाज की कुरूतियो को मिटाने की बाते करते हैं ,,,जाने कितने ही मंचो पर चढ़ समाज बेटे और बेटियों में फर्क न करो जैसी बाते करते हैं ,,,और उनके खुद के ही घरो में ,,,,,बेटियों की मर्ज़ी कितनी पूछी जाती है ,,,शायद स्वयं भी नही जानते होंगे....वो 
नियम सारे ,,,बेटियों के लिए ही क्यों....बेटो पर ये लागू क्यों नही,,,,
मेने आज कहीं पढ़ा की जिस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है--- वो रात में कर क्या रही थी......अजीब है क्यों क्या उसे कोई काम नही हो सकता था ,,,क्या उसका रात में घर से निकलना गुनाह हैक्या किसी ने पूछा की वो लड़के रात में घर से बाहर क्या कर रहे थे ,,,जिन्होंने ये घिनोना काम किया ,,,नही क्योकि ,,,दोष तो लड़की का है ,,,ये तो पहले से ही तय है.....
संस्कारों की बाते करते हैं ,,,,और स्वयं ,,,,,कहाँ हैं हम सब.....
खुद दोहरी मानसिकता में जीते हैं...और बात करते हैं समाज सुधार 
मुझे लगता है की सुधार की जरूरत पहले हमहें है स्वयं सुधर जाये तभी बाते करे दूसरो को सुधारने की.........


कुं विजेन्द्र शेखावत
सिंहासन 




1 comments:

  1. bahut shandar likha hai banna.

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