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जीवन के आखिरी लम्हों को समेटता एक मानव
आज के युवा मानव का हास्य पात्र बन गया
कल वो उस युवा की जगह था मगर आज वो
युवा उसकी "उस" जगह ... ये कैसा जीवन ?
जिस बचपन को वो अपनी लाठी समझ बैठा
वो उसकी लाठी चुराने को खेल समझ बैठा .. ये कैसा खेल ?
बचपन और युवा के बीच में फंसा आज का बुजर्ग
बाज के पंजे में फसां एक पक्षी सा निरीह... ये कैसा दौर ?
ए युवा ! बुजर्ग से जीवन का अनुभव सीख
उसका तजुर्बा तेरे जीवन को जीवन बना देगा ..
नहीं तो कल......
तू उसकी जगह ..
और ये बचपन...
तेरी जगह लेगा ...
और तब...
एक और जीवन चक्र ...
एक इंसान को इंसान बन ने महरूम कर देगा ...


विजेंद्र शेखावत
सिंहासन

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