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रामा-रामा कैसा ये गजब हो गया,
आजकल का रंग -ढंग कैसा अजब हो गया,,

जो वस्त्र होता था नीचा वो ऊँचा ,
और जो होना था ऊँचा वो नीचा हो गया,
...
जब तक ''जोकी'' लिखा न दिखे ,इनको आता चैन नहीं ,
अगर करे कोई टोका-टोकी होता इनको सहन नहीं,,
कन्यायें भी त्याग रही पहनावे के सरे संस्कार,
टॉप हो रहा ऊँचा -ऊँचा,भूल गयी सूट-सलवार,,

अब हम भी क्या कहें,कई माँ-बाप ही देते हैं उनका साथ,
फैशन करने में वो भी आगे हैं उनसे दो हाथ,,

माँ ये सोचे ,समझें सब उसको बेटी की बहन,
बाप को भी बेटी की सहेली का अंकल कहना नहीं सहन,,

हे मेरे मालिक तुमने ''अमित'' के साथ ये क्या गजब किया,,
क्या मैं इसके लायक था , जो मुझे ये सब देखने भेज दिया,,

मेरे भाइयो और बहनों न भूलो अपना सनातन इतिहास,
आधुनिक बनो पर ऐसे की कोई उड़ा न सके आपका उपहास,,


कुं अमित सिंह 

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